वह पत्थर पे खिलते हुए
ख़ूबसूरत बनफ़्शे का इक फूल थी
जिसकी सांसों में जंगल की
वहशी हवाएँ समायी हुई थी
उसके बेसाख़्ता हुस्न को देखकर
इक मुसाफ़िर बड़े प्यार से तोड़ कर
अपने घर ले गया
और फिर
अपने दीवानख़ाने में रक्खे हुए
काँच के खूबसूरत से फूलदान में
उसको ऐसे सजाया
कि हर आनेवाले की पहली नज़र
उस पे पड़ने लगी
दाद-ओ-तहशी की बारिश में
वह भीगता ही गया
कोई उससे कहे
गोल्डन लीफ़ और यूडीकोलोन की
नर्म शहरी महक से
बनफ़्शे के नन्हें शगूफ़े का दम घुट रहा है
वह जंगल की ताज़ा हवा को
तरसने लगा है