Rina Badiani Manek's Blog – April 2014 Archive (17)

REALITY /~ Rabia al-Basri

In love, nothing exists between heart and heart.
Speech is born out of longing,
True description from the real taste.
The one who tastes, knows;
the one who explains, lies.
How can you describe the true form of Something
In whose presence you are blotted out?
And in whose being you still exist?
And who lives as a sign for your journey?

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Added by Rina Badiani Manek on April 29, 2014 at 8:03pm — No Comments

हमने सब शेर में सँवारे थे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हमने सब शेर में सँवारे थे

हमसे जितने सुख़न तुम्हारे थे



रंगों ख़ुश्बू के, हुस्नो-ख़ूबी के

तुमसे थे जितने इस्तिआरे थे



तेरे क़ौलो-क़रार से पहले

अपने कुछ और भी सहारे थे



जब वो लालो-गुहर हिसाब किए

जो तरे ग़म ने दिल पे वारे थे



मेरे दामन में आ गिरे सारे

जितने तश्ते-फ़लक में तारे थे



उम्रे-जाविदे की दुआ करते थे

‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे









सुख़न - संवाद

इस्तिआरे - रूपक

क़ौलो-क़रार -… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 28, 2014 at 10:32am — No Comments

વિવશ ઇતિહાસ / રીના

દેખાવા અને હોવાની
વચ્ચેનો
સંભાવનાનો પૂલ
પાર કરી શકું
તો........

વિવશતાના
લાંબા ઇતિહાસથી
ઘેરાયેલો છે સમય......

કેટલીક વાતો ને
શબ્દોની સજા
ન દેવાય
એ જ.............

Added by Rina Badiani Manek on April 25, 2014 at 7:41pm — 1 Comment

ग़ज़ल / परवीन शाकिर

सुकूं भी ख़्वाब हुआ नींद भी है कम कम फिर

क़रीब आने लगा दूरियों का मौसम फिर



बना रही है तेरी याद मुझको सलके-गुहर

पिरो गयी मेरी पलकों में आज शबनम फिर



वो नर्म लहजे में कुछ कह रहा है फिर मुझसे

छिड़ा है प्यार के कोमल सुरों में मद्धम फिर



तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूं

उलझ रहा है मेरे फ़ैसलों का रेशम फिर



न उसकी बात में समझुं न वो मेरी नज़रें

मुआमलाते-ज़ुबां हो चले है मुबहम फिर



ये आनेवाला नया दुख भी उसके सर ही… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 25, 2014 at 5:45pm — No Comments

ये बात तो ग़लत है / निदा फ़ाज़ली

कोई किसी से खुश हो, और वो भी बारहा हो, ये बात तो ग़लत है

रिश्ता लिबास बनकर, मैला नहीं हुआ हो, ये बात तो ग़लत है



वो चाँद राह गुज़र का, साथी जो था सफ़र का, था मौजिज़ा नज़र का,

हर बार की नज़र से, रौशन वो मौजिज़ा हो, ये बात तो ग़लत है



है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची, फिर भी है थोड़ी कच्ची ,

जो उसका हादिसा है, मेरा भी तजुर्बा हो, ये बात तो ग़लत है



दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी, रूकती नहीं कहानी ,

जितना लिखा गया है, उतना ही वाक़या हो,… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 25, 2014 at 1:02pm — No Comments

ગઝલ /નયન દેસાઇ

એક સુખનું નગર છે આઘેરૂં
સ્વપ્ન જોયું હતું મેં આછેરૂં

સહેજ પડછાયો, સહેજ માણસ છે,
ચિત્ર દોર્યું છતાંય આછેરું.

ચામડીમાં વણાઈ એકલતા,
હોય ચાદર તો એને ખંખેરું.

ક્યાંય દેખાય છે ધજા જેવું ?
ગામ પહેલાં તો આવશે દેરું !

જિંદગી નામની કુંવરબાઈ,
ને ફજેતીમાં રોજ મામેરું !

Added by Rina Badiani Manek on April 23, 2014 at 6:45pm — No Comments

ग़ज़ल / शहरयार

ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है

हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है



घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है

अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है



बिछड़े लोगों से मुलाकात कभी फिर होगी

दिल में उम्मीद तो काफ़ी है, यक़ीं कुछ कम है



अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में

कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है, कहीं कुछ कम है



आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब

ये अलग बात कि पहली- सी नहीं, कुछ कम है







तवक़्क़ो -… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 22, 2014 at 7:02pm — No Comments

ग़ज़ल / मुज़फ़्फ़र वारसी

मे'यार समाअत को बढ़ाने के लिए है

होंठों पे ख़मोशी भी सुनाने के लिए है



कुछ तू ही मेरे कर्ब का मफ़हूम समझ ले

हँसता हुआ चेहरा तो ज़माने के लिए है



अब शौक़-ए-तमाशा नहीं रखती मेरी आँखें

ये आईना दुनिया को दिखाने के लिए है



दामन तेरा झोंके की तरह हाथ न आया

ख़ुश्बू भी तेरी मुझको जलाने के लिए है



मैं अपनी तमन्नाओं के मक़्तल में खड़ा हूँ

अपना ही लहू प्यास बुझाने के लिए है



हर कोई यहाँ अपनी ही दस्तार उछाले

ये शो'बदा क़ामत को… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 20, 2014 at 9:38pm — No Comments

ग़ज़ल / जावेद अख़्तर

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है

ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है



जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं

कि मेरी ज़जीर धीरेधीरे पिघल रही है



मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन

मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है



न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे

सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है



मैं जानता हूँ कि ख़ामशी में ही मस्लहत है

मगर यही मस्लहत मेरे दिल को खल रही है



कभी तो इंसान ज़िंदगी की… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 19, 2014 at 4:00pm — No Comments

I Do Not Love You Except Because I Love You / Pablo Neruda

I do not love you except because I love you;

I go from loving to not loving you,

From waiting to not waiting for you

My heart moves from cold to fire.



I love you only because it's you the one I love;

I hate you deeply, and hating you

Bend to you, and the measure of my changing love for you

Is that I do not see you but love you blindly.



Maybe January light will consume

My heart with its cruel

Ray, stealing my key to true… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 14, 2014 at 7:57am — No Comments

नज़्म का तज़्ज़िया करते करते /गुलज़ार

नज़्म का तज़्ज़िया करते करते
पूरा गुलाब ही छील दिया
मिसरे अलग, अल्फ़ाज़ अलग
डंठल-सा बचा, न खाने को, न सूँघने को !

ख़ुश्बू कुछ हाथ पे मसली गई
कुछ मिट्टी में गिर के गर्द हुई
नज़्म पढ़ूँ तो वो भी अब
ख़ाली बर्तन सी बजती है !!

गुलज़ार

Added by Rina Badiani Manek on April 13, 2014 at 10:40am — No Comments

A child said, What is the grass? / Walt Whitman

A child said, What is the grass? fetching it to me with full

hands;

How could I answer the child?. . . . I do not know what it

is any more than he.



I guess it must be the flag of my disposition, out of hopeful

green stuff woven.



Or I guess it is the handkerchief of the Lord,

A scented gift and remembrancer designedly dropped,

Bearing the owner's name someway in the corners, that we

may see and remark, and say Whose?



Or I guess… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 12, 2014 at 8:09am — No Comments

एक द्रष्टिकोण / अमृता प्रीतम

सूरज को सारे खून माफ है
दुनिया के हर इन्सान का वह रोज़ 'एक दिन' कतल करता है
और हर एक उम्र का एक टुकड़ा रोज़ ज़िबह होता है
इन्सान के इख्तियार में बस इतना है -
कि ज़िबह हुए टुकड़े को वह घबरा के फेंक दे, और डरे,
या निडर उसे कबाब की तरह भूने, खाये
और साँसों की शराब पीता वह अगले टुकड़े का इन्तज़ार करे........

Added by Rina Badiani Manek on April 10, 2014 at 6:59pm — 2 Comments

ख़ुदकलामी /शहरयार

उधर देखो हवा के बाज़ुओं में

एक आहट क़ैद है

गुंजान पेड़ों की कतारों में

नयी पगडंडियों की सूनी आँखें

नुक़ूशे-पा तुम्हारे ढूँढती हैं



ज़मीं करवट बदलने के लिए बेचैन सी है

आसमाँ पर रात की अफ़वाज तलवारें लिये

सूरज की जानिब बढ़ रही हैं



अगर तुम चाहते हो

इस ज़मीं पर हुक्मरानी हो तुम्हारी

फ़जूँ कुछ सरगिरानी हो तुम्हारी

तो मेरा बात मानो

हवा के बाज़ुओं में क़ैद इस आहट को

अब आज़ाद कर दो



शब्दार्थ

ख़ुदकलामी - ख़ुद से… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 9, 2014 at 10:30am — No Comments

Alone With Everybody / Charles Bukowski

the flesh covers the bone

and they put a mind

in there and

sometimes a soul,

and the women break

vases against the walls

and the men drink too

much

and nobody finds the

one

but keep

looking

crawling in and out

of beds.

flesh covers

the bone and the

flesh searches

for more than

flesh.



there's no chance

at all:

we are all trapped

by a singular

fate.



nobody ever… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 6, 2014 at 7:29am — No Comments

उधार / अज्ञेय

सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी

और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।



मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार

चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?

मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—

तिनके की नोक-भर?

शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—

किरण की ओक-भर?

मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,

लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।

मैने आकाश से मांगी

आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।



सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।

यों… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 4, 2014 at 10:44am — No Comments

મત્સ્યગંધા વિશે ગઝલ / નયન દેસાઈ

આવ, દરિયો થૈને મુજને જળરૂપે તું સાંભરે
મન હલેસાતું રહે, ખળખળ રૂપે તું સાંભરે .

જન્મ જન્માંતરની આ તૂટી તરસ લઈ ક્યાં જવું ?
મુલ્ક સહરાનો અને મૃગજળ રૂપે તું સાંભરે.

કેટલી નૌકા ડૂબી ને કેટલા કાંઠા તૂટ્યા!
રેત પર અંકાયેલી હરપળ રૂપે તું સાંભરે .

નાવ હંકારી નથી ને ત્યાં વમળ સર્જાય છે,
શાંત દરિયાના એ ઊંડા જળ રૂપે તું સાંભરે .

Added by Rina Badiani Manek on April 2, 2014 at 12:17pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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