Rina Badiani Manek's Blog – March 2014 Archive (30)

ને પછી નિ:શબ્દતા. / ઉર્વીશ વસાવડા

એક કંકર, કૈંક સ્પંદન, ને પછી નિ:શબ્દતા,
સ્પર્શ પહેલો, સ્હેજ કંપન, ને પછી નિ:શબ્દતા.

યાદ છે એનું પ્રથમ એ આગમન આજે હજી ,
સ્હેજ ખનક્યું એક કંગન, ને પછી નિ:શબ્દતા.

શબ્દ ધરબાયેલ ઊંડે હોય, એને પામવા,
કેટલી રાતોનું મંથન, ને પછી નિ:શબ્દતા.

કાળની સૂક્કી ધરા પર કેટલું ચાલ્યા છતાં ,
એક બે પગલાંનું અંકન, ને પછી નિ:શબ્દતા.

જન્મ સાથે દેહમાં કેદી થયેલા શ્વાસનું,
એક પળમાં મુક્ત બંધન , ને પછી નિ:શબ્દતા.

Added by Rina Badiani Manek on March 27, 2014 at 4:41pm — No Comments

शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले / परवीन शाकिर

शाम आयी तेरी यादों के सितारे निकले

रंग ही ग़म के नहीं नक़्श भी प्यारे निकले



रक्स जिनका हमें साहिल से बहा लाया था

वो भँवर आँख तक आये तो क़िनारे निकले



वो तो जाँ ले के भी वैसा ही सुबक-नाम रहा

इश्क़ के बाद में सब जुर्म हमारे निकले



इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे

वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले



धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे

शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले



परवीन शाकिर



सुबक-नाम = जिसका नाम… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 27, 2014 at 2:39pm — 1 Comment

વિપ્રલબ્ધા ગઝલ / જવાહર બક્ષી

એક ભ્રમનો આશરો હતો .... એ પણ તૂટી ગયો
પગરવ બીજા બધાયના હું ઓળખી ગયો

ઘટના વિના પસાર થયો આજનો દિવસ
સૂરજ ફરી ઊગ્યો ને ફરી આથમી ગયો

આજે ફરીથી શક્યતાનું ઘર બળી ગયું
મનને મનાવવા ફરી અવસર મળી ગયો

બીજું તો ખાસ નોંધવા જેવું થયું નથી
હું બારણાં સુધી જઈ...... પાછો વળગી ગયો

મારાથી આજ તારી પ્રતીક્ષા થઈ નહીં
મારો વિષાદ જાણે કે શ્રદ્ધા બની ગયો

Added by Rina Badiani Manek on March 24, 2014 at 6:29pm — No Comments

The Poet /Anurag Mathur.

At least there is poetry,

Into which to empty

The tortured corpse of the day.

A morticial of embalm

the ravaged body.

A priest to sing hymns

to still the soul

of the recently departed.



He shudders under the whiplash

of the daily hours,

but at night there is the poetry,

like balm, kissing the wounds.



And when he is afire with love,

a screaming inferno

of smoking agony,

surrounded by the

the implacable… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 24, 2014 at 7:06am — No Comments

Tonight I can write the saddest lines / Pablo Neruda

Tonight I can write the saddest lines.



Write, for example,'The night is shattered

and the blue stars shiver in the distance.'



The night wind revolves in the sky and sings.



Tonight I can write the saddest lines.

I loved her, and sometimes she loved me too.



Through nights like this one I held her in my arms

I kissed her again and again under the endless sky.



She loved me sometimes, and I loved her too.

How could one not… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 22, 2014 at 11:33am — No Comments

तिनका तिनका काँटे तोड़े / गुलज़ार

तिनका तिनका काँटे तोड़े, सारी रात कटाई की

क्यों इतनी लंबी होती है, चाँदनी रात जुदाई की



नींद में कोई अपने आप से बातें करता रहता है

काल कुंए मे गुंजती है आवाज़ किसी सौदाई की



सीने में दिल की आहट, जैसे कोई जासूस चले

हर साये का पीछा करना, आदत है हरजाई की



आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे से भर जाते हैं

क्या तुमने उड़ती देखी है, रेत कभी तन्हाई की



तारों की रोशन फसलें और रात की एक दरांती थी

साहू ने गिरवी रख ली थी, मेरी रात कटाई… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 22, 2014 at 10:08am — No Comments

મોકલી દીધા/રીના

બે તરફ બે છોર દઈને મોકલી દીધા,
વાંસડો ને દોર દઈને મોકલી દીધા.

આંખને આપી તો આ કાનોની પાંપણ ક્યાં?
ચોતરફ આ શોર દઈને મોકલી દીધા!!

દીધું છે તસવીરમાં વરસાદ જેવું સુખ,
સાથે આ મનમોર દઈને મોકલી દીધા.

ડોર કઠપુતળીની તારા હાથમાં રાખી,
ને પછી આ તોર દઈને મોકલી દીધા.

દૂર દેખાડીને કોઈ રામની મૂરત
છાબડીમાં બોર દઈને મોકલી દીધા.

રીના

Added by Rina Badiani Manek on March 21, 2014 at 1:02pm — 1 Comment

कहीं जाना नहीं है / गुलज़ार

कहीं जाना नहीं है
बस यूँही सड़कों पे घूमेंगे
कहीं पर तोड़ेंगे सिग्नल
किसी की राह रोकेंगे
कोई चिल्ला के गाली देगा
कोई 'होर्न' बजायेगा !

ज़रा अहसास तो होगा कि ज़िंदा हैं
हमारी कोई हस्ती है !!!!

Added by Rina Badiani Manek on March 21, 2014 at 12:25pm — No Comments

क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं / गुलज़ार

क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ

Added by Rina Badiani Manek on March 18, 2014 at 3:16am — 1 Comment

नज़्म / अमृता प्रीतम

मैंने कल रात शीशे की सुराही में -

ख़यालों की शराब भरी थी

ख़याल बड़े सुर्ख थे

दोस्तों ने जाम पिये थे

और उन लफ़्ज़ों के टोस्ट दिये थे

जो छाती में नहीं उगते

वे कौन से पेड़ पर उगते हैं

और होठों के गमले में कैसे आते हैं

यह सोचने का वक़्त नहीं था

या ऐसे कहूँ कि सोचने से सहम लगता था

यह लफ़्ज़ों का जश्न था

भुलावों की वर्षगांठ

मैं थी, रात थी, ख़यालों की शराब थी, और बड़े दोस्त ,

दोस्त जो कुछ बुलाने पर आए थे, कुछ बिन बुलाए

सिर्फ़ एक कोई… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 17, 2014 at 11:50pm — No Comments

नज़्म / गुलज़ार

तुम्हारे ग़म की डली उठाकर
ज़ुबाँ पर रख ली है देखो मैंने
वह क़तरा-क़तरा पिघल रही है
मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ
पिघल-पिघलकर गले से उतरेगी आख़िरी बूँद दर्द की जब
मैं साँस की आख़िरी गिरह को भी खोल दूँगा .......

गुलज़ार

Added by Rina Badiani Manek on March 16, 2014 at 7:16pm — No Comments

होती है गर्चे: कहने से यारो, पराई बात / मीर तक़ी मीर

होती है गर्चे: कहने से यारो, पराई बात

पर हम से तो थमी न कभू, मुँह पर आई बात



कहते थे, उससे मिलिये, तो क्या क्या न कहिये, लेक

वह आ गया तो सामने उसके न आई बात



अब तो हुए हैं हम भी तेरे ढब से आश्ना

वाँ तूने कुछ कहा, कि इधर हमने पाई बात



'आलम सियाह ख़ान: है किसका, कि रोज़-ओ-शब

यह शोर है कि देती नहीं कुछ सुनाई बात



ख़त लिखते लिखते मीर ने दफ़्तर किये रवाँ

इफ़ात-ए-इश्तियाक़ ने, आख़िर बढ़ाई बात



मीर तक़ी मीर



सियाह… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 16, 2014 at 6:30pm — No Comments

हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता / अहमद फ़राज़

हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता

कौन दरिया को उलटता कौन गौहर देखता



वो तो दुनिया को मेरी दीवानगी ख़ुश आ गई

तेरे हाथों में वगरना पहला पत्थर देखता



आँख में आँसू जड़े थे पर सदा तुझ को न दी

इस तवक़्क़ो पर कि शायद तू पलट कर देखता



मेरी क़िस्मत की लकीरें मेरे हाथों में न थीं

तेरे माथे पर कोई मेरा मुक़द्दर देखता



ज़िंदगी फैली हुई थी शामे-हिज्राँ की तरह

किसको इतना हौसला था कौन जी कर देखता



डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 16, 2014 at 6:07pm — No Comments

Desert Places / Robert Frost

Snow falling and night falling fast, oh, fast

In a field I looked into going past,

And the ground almost covered smooth in snow,

But a few weeds and stubble showing last.



The woods around it have it - it is theirs.

All animals are smothered in their lairs.

I am too absent-spirited to count;

The loneliness includes me unawares.



And lonely as it is, that loneliness

Will be more lonely ere it will be less -

A blanker whiteness of… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 16, 2014 at 8:01am — No Comments

One Art / Elizabeth Bishop

The art of losing isn’t hard to master;

so many things seem filled with the intent

to be lost that their loss is no disaster.



Lose something every day. Accept the fluster

of lost door keys, the hour badly spent.

The art of losing isn’t hard to master.



Then practice losing farther, losing faster:

places, and names, and where it was you meant

to travel. None of these will bring disaster.



I lost my mother’s watch. And look! my last,… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 15, 2014 at 7:23am — No Comments

उड़ान हूँ मैं / अरुणा राय

हर बात के मानी नहीं होते

चीज़ें होती हैं

अपनी सम्पूर्णता में बोलती हुई

हर बार उनका कोई अर्थ नहीं होता

उन्हें सीमित करता हुआ



जैसे अपने अनंत रश्मि बिन्दुओं से बोलती

सुबहें होती हैं

जैसे फैलाती है तुम्हारी निगाह

छोर अछोर को समेटती ...



जीवन बढ़ता है

तमाम अर्थो को व्यर्थ करता

हमेशा

एक नए आकाश की ओर



उसका हिस्सा बनो

तनो मत

बल्कि खोलो खुद को

जैसे अन्धकार के गर्भ गृह से खुलती हैं

सुबहें



एक… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 13, 2014 at 4:55pm — No Comments

ग़ज़ल / परवीन शाकिर

मक़तले-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह

दिल भी काम आया है गुमनाम सिपाही की तरह



एक लम्हे ने ज़माने की रज़ा पूछी थी

गुफ़्तगू होने लगी ज़िल्ले-इलाही की तरह



ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा

ख़ामशी भी तो हुई पुश्तपनाही की तरह



उसने ख़ुश्बू से कराया था तआरूफ़ मेरा

और फिर मुझको बिखेरा भी हवा ही की तरह



कुल्लुहुम एक दिया और हवा की इक्लीम

फैलती जाए मुक़द्दर की सियाही की तरह



परवीन शाकिर



मक़तले-वक़्त - समय का… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 13, 2014 at 12:49pm — 1 Comment

મૂળ મરાઠી કવિતા/ નિરંજન ઉજગરે અનુવાદ : નલિની માડગાંવકર

એકાદ વ્યક્તિની ભાષા ન સમજવી

એ કંઈ કારણ નથી બનતું

એને રમતમાં સહભાગી ન બનાવવાનું



પક્ષીની ચાંચ બાંધીને

એનું ગીત અટકાવીએ તો પણ

એના નાકમાંથી આવે છે સીટી જેવો અવાજ

ગરોળીની તૂટેલી પૂંછડી લાંબો સમય તરફડતી રહે છે.

જીભને કાપીને ટૂંકી કરીએ ત્યારે જીભ પરના

શબ્દોનું શું થાય છે

એનું સંશોધન કરવા માટે

સરમુખત્યારોએ અનેક પ્રયોગશાળા સ્થાપી

એમની બરણીઓમાં ભેગી કરાયેલી, કપાયેલી જીભો.

પણ શબ્દો પ્રગટ થતા રહ્યા

અનેક જીવતી જીભોમાંથી.



કોઈક… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 13, 2014 at 10:16am — No Comments

एक नयी 'हां' / अमृता प्रीतम

ज़िंदगी को मैंने एक नयी 'हां' कर दी है......

एक 'नांह' थी

सम्भावना के पैरों में - अज़ल से ठुके हुए कील जैसी -

पर 'हां' के अर्थ को वही पहचानता

जो कील के वजूद से 'नांह' करनी जानता .....

और वही 'नांह' मैंने पैरों से निकाल कर

अपनी हथेलियों पे धर ली है ......

और ज़िंदगी को मैंने एक 'हां' कर दी है......



सम्भावना के कदमों से -

यह धरती कुछ मांग रही दिखती है

और आज दायें पैर की एड़ी

उसने राहों पर रख दी है.....



यह नाजुक बदन की… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 12, 2014 at 8:19am — 1 Comment

A Dream Within A Dream/ Edgar Allan Poe

Take this kiss upon the brow!

And, in parting from you now,

Thus much let me avow-

You are not wrong, who deem

That my days have been a dream;

Yet if hope has flown away

In a night, or in a day,

In a vision, or in none,

Is it therefore the less gone?

All that we see or seem

Is but a dream within a dream.



I stand amid the roar

Of a surf-tormented shore,

And I hold within my hand

Grains of the golden sand-

How few!… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 9, 2014 at 9:41pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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