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देश के महान संगीतकारो में से एक ओमप्रसाद नैयर (ओ.पी. नैयर), शायद ही कोई ऐसा हो जो ना जानता हो इन्हें! आज के ही दिन वे ७साल पहले हम सब को शारीरिक रूप से अलविदा कह गये थेI पर उनके निर्देशित किए हुए लगभग ७७हिन्दी फिल्मों के संगीत एवं गाने आज भी इतने ही लोगो के दिल में हैंI
नैयर साहब का जन्म लाहोर में १६जनवरी,१९२६ हुआ थाI ओ. पी. साहबने संगीतकी सेवा करने के लिए बीचमें ही पढ़ाई छोड़ दी I अपने संगीतकी सफ़र इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो से कीI
१९४९में 'कनीज'से इन्हें सिने जगतमें काम मिलना शुरू हुआ जो पहला बॅकग्राउंड संगीत थाI बतौर संगीतकार "आसमान"(१९५२) इनकी पहली फिल्म थीI इस तरह अपनी संगीत साधना के सफ़र की इन्होनें शुरुआत कीI ओ.पी. नैयर ' ओपी' के नाम से प्रसिध्ध हुएI फिर छमछमाछम,बाज आदि फिल्मों में संगीत दिया जो एक के बाद एक असफल रही और मुंबई से लौट जाने की सोच रहे थे के गुरुदत्तजी द्वारा निर्देशित 'आरपार' सुपरहिट रही, इनके संगीतने लोगों के दिल में जगह बना लीI
आर−पार, सी. आई. डी., तुमसा नहीं देखा आदि एक के बाद एक लगातार हिट फिल्में देते हुए ये सिने जगत में सबसे महँगे संगीतकार बने। १९५० में एक फिल्म में संगीत देने के १ लाख रुपये लेने वाले पहले संगीतकार थे। “नया दौर” इनकी सबसे लोकप्रिय फिल्म रही। इस फिल्म के लिए उन्हें 1957 में फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला।
हिन्दी धुन के साथ पाश्चात्य एवं पंजाबी तालमेल लोगोने नहीं सुना थाI ओपी साहब की अनोखी संगीत शैली ने लोगो को दीवाना बना दिया I नैयर साहबने अपने संगीत में सारंगी और पियानो का बहुत अच्छा प्रयोग कियाI
आशा भोंसले जी की खोज ओपी साहबने ही की ऐसा सिने जगत के काफ़ी लोगों का मानना हैं I एक यह भी बात है की उन्होने कभी लता मंगेशकरजी के साथ काम नहीं किया I उन्होनें गीता द्त्तजी, स्व. मोहम्मद रफ़ी साहबजी और आशा भोंसलेजी के साथ सबसे ज़्यादा काम किया जो लोगों के दिल पे अनूठी छाप छोड़ने लगीI
रफ़ी साहब से अलग होने के बाद महेन्द्र कपूर के साथ काम करने लगेI जहाँ मुकेशजी का गाया हुआ गंभीर गाना "चल अकेला,चल अकेला.." तो बादमें ' बाप रे बाप' में किशोर कुमारजी और ओपीजी की जुगलबंधी ने भी धूम मचाई और ये उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाती हैंIउन्हों ने कुछ दक्षिण प्रांतीय फिल्मों में भी संगीत दियाI
ओपीजी गानोका चयन बहुत ध्यान से करते थे और संगीत के हर प्रकार की नवीनताका प्रयोग करना उनकी विशिष्टता थीI जाँ निसार अख़्तर, कमर जलालबादी,अहमद वासी इत्यादि उनके चुनिंदा शायर थेI
साहिल लुधियानवी के लिखे हुए गाने और ओपी जी का संगीत, कभी ना भूलने वाले गीतोकी सौगात संगीतप्रेमीओ के लिए रहीI १९७४ में आशाजी से अलग होने के बाद नैयर साहब के सुनहरे गीतोको जैसे ग्रहण लग गयाI बादमें इन्हों ने कविता कृष्णमूर्ति,वाणी जयराम ,दिलराज कौर इत्यादि के साथ भी काम किया पर इनमें वे दूसरी आशा नहीं ला पाएI
अपने संगीतज़गत से अवकाश लेने के बाद ओ. पी.जी बहुत कम दोस्तों के संपर्क में रहेIएक दोस्त गजेन्द्र सिंहके कहने पर इन्हों ने 'सा-रे-गा-मा' में नयी पीढ़ी के गायकों का मार्गदर्शन कियाI
२८ जनवरी २००७को ८१ वर्ष की उम्र में जब उनका देहावास हुआ वे अहमद वासी के लिखे हुए गाने को संगीत दे रहे थेI ओ. पी. नैयर का नाम हिन्दी संगीतज़गतमें सुनहरे अक्षरोंमें लिखा हुआ हैIआज उनकी पुण्यतिथि पर "#स्याहीकॉम "परिवार देश के ख्यातनाम संगीतकार को श्रधांजलि अर्पित करता हैI
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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