Made in India
इतने सालों से दिन रात भाग दौड़ करती ये सड़क पे मैं अकेला पेड़ यहाँ खड़ा था, रोज़ कितने लोग आते जाते रहेते है पर मेरे सामने देखने के लिए किसीके पास वक़्त नहीं था। हररोज़ सबको देखता कोई खुद में खोया तो कोई दूसरो में, कई सारे लोग मेरी छाँव में आके बैठके आराम करके निकल जाते। मैं उन्हें देखता उनके दिल-ओ-दिमाग में दुनिया के कई सारे कचरे भरे पड़े होते थे सब महेसुस करता। ये पंछी भी मेरे हाथों पे बैठके आराम करने आते, कभी बातें करते तो कभी दुसरे पंछी का इंतज़ार। कभी लम्बी उड़ान भरके आये पंछियों की बातों को सुनता, वो सुनके मुझे भी उस ऊपर रहे नीले आसमान में उड़ने का मन करता था । पर मैं उड़ने के लिए नहीं बना था। मैं इस ज़मीं की ज़न्झिरों से बंधा हुआ था, मेरा काम था सबको छाँव देना, चुप चाप खड़े रहेना। कैसे उड़ सकता मैं? सब पंछियों को और इंसान को भी मेरे होने का तो अहेसास था, पर मेरे जिंदा होने का अहेसास जैसे किसीको नहीं था। पर आज जैसे कुछ अलग होना था, जैसे मेरे कभी न ख़तम होने वाले इंतज़ार को पूरा होना था। सब यहाँ खुदके लिए यानी आराम करने और चले जाने के लिए आते थे पर आज वो खुदके लिए नहीं जैसे मेरी छाँव में मेरे ही लिए आई हो। इस धुप की आग में जलते हुए आज नजाने कहाँ से? किस दुनिया से वो मेरे पास आई थी? पहेले तो मैंने कभी इस रास्ते पर आते या जाते उसे नहीं देखा था। एक अलग बात थी उसमे। ध्यान से देखा उसकी आँखों में सच्चाई जो आज के ज़माने में ढूंढने निकालो तो भी न मिले वैसे चमक रही थी मोती बनके। उसके अन्दर एक आराम था, और मस्ती भी भरी थी, बदन की थकान को दिमाग पे लेके उसने मेरे सामने देखा। जैसे उसकी नज़र मुझपे पड़ी मेरी जिंदगी भर की थकान जैसे इसी पल में उतर गयी, क्या पता मुझमे क्या देखा उसने? मुझे लगा जैसे मेरे अन्दर रहेती जिंदगी को उसने महेसुस किया हो। थोड़ी देर मुझे बस तकती रही अपने गुलाबी दुपट्टे से पसीना पोछती हुई धीरे से मेरे करीब आई और मेरी छाँव में समां गयी। उसको अपनी छाँव में समाके खुदको पाने का अहेसास हुआ, उन पंछियों की तरह जैसे उड़ रहा था मैं। फुल सी नाज़ुक वो अपने अन्दर मेरे लिए जैसे एक छाँव समाके लायी हो। यही वो लम्हा था जिसमे मेरी हर ख्वाहिश को पिघलना था, ज़मीन से बंधी मेरी ज़न्झिरे मुझे टूटती नज़र आ रही थी। अब यहाँ रहेके मुझे क्या करना था? एक पत्ता बनके ज़र गया मैं उसपे, हवाके झोके की मदद से उसके पैरो को छुआ तब मुझे महेसुस हुआ के छाँव क्या होती है। जैसे मेरे अन्दर मरी पड़ी मेरी ज़िन्दगी आज जिंदा हुई थी, जैसे उन पंछियों की तरह मेरे पर निकल आये थे। इतना प्यार खुदमे समेटे जैसे कुदरत खुद मुझे लेने आई हो, उसने अपने हाथों में मुझे इस कदर लिया जैसे कोई माँ अपने बच्चे को बाहों में ले रही हो। जिंदगी के सारे लम्हे एक तरह और ये लम्हा एक तरफ। आस पास की दुनिया जैसे जम सी गयी थी, इस पल को जैसे कुदरत भी थम गयी थी। मेरी हर ख्वाहिश हर आरजू जैसे पूरी हुई हो। पूरी जिंदगी आँखों के सामने आ गयी और जब खुदको उसके हवाले किया तब अहेसास हुआ के इतने साल ऐसे कटे क्युकी इस लम्हे में इस पल में मुझे होना था। अपने आपको उसके हवाले कर अब जिंदगी भर बस सोना था। - D!sha Joshi.
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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