Rina Badiani Manek's Blog – August 2014 Archive (32)

ऐश ट्रे पूरी भर गई है..../ गुलज़ार

जगह नहीं और डायरी में

ये ऐश ट्रे पूरी भर गई है

भरी हुई है जले-बुझे अधकहे ख़यालों की राखो-बू से

ख़याल पूरी तरह से जो कि जले नहीं थे

मसल दिया या दबा दिया था, बुझे नहीं वो

कुछ उनके टुर्रे पड़े हुए हैं

बस एक दो कश लेके ही कुछ मिसरे रह गये थे



कुछ ऐसी नज़्में जो तोड़ कर फेंक दी थी उसमें

धुआँ न निकले

कुछ ऐसे अशआर जो मेरे ब्रांड के नहीं थे

वो एक ही कश में खांस कर, ऐश ट्रे में

घिस के बुझा दिए थे



इस ऐश ट्रे में

'ब्लेड' से काटी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 31, 2014 at 5:40pm — No Comments

जो कहा नही गया / अज्ञेय

उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गई,

सुख की स्मिति कसक भरी,निर्धन की नैन-कोरों में काँप गई,

बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गई।

अधूरी हो पर सहज थी अनुभूति :

मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप गई-

फिर मुझ बेसबरे से रहा नहीं गया।

पर कुछ और रहा जो कहा नहीं गया।



निर्विकार मरु तक को सींचा है

तो क्या? नदी-नाले ताल-कुएँ से पानी उलीचा है

तो क्या ? उड़ा हूँ, दौड़ा हूँ, तेरा हूँ, पारंगत हूँ,

इसी अहंकार के मारे

अन्धकार में सागर के किनारे… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 31, 2014 at 8:04am — No Comments

वर्किंग वूमन / परवीन शाकिर

सब कहते हैं

कैसे गुरुर की बात हुई है

मैं अपनी हरियाली को खुद अपने लहू से सींच रही हूँ

मेरे सारे पत्तों की शादाबी

मेरे अपनी नेक कमाई है

मेरे एक शिगुफ़े पर भी

किसी हवा और किसी बारिश का बाल बराबर क़र्ज़ नहीं है

मैं जब चाहूँ खिल सकती हूँ

मेरे सारा रूप मिरी अपनी दरयाफ्त है

मैं अब हर मौसम से सर ऊँचा करके मिल सकती हूँ

एक तनवर पेड़ हूँ अब मैं

और अपनी ज़रखेज़ नुमू के सारे इम्कानात को भी पहचान रही हूँ

लेकिन मेरे अन्दर की ये बहुत पुरानी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 30, 2014 at 4:44pm — No Comments

सिर्फ़ एक लम्हा / जया जादवानी

सिर्फ़ एक लम्हा फूँकना
तुम मेरी साँस में साँस
मुझे जीवित कर देना
सिर्फ़ एक लम्हा
निहारना मेरी तरफ़
मुझमें पंख उगा देना
सिर्फ़ एक लम्हा
तुम मुझे देना शब्द एक
मुझे कालजयी बना देना
सिर्फ़ एक लम्हा धुन-सा
तुम मेई देह की
खाली बाँसुरी में उतरना
सातों राग भर देना
सिर्फ़ एक लम्हा ही जीकर
सदियों जीने से मुक्त हो पाऊँगी
सिर्फ़ एक लम्हे के लिए
मैं फिर-फिर वापस आऊँगी।

Added by Rina Badiani Manek on August 27, 2014 at 11:44am — No Comments

कूड़ा बीनते बच्चे / अनामिका

उन्हें हमेशा जल्दी रहती है

उनके पेट में चूहे कूदते हैं

और खून में दौड़ती है गिलहरी!

बड़े-बड़े डग भरते

चलते हैं वे तो

उनका ढीला-ढाला कुर्ता

तन जाता है फूलकर उनके पीछे

जैसे कि हो पाल कश्ती का!

बोरियों में टनन-टनन गाती हुई

रम की बोतलें

उनकी झुकी पीठ की रीढ़ से

कभी-कभी कहती हैं-

"कैसी हो","कैसा है मंडी का हाल?"

बढ़ते-बढ़ते

चले जाते हैं वे

पाताल तक

और वहाँ लग्गी लगाकर

बैंगन तोड़ने वाले

बौनों के वास्ते

बना… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 24, 2014 at 8:24pm — No Comments

बेजगह / अनामिका

“अपनी जगह से गिर कर

कहीं के नहीं रहते

केश, औरतें और नाख़ून” -

अन्वय करते थे किसी श्लोक को ऐसे

हमारे संस्कृत टीचर।

और मारे डर के जम जाती थीं

हम लड़कियाँ अपनी जगह पर।



जगह? जगह क्या होती है?

यह वैसे जान लिया था हमने

अपनी पहली कक्षा में ही।



याद था हमें एक-एक क्षण

आरंभिक पाठों का–

राम, पाठशाला जा !

राधा, खाना पका !

राम, आ बताशा खा !

राधा, झाड़ू लगा !

भैया अब सोएगा

जाकर बिस्तर बिछा !

अहा, नया घर है… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 24, 2014 at 6:36pm — No Comments

? / अमृता प्रीतम

धरती - अति सुंदर किताब
चाँद सूरज की जिल्द वाली
पर खुदाया ! यह दुख , भूख, सहम और गुलामी
यह तेरी इबारत है ?
-- या प्रूफों की गल्तियाँ ?

Added by Rina Badiani Manek on August 23, 2014 at 5:06pm — No Comments

बनफ़्शे का फूल / परवीन शाकिर

वह पत्थर पे खिलते हुई

ख़ूबसूरत बनफ़्शे का इक फूल थी

जिसकी साँसों में जंगल की

वहशी हवाएँ समायी हुई थी

उसके बेसाख़्ता हुस्न को देखकर

इक मुसाफ़िर बड़े प्यार से तोड़ कर

अपने घर ले गया

और फिर

अपने दीवानख़ाने में रक्खे हुए

काँच के ख़ूबसूरत से गुलदान में

उसको ऐसे सजाया

कि हर आनेवाले की पहली नज़र

उस पे पड़ने लगी

दाद-ओ-तहसीं की बारिश में

वह भीगता ही गया



कोई उससे कहे

गोल्डन लीफ़ और यूडीकोलोन की

नर्म शहरी महक… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 21, 2014 at 6:44pm — No Comments

अकारण प्यार से / अरुणा राय

स्वप्न में

मन के सादे कागज पर

एक रात किसी ने

ईशारों से लिख दिया अ....

और अकारण

शुरू हो गया वह

और एक अनमनापन बना रहने लगा

फिर उस अनमनेपन को दूर करने को

एक दिन आई खुशी

और आजू-बाजू कई कारण

खडें कर दिए

कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए

और वह लगा डग भरने , चलने और

और अखीर में उड़ने

अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी

जिधर का ईशारा करता अ...

और पाता कि यह दुनिया तो

इसी अकारण प्यार से चल रही है

और उसे पहली बार… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 19, 2014 at 9:46am — No Comments

इक नक़ल तुझे भी भेजूंगा / गुलज़ार

इक नक़ल तुझे भी भेजूंगा
ये सोच के ही.....
तन्हाई के नीचे कार्बन पेपर रखके मैं
उंची उंची आवाज़ में बात करता हूं

अल्फाज़ उतर आते हैं कागज़ पर लेकिन ...
आवाज़ की शक्ल उतरती नहीं
रातों की स्याही दिखती है !!

Added by Rina Badiani Manek on August 19, 2014 at 6:49am — No Comments

आज फिर चाँद की पेशानी से / गुलज़ार

आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ
आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा
आज फिर सीने में उलझी हुई वज़नी साँसें
फट के बस टूट ही जाएँगी, बिखर जाएँगी
आज फिर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाब में रात
आज फिर चाँद की पेशानी से उठता धुआँ

Added by Rina Badiani Manek on August 18, 2014 at 10:02pm — No Comments

दर्द हल्का है, साँस भारी है / गुलज़ार

दर्द हल्का है, साँस भारी है
जिये जाने की रस्म जारी है

आप के बाद हर घड़ी हमने
आप के साथ ही गुज़ारी है

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है

शाख़ पर कोई कहकहा तो खिले
कैसी चुप-सी चमन में तारी है

कल का हर वाक़या तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है

Added by Rina Badiani Manek on August 18, 2014 at 7:10pm — No Comments

चार तिनके उठा के / गुलज़ार

चार तिनके उठा के जंगल से
एक बाली अनाज की लेकर
चंद कतरे बिलखते अश्कों के
चंद फांके बुझे हुए लब पर
मुट्ठी भर अपने कब्र की मिटटी
मुट्ठी भर आरजुओं का गारा
एक तामीर की लिए हसरत
तेरा खानाबदोश बेचारा
शहर में दर-ब-दर भटकता है
तेरा कांधा मिले तो टेकूं!

Added by Rina Badiani Manek on August 18, 2014 at 6:01pm — No Comments

धूप लगे आकाश पे जब / गुलज़ार

धूप लगे आकाश पे जब
दिन में चाँद नज़र आया था
डाक से आया मुहर लगा
एक पुराना सा तेरा, चिट्ठी का लिफाफा याद आया
चिट्ठी गुम हुए तो अरसा बीत चुका
मुहर लगा, बस मटियाला सा
उसका लिफाफा रखा है !

Added by Rina Badiani Manek on August 18, 2014 at 5:51pm — No Comments

विडियो / गुलज़ार

उम्र इक स्पूल पे लिपटी होती -या लिपटती जाती ,
और तस्वीरें शबोरोज़ की महफ़ूज़ भी हो जाती सभी, टेप के उपर-

मैं तेरे दर्दों को दोबारा से जीने के लिये ,
रोज़ दोहराता उन्हें , रोज़ 'रि-वाइन्ड' करता,
वो जो बरसों में जिया था, उसे हर शब जीता !!

Added by Rina Badiani Manek on August 18, 2014 at 6:44am — No Comments

रोशनियों का शहर / मीनाकुमारी

आज की रात बहुत सर्द है

और सारी रोशनियां

न जाने कौन सा रास्ता सजाने चली गई है ।

ज़माने भर की तनवीरें

चोरी छुपे

कोई बारात देखने जा निकली हैं

और हर जानिब

ठिठुरा हुआ घोर अंधेरा छोड़ गई हैं

मैं सोच रही हूँ

इस रात को

ऐसी सियाही कहाँ से मिली ?

क्या दिन

रात की गिरह से बंधा नहीं ?

क्या करूँ ?

अंधेरे से जी डरता है

और आज तो

याद का वह सहमा सहमा चिराग़ भी

बिना कहे

उस शरीर जुलूस के साथ चला गया है

रोशनियों के शहर की… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 17, 2014 at 8:09pm — No Comments

...... /रीना

एक हाथ में दर्द
और दूजे में भरोसा ....

मैंने नज़्म के सामने
हाथ फैलाए.....
उसने दर्द ले लिया
और
मैं फिर चल पड़ी
भरोसा लेकर .......

Added by Rina Badiani Manek on August 16, 2014 at 10:13am — No Comments

मुझे मेरा जिस्म छोड़ कर बह गया नदी में / गुलज़ार

मुझे मेरा जिस्म छोड़ कर बह गया नदी में
अभी उसी दिन की बात है मैं नहाने उतरा था घाट पर जब ठिठर रहा था......
वो छू के पानी की सर्द तहज़ीब, डर गया था

मैं सोचता था
बग़ैर मेरे वो कैसे काटेगा तेज़ धारा
वो बहते पानी की बेरूख़ी जानता नहीं है
वो डूब जायेगा ..... सोचता था

अब उस किनारे पहुंच के मुझको बुला रहा है
मैं इस किनारे पे डूबता जा रहा हूं पैहम
मैं कैसे तैरूं बग़ैर उसके !

मुझे मेरा जिस्म छोड़ कर बह गया नदी में !!

Added by Rina Badiani Manek on August 15, 2014 at 1:27pm — No Comments

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना/ दीप्ति मिश्र

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना

खुदाया थक गई हूँ पर थकन से चूर मत करना



मुझे मालूम है की मैं किसी की हो नहीं सकती

तुम्हारा साथ गर माँगू तो तुम मंज़ूर मत करना



लो तुम भी देख लो कि मैं कहाँ तक देख सकती हूँ

ये आँखें तुम को देखें तो इन्हें बेनूर मत करना



यहाँ की हूँ वहाँ की हूँ, ख़ुदा जाने कहाँ की हूँ

मुझे दूरी से क़ुर्बत है ये दूरी दूर मत करना



न घर अपना न दर अपना, जो कमियाँ हैं वो कमियाँ हैं

अधूरेपन की आदी हूँ मुझे भरपूर… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 14, 2014 at 8:23pm — No Comments

પણ..../ રીના

જિંદગી જડી છે ...પણ
આંખ તો મળી છે...પણ

પ્હાડનેય તોડીને
મૂરતી ઘડી છે....પણ

ઊતરી ઉંચાઈથી
ખારી થઈ પડી છે...પણ

બે કિનારે તું ને હું
નાવ આ ખડી છે....પણ

આંખમાં ભરી શ્રધ્ધા
વ્હેમથી લડી છે....પણ

Added by Rina Badiani Manek on August 14, 2014 at 6:13pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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