न जाने आखिरी बार हम कब मिले थे, कुछ याद नहीं कुछ भूला भी नहीं। तुमसे जुड़ी हर बात-हर लम्हा याद रखने और भूल जाने से परे हो जाता है, क्योंकि उन लम्हों के जहाज़ पड़े रहते है, मेरे सीने में लंगर डालकर, जिगर के किनारों पर। और जब भी कभी वक्त का बवंडर खींचता है उन कुछ लम्हों को अपने आग़ोश में, बिना लंगर उठाये, तब वो लंगर कर देता है एक सुराग़, मेरे जिगर में। फिर उसी सुराग़ से बहते हुए खून की आड़ में बहा लेता हूँ मैं खुद को भी और कर लेता हूँ खुद को आज़ाद, खुद ही से, और पाता हूँ खुद को कोई अजीब खालीपन के रेगिस्तान के बीचोबीच खड़े भीगें हुए शज़र की तरह। वो भीगा शज़र जिसकी कि पत्ती-पत्ती टपक रही है जिगर का खून।
फिर उस दस्ते खलां की वीरान रातों में दुनिया भर के फूल आकर बैठ जाते है उस शज़र की टपकती छाँव में, उन टपकते कतरों को अपनी छोटी सी पंखुड़ियों पे तख्तनशीन करने के वास्ते। और भोर होते-होते लौट जाते है वापस अपनी-अपनी बगिया अपने-अपने जंगल। जहाँ हवाएं कुछ इस तरह से महक उठती है उनकी खुशबुओं से कि मानो अपने बीच होकर गुजरने वाली उन हवाओं के जिस्म पर काँटों ने बहुत सारे घाव दिए हो अपने नाखूनों से, तब यह देख फूलो का दिल भर आया हो और अपनी खुशबुओं का मरहम लगा दिया हो उन हवाओं के शफ़ाक़ बदन पे झिलमिलाते जख्मों पर। तभी तो कोई जब उन हवाओं का दम भरता है तो उसे भी कोई घाव याद आ ही जाता है।
फिर उफ़ूक के किसी छोर पर उजालें की पहली किरन देती है अपनी दस्तक। उसी दस्तक के कांधे पे पाँव रखकर नीला फ़लक अपने बेइन्तहाँ वजूद की नुमाइश करता हुआ मालूम पड़ता है। उसी वजूद को पाने की आरजू में फूलो की पंखुड़ियों पे तख्तनशीन होकर बैठी ओस की बूँदें भाँप की पर्दादारी के पीछे खुद को बना लेती है रंगबिरंगी तितलियाँ। और तब उन तितलियों के परों पे बिखरे हुए रंगो को देखकर ज़ेहन में ये एहसास पनपने लगता है कि जिगर का खून तो बड़ा रंगबिरंगा होता है।
फिर जब शाम के रूहानी गलियारों से होता हुआ रात का घना अँधेरा इस जमीं के हर एक रंग पर क़ाबिज़ होने को आता है, तब ये तितलियाँ, फूलो की रंगबिरंगी सल्तनत की ये खानाबदोश शहजादियाँ जाकर बैठ जाती है किसी सुदूर शहर की बहुमंजिला इमारत के टोपफ्लोर से नीचे झाँकते हुए किसी कमरे के कोने में रखे बुकशेल्फ में, मानो जैसे कुछ हुआ ही न हो। फिर कोई खालीपन से भरी हुई आँखें छूती है उन तितलियों के रंगबिरंगे परों को और उस नज़र के सिरों पर रह जाते है रंगों के कुछ निशान। और जब भी कोई उन आँखों में झाँक कर देखता है तो पूछ ही लेता है:
"क्या आपको 'भी' तितलियाँ पसंद है?"
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