नो मोर पिंक
क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि
कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे अगली माधुरी इनके घर से ही निकलेगी चाहे वो उसमे सहज़ महसूस करें या नहीं. हो सकता है उसे फुटबॉल खेलना हो या बॉक्सिंग या क्रिकेट पर फिर भी उनके लिए सोच नहीं बदली जाती चोट लग जाएगी चेहरा खराब हो जाएगा शरीर मर्दाना हो जायेगा लोग क्या कहेँगे अबे है कौन ये लोग आते कँहा से है
कोई कैसे ये तय कर सकता है वो लड़की जैसा ये लड़के जैसा यह तो वो ही बात हुई जैसे अगर आपको कॉफ़ी पसंद है तो आपको बार बार चाय पीने को कियों बाध्य किया जाए कोई दूसरा चुनेगा और कहेगा की आपके लिए क्या सही है कियों ना खुद उस इंसान को चुनने का अधिकार हो उसका खुद का रंग हर इंसान का अलग रंग होता है पर किसी इंसान को किसी रंग विशेष में बांधना क्या सही है लड़कियां होती है पापा की परी पर इसका ये मतलब नहीं हैं की वो सचमुच की परी है नाजुक है ये सम्बोधन प्यार और दुलार में किया जता है वो पापा की परी ही नहीं पापा की शेरनी भी हो सकती है अगर कोई लड़की हाथ में पांच पाँच किलो के डम्बल लिए हो या कंही बेंच प्रैस करती हुई दिख जाएं तो लोग ऐसे देखने लगते है की कुछ विचित्र घटित हुआ जैसे किसी दूसरे गृह से कोई प्राणी आया हो लोग जल्दी स्वीकार नहीं कर पाते मगर गीतों में ज़रूर मान लेते है गीत गुलाबी आँखे मतलब कुछ भी हो सकती है किसी भी इंसान की गुलाबी आँखे लाल ज़रूर हो जाती है जब कुछ हट कर करने की कह दो तो बेशक़ लाल हो जाती है गुलाबी गाल भी इस धरती पर तो कुछ विशेष प्रजाति के जानवरो के बच्चों के जरूर होते है मतलब परिकल्पना के नाम पर कुछ भी चलेगा कियों नहीं समाज में लक्ष्मी बाई जीजा बाई, रानी पद्मावती चाँद बीबी, किरन बेदी, मैरीकॉम,जैसी उक्तियों से सम्बोधित किया जाता या फिर उनको एक भीन्न श्रेणी में रखा जता है जिनके सब किस्से कहानियाँ तो सुन्ना और सुनाना चाहते है पर उनके जैसा बनना नहीं चाहते लड़की शब्द सुनते ही उनके मन में विचार होता है गर्दन झुकाये आँखे नीची किए हाथों में चाय की ट्रे थामे एक कोमल चित्रण की कल्पकना करने लगते है मगर फिर समाज में देश में ऐसी लड़कियां भी है जो लक्ष्मी, सरस्वती ही नहीं बल्कि शक्ति को भी परिभाषित करती है.जो मानसिक बल ही नहीं शरीरक बल से पूर्ण होती है जो लोग ऐसी धारणा रखते है लड़कियां कोमल है शक्ति हीन है अबल है वो कैसे भूल जाते है जिस जुबान को वो कुशलता से चलाने में शक्षम है वो भी किसी स्त्री के द्वारा जन्म दिए जाने के उपरांत मिली है या जिस ऊँगली को बड़ी मज़बूती से उठा रहे हो जिन पर वो उँगलियाँ भी उन्ही स्त्रियों के रक्त और माँसपेशियों से पाई हुई. झाँसी की रानी अच्छी लगती है पर दूसरे के घर में खुद के घर में तो पिंकी और मिन्की ही प्यारी और दुलारी है ऐसा कियों की लड़की है तो स्कूटी ही चलाएगी अरे वो देखो फलाने की लड़की तो बाइक चलती है लड़कियों जैसी हरकतें कँहा है उसकी. तरह तरह की बातें जिनका ना सर ना पैर जाने कँहा से घोली गई रक्त में वो गांठे जो सुलझती नहीं जरा खुले दिल से स्वीकार करो ताकत को उनकी जो करोड़ों की भीड़ में देश के लिए मैडल ले आई जरा देखो हौंसला उनका जो चाँद पर हो आई वो जहाज़ उड़ा सकती है वो ट्रेन चला सकती है वो हिमलाय पर ध्वज़ फहरा सकती है वो वक्त बदल सकती है उसकी भुजाओं में भी जोर है वो घर की लक्ष्मी है तो बाहर दुर्गा भी बन सकती है ज़रूरत है तो बस सोच बदलने की विश्वास दिखाने की एक आवाज़ लगाने की उठ न रह अबला सी सहमी डरी उदास थाम कर होंसला कर खुद पर विश्वास... शावक
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