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दुआ जो मेरी बेअसर हो गई / इस्मत ज़ैदी



दुआ जो मेरी बेअसर हो गई

फिर इक आरज़ू दर बदर हो गई



वफ़ा हम ने तुझ से निभाई मगर

निगह में तेरी बेसमर हो गई



तलाश ए सुकूँ में भटकते रहे

हयात अपनी यूंही बसर हो गई



कड़ी धूप की सख़्तियाँ झेल कर

थी ममता जो मिस्ले शजर हो गई



न जाने कि लोरी बनी कब ग़ज़ल

"ज़रा आँख झपकी सहर हो गई"



वो लम्बी मसाफ़त की मंज़िल मेरी

तेरा साथ था ,मुख़्तसर हो गई



मैं जब भी उठा ले के परचम कोई

तो काँटों भरी रहगुज़र हो… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2015 at 8:58am — No Comments

અસંગતા : / જલકમલવત્ :

કમળનું જતન કાદવમાં થતું હોવા છતાં, અંતે તેને, નિજ ના સદગુણો, ખૂબસૂરતી, કોમળતા અને માધુર્ય ને લઇ ને, દેવ મસ્તકે શોભવા મળે છે. કમળમાં અસંગતા નો ગુણ છે. કાદવ મધ્યે રહેવા છતાં, કાદવ તેને સ્પર્શી નથી શકતો. તે જ રીતે, પ્રણય પણ માનવ જીવનમાં, અનેક વિઘ્નો રજૂ કરતો હોવા છતાં, સહુના હર્દયે શોભ્યા જ કરે છે. માનવી માત્રનો ધબકાર છે, પ્રાણ છે. પ્રેમનો સંબંધ અને સંદર્ભ પ્રભુ સાથે છે. પ્રભુત્વ નિરાકાર છે, નિર્મળ છે, નિસ્વાર્થી છે.



અસંગતા : / જલકમલવત્… Continue

Added by Janak Desai on January 19, 2015 at 11:54pm — No Comments

भूल जाते हैं हम.... है ना! !

Added by Janak Desai on January 19, 2015 at 3:00am — No Comments

છાતી સરસાં ચાંપેલ સ્મરણો :

ક્યારેક...

સાંજ ઢળ્યે,

ઘૂંઘટ સમ ક્ષિતિજ પછીત

શરમના શેરડા જ્યારે વિખેરાય,

‘ને, વહેલી સવારે

એજ ક્ષિતિજ મલકાતી નીખરે,…

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Added by Janak Desai on January 19, 2015 at 1:30am — No Comments

नाव में बहते -बहते / गुलज़ार

नाव में बहते-बहते इक नज़्म मेरी पानी में गिरी और गलने लगी
काग़ज़ का पैराहन था
मेरी तहरीर न थाम सका

सियाही फैल गई पहले
फिर लफ़्ज़ गले, और एकएक करके डूब गये
टूटते मिसरों की हिचकी, कुछ दूर सुनाई दी और फिर
बाक़ीमांदा......
कुछ मानी थे
कुछ देर किसी तलछट की तरह
पानी की सतह पर तैरे और फिर बहते-बहते
आँख से ओझल होते गये !

Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 9:06pm — No Comments

दह्र के अंधे कुएँ में कसके आवाज़ लगा / इक़बाल साजिद

दह्र के अंधे कुएँ में कसके आवाज़ लगा

कोई पत्थर फ़ेककर पानी का अंदाज़ा लगा



रात भी अब जा रही है अपनी मंज़िल की तरफ़

किसकी धून में जागता है, घर का दरवाज़ा लगा



काँच के बरतन में जैसे सुर्ख़ कागज़ का गुलाब

वह मुझे उतना ही अच्छा और तरोताज़ा लगा



शहर की सड़कों पे अंधी रात के पिछले पहर

मेरा ही साया मुझे रंगों का शीराज़ा लगा



जाने रहता है कहाँ इक़बाल साजिद इन दिनों

रातदिन देखा है उसके घर का दरवाज़ा लगा







दह्र -… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 8:05pm — No Comments

'બધું ચાલશે' ,

'બધું ચાલશે' , 'ફાવશે ', 'ગમશે' ,'કઈ વાંધો નઈ' , 'મારાથી ભૂલ થઇ ગઈ' ,'હું આપની માફી માંગું છું' , 'હમણાજ કરી લઉં' , 'ભલે' , 'બહુ સારું' ,

આટલા જાદુઈ શબ્દો નો ઉપયોગ કરતા શીખી લેશો તો તમારા જીવનની તમામ સમસ્યાઓ ચમત્કારિક રીતે દુર થતી દેખાશે.

----કેતન મોટલા "રઘુવંશી" …

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Added by Ketan Motla on January 18, 2015 at 10:53am — No Comments

ઘરઘર રમત્યું :

ઘરઘર રમત્યું :

હું, અને તું ,

વૃક્ષની ઓલી ડાળીઓની જેમ,

ભેળા રહી અળગા થતા રહ્યા;…

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Added by Janak Desai on January 18, 2015 at 1:04am — No Comments

શમણાંઓ ના સંગે

કૌમાર્યથી અળગા થવા,

ઉત્સુક હતી, હું કેટલી !

કે આગમાં લપકી જતાં,

તે પતંગિયાના જેટલી;

ટોળા મહીં નજર્યું…

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Added by Janak Desai on January 18, 2015 at 12:48am — No Comments

એટલે જ ...

ગઝલ : ગાગાલગા ના ચાર આવર્તન

કે ‘રાખમાં ભળવું રહ્યું’ : જાણ્યું હતું મેં, એટલે જ,

તે રાખથી અળગા રહી જીવ્યા કર્યું છે એટલે જ;…

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Added by Janak Desai on January 18, 2015 at 12:46am — No Comments

शाहिद अख़्तर......

रात सोने के बाद

तकिए के नीचे से सरकती हुई

आती हैं यादों की तितलियाँ

तितलियाँ पंख फड़फड़ाती हैं

कभी छुआ है तुमने इन तितलियों को

उनके ख़ूबसूरत पंखों को

मीठा-मीठा से लमस हैं उनमें

एक सुलगता-सा एहसास

जो गीली कर जाते हैं मेरी आँखें

तितलियाँ पंख फड़फड़ाती हैं

तितलियाँ उड़ जाती हैं

तितलियां वक़्त की तरह हैं

यादें छोड़ जाती हैं

ख़ुद याद बन जाती हैं

तितलियाँ बचपन की तरह हैं

मासूम खिलखिलाती

हमें अपनी मासुमियत की याद दिलाती… Continue

Added by Juee Gor on January 14, 2015 at 11:00pm — 2 Comments

મહેંદી નો રંગ

રંગ જે હાથમાં ગમ્યો'તો, વાળ સુધી ગયો,
સંગ પણ તારો વરસો સુધી, એમ જ વહ્યો .

જનક

Added by Janak Desai on January 14, 2015 at 5:51am — No Comments

ધાર

સૌ યાદો સંગે રાખ્યાથી જ દર્દની ધારે ચાલું છું,
એક બાજુ ખીણ ઊંડી, ને સામે હું પર્વત માપું છું.

જનક

Added by Janak Desai on January 13, 2015 at 4:45am — No Comments

ઉડાન

દોરો નથી તેથી જ તો ઉડવાનું શક્ય છે,
અકબંધ તારું આભ છો, મુજને ધરા પસંદ છે.

જનક

Added by Janak Desai on January 13, 2015 at 3:57am — No Comments

तुम्हें ढूंढते हुए

जरा सा छू सकता था हवा को

जरा सा ताक सकता था आसमान

पानी की नाप में नहीं नाप सकता था तुम्हें

डुबो लेता पैर सांझ ढलते ढलते

जरा सा भिगो लेता हथेलियां...

लहर पर लहर आकर गिरी

मैं भीगा नहीं....।

पेड़ हिलाते रहे हाथ

खोले रहे बाहें,

फुनगियों पर नाचती रही मुस्कुराहट

पत्तियां खड़खड़ाती रहीं

सुन ना सका....।

तनी हुई गर्दन का ऐंठना भी

तय ना कर सका ऊंचाई...

पहाड़ की सबसे छोटी चोटी

मुझसे कितनी ऊंची है

इतना सा ही तो जानना था…

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Added by Juee Gor on January 11, 2015 at 9:00pm — No Comments

સાક્ષાત્કાર:

ના પહેલાં કે પછી, છે મધ્યમાં જે, તે જ હું,
વ્યાપ છે અંધાર ત્યાં સ્પર્શી શકે તે તેજ હું.

જનક મ દેસાઇ

Added by Janak Desai on January 11, 2015 at 6:00am — No Comments

અતાગ

તું વ્યાપ, તોયે માપ તારું, કેમ હું ના લઇ શકું?
શું વ્યાપ તેથી, તાગ તારો, શક્ય ના લેવો કદી?

જનક મ. દેસાઇ

Added by Janak Desai on January 11, 2015 at 5:30am — No Comments

यां आदमी पे जान को वारे है आदमी / नज़ीर अकबराबादी

यां आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी पे तेग़ को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वह भी आदमी

मरने में आदमी ही क़फन करते हैं तैयार
नहला-धुला उठाते हैं कांधे पे कर सवार
कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार
सब आदमी ही करते हैं मुर्दे का कारोबार
और वह जो मर गया है सो है वह भी आदमी

Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:53pm — No Comments

नीले नीले से शब के गुंबद में / गुलज़ार

नीले नीले से शब के गुंबद में
तानपूरा मिला रहा है कोई

एक शफ़्फ़ाक़ काँच का दरिया
जब खनक जाता है किनारों से
देर तक गूँजता है कानों में

पलकें झपका के देखती है शमएं
और फ़ानूस गुनगुनाते हैं
मैंने मुन्द्रों की तरह कानों में
तेरी आवाज़ पहन रक्खी है

Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:31pm — 1 Comment

और मैं भी / अमृता भारती

मेरा अंधेरा
खो गया था
उसकी आँखों में
और मैं भी-
चलते-चलते
उसके साथ
क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर ।

श्वेत दृष्टि
श्यामल हो उठी थी ।

मेरे 
होने,
न होने को
वह विभक्त नहीं कर सका था
सूर्यास्त से
सूर्योदय के बीच ।

Added by Juee Gor on January 7, 2015 at 9:56pm — 3 Comments

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परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है