चाँद-तारो को बहाती होगी,
उसकी बाहों की गर्मी में
बेख़ौफ़ आग भी ठंड पाती होगी ,
उसे करीब पाके दिन रात दौडती
ये धड़कन भी चेन पाती होगी ,
जिस्म को कबर में मिलता आराम
उसकी एक छुअन दिलाती होगी,
प्यार के दरिये को खुदमे समेटे
वो जब भी कुछ गुनगुनाती होगी ,
खुद रात को भी नींद आती होगी,
किसी घर में
माँ जब भी लोरियां गाती होगी .
(C) D!sha Joshi.
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