Rina Badiani Manek's Blog – February 2014 Archive (45)

Chicken - Licken / Maya Angelou

She was afraid of men,
sin and the humors
of the night.
When she saw a bed
locks clicked
in her brain.

She screwed a frown
around and plugged
it in the keyhole.
Put a chain across
her door and closed
her mind.

Her bones were found
round thirty years later
when they razed
her building to
put up a parking lot.

Autopsy read:
dead of acute peoplelessness.

Added by Rina Badiani Manek on February 26, 2014 at 5:31pm — 1 Comment

दोस्त / गुलज़ार

बे-यारो मददगार ही काटा था सारा दिन
कुछ ख़ुद से अजनबी सा,
तन्हा , उदास सा,
साहिल पे दिन बुझा के मैं, लौट आया फिर वहीं ,
सुनसान सी सड़कों के ख़ाली मकान में !

दरवाज़ा खोलते ही, मेज़ पे रखी किताब ने कहा,
"देर कर दी दोस्त "

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 4:00pm — No Comments

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदायें भेजी है / गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदायें भेजी है

गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं



जो आफ़ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं

वो दिल है मेरा उसी की शु'आयें भेजी हैं



तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगती

वह सारी यादें जो तुमको रूलायें भेजी हैं



स्याह रंग, चमकती हुई किनारी है

पहन लो अच्छी लगेगी घटायें भेजी हैं



तुम्हारे ख़्वाब से हरदम लिपट के सोते हैं

सज़ायें भेज दो, हमने ख़तायें भेजी हैं



अकेला पत्ता हवा में बहुत बुलंद उड़ा

ज़मीं… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 2:59pm — No Comments

एक मुलाकात / अमृता प्रीतम

मैं चुप, शांत और अडोल खड़ी थी

सिर्फ़ पास बहते समुद्र में तूफ़ान था

फिर समुद्र को ख़ुदा जाने क्या ख़याल आया

उसने तूफ़ान की इक पोटली सी बाँधी

मेरे हाथों में थमाई और हँसकर कुछ दूर हो गया



हैरान थी पर उसका चमत्कार ले लिया

पता था कि इस तरह की घटना कभी सदियों में होती है



लाखों ख़याल आये

माथे में झिलमिलाये



पर खड़ी रह गयी कि इसको उठाकर

अब अपने शहर में मैं कैसे जाऊंगी ?

मेरे शहर की हर गली तंग है

मेरे शहर की हर छत नीची… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 12:08am — No Comments

अमृता प्रीतम

न मैंने वुजू किया है, न कोई सजदा किया है

न मन्नत माँगने आई हूं

तेरे चारों चिराग जलते रहें

मैं तो पांचवां जलाने आई हूं.....



दुखों को पेल कर मैंने तेल लिया है

और माथे का तेवर एक रूई की बत्ती

जो माथे में सजाई है.....

चेतना की नदी में हाथों को धोया है

माथे का दिया हथेलियों पर लिया है

और उसे आत्मा की आग छुआ दी है......



यह मिट्टी का दीया , तूने ही तो दिया था

मैंने तो उसे आग का शगुन डाला है

और तेरी अमानत लौटा लाई हूं....

तेरे… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 10:15am — No Comments

इक नज़्म / गुलज़ार

ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पर हाथ छुड़ा कर तुम
यूं तन तन्हा चल निकली हो
इस ख़ौफ़ से शायद राह भटक जाओ न कहीं
हर मोड़ पे मैंने नज़्म खड़ी कर दी है !

थक जाओ अगर -----
और तुमको ज़रूरत पड़ जाये,
इक नज़्म की उँगली थाम के वापस आ जाना !!

गुलज़ार

Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 8:19am — No Comments

...अमृता प्रीतम

आसमान के महलों में मेरा सूरज सो रहा है
जहाँ कोई द्वार नहीं , कोई खिड़की नहीं
और सदीयों के हाथों ने
जो पगदंड़ी बनाई है -
वह मेरी सोच के पैरों के लिए
बहुत संकरी है......

Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 1:50am — No Comments

बदल कर देखें तो रस्ता / गुलज़ार

बदल कर देखें तो रस्ता,
वहीं से आते जाते हैं हमेशा !

वही है भेजता है, ऐसा कहते हैं
कि बिल्डर जिस तरह साइट पे वर्कर्ज़ भेजता है
बुला लेता है जब उसकी दिहाड़ी ख़त्म होती है !

बहुत से और भी सय्यारे हैं इस कायनात में
बदल कर देखें कोई और मालिक ज़िंदगी का
कहीं पे और भी कोई ख़ुदा होगा !

Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 12:56am — No Comments

तन्हाई तारीक कुआँ है / गुलज़ार

तन्हाई तारीक कुआँ है
तेरा ख़याल जो बोले कहीं से
आसमान रोशन हो जाए
ख़ामोशी के दलदल में
कब से मेरे पाँव फँसे हैं !

Added by Rina Badiani Manek on February 21, 2014 at 11:41pm — No Comments

बस्ती / अमृता प्रीतम

हम, खाँसी , धुआँ , मच्छर , मक्खियाँ और जुएँ
और कुड़े का ढेर , और हड्डियों के पिंजर
सब प्रोटेस्ट करते हैं
और बताते हैं हमें यह बस्ती अलाट हुई है
कुछ सपनोंने रात को झुग्गियाँ बनाई है
यह झुग्गियाँ उठाओ क्योंकि यह 'अनओथोनराइज़्ड' हैं ।

Added by Rina Badiani Manek on February 21, 2014 at 9:38am — 1 Comment

मशविरा / परवीन शाकिर

हमारी मुहब्बत की
क्लीनीकल मौत वाक़े हो चुकी है !
माज़रतों और उज़्र-ख़्वाहियों का
मसनूई तनफ़्फ़ुस
उसे कब तक ज़िंदा रखेगा
बेहतर यही है
कि हम मुनाफ़्फ़ित का प्लग निकाल दें
और एक ख़ूबसूरत जज़्बे को
बावकार मौत मरने दें !

माज़रतों - विवशता
उज़्र-ख़्वाहियों - बहाने बाज़ी
मसनूई तनफ़्फ़ुस - बनावटी साँस
मुनाफ़्फ़ित - पाखंड
बावकार - सम्मानजनक

Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 10:21pm — No Comments

રોન્ગ નંબર / હર્ષદેવ માધવ (સંસ્કૃત કવિતા ) અનુવાદ : નલિની માડગાંવકર

જળ બનીને

સમુદ્રનો સંપર્ક કરવા

ટેલિફોન નંબર જોડું છું

ત્યાં રેતીનો અવાજ સંભળાય છે,

'માફ કરજો, આ રોંગ નંબર છે'.

પાંદડું બનીને

વૃક્ષ માટે પૂછું છું

ત્યારે

પાનખરનો ગુસ્સો ભભૂકી ઊઠે છે,

'તું નીચે ખરી પડ, તું નંબર ભૂલી ગયો છે.'

વાટ ભૂલેલા વટેમાર્ગુ બનીને

માર્ગ શોધું છું

ત્યારે વિકટ જંગલ કહે છે

'ટેલિફોનનું રિસીવર નીચે મૂક.'

હું

થાકેલો - હારેલો

વિચારું છું

ત્યારે

ચારે બાજુથી સંભળાય છે

ટેલિફોનની ઘંટડીઓનો… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 12:46pm — No Comments

रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था ’प्यार’ तुमने / हरिवंशराय बच्चन

रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था ’प्यार’ तुमने

फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में

और चारों ओर दुनिया सो रही थी,

तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं

जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,

मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे

अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,

रात आधी खींच कर मेरी हथेली

रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।



एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,

कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,

इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू

बह… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 7:15am — No Comments

ઘડી છ આ / મનોજ ખંડેરિયા

ઇચ્છાનો સૂર્ય અસ્ત થવાની ઘડી છે આ

અજવાશ અસ્તવ્યસ્ત થવાની ઘડી છે આ



ધસમસતું ઘોડાપૂર નીરવતાનું આવતું ,

કાંઠાઓથી વિરક્ત થવાની ઘડી છે આ



આવી ગયો છે સામે શકુનિ સમો સમય

આજે ફરી શિકસ્ત થવાની ઘડી છે આ



થાકી ગયાં હલેસાં, હવે સઢ ચડાવી દો !

પાછા પવન-પરસ્ત થવાની ઘડી છે આ



હર ચીજ પર કળાય અસર પક્ષઘાતની,

જડ્વત નગર સમસ્ત થવાની ઘડી છે આ



લીલાશ જેમ પર્ણથી જુદી પડી જતી

એમ જ હવે વિભક્ત થવાની ઘડી છે આ



પ્રગટાવ પાણિયારે તું… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 5:33pm — No Comments

ग़ज़ल / गुलज़ार

रूके रूके से क़दम रूक के बारबार चले
क़रार ले के तेरे दर से बेक़रार चले

उठाये फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले

न जाने कौनसी मिट्टी वतन की मिट्टी थी
नज़र में, धूल, जिगर में लिए गुबार चले

सहर न आयी कई बार नींद से जागे
थी रात, रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले

मिली है शम'अ से रस्मे-आशिक़ी हम को
गुनाह हाथ पे ले कर गुनाहगार चले

गुलज़ार

Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 4:56pm — 1 Comment

सुहानी ख़ामोशी......./ मीनाकुमारी

कभी ऐसे पुरसुक़ून लम्हात भी आएंगे

जब

मैं भी उसी तरह सो जाऊंगी

वह ख़ामोशी

कितनी सुहानी होगी

मौत के बाद

अगरचे महज़ ख़ला है

सिर्फ़ तारीकी है मगर

वह तारीकी

इस करब-अंगेज़ उजाले से

यक़ीनन बेहतर होगी

क्योंकि

मैं

उन ज़िंदगीयों में से हूँ जिन्हें

हर सुबह निहायत क़लील सी रोशनी मिलती है

उम्मीद की इतनी-सी किरन कि

सिर्फ़ दिनभर ज़िंदा रह सकें



और जिस दिन

यह रोशनी भी न मिल सकी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 1:37pm — No Comments

बस इतना याद है / परवीन शाकिर

दुआ तो जाने कौन-सी थी
ज़ह्‍न में नहीं
बस इतना याद है
कि दो हथेलियाँ मिली हुई थीं
जिनमें एक मेरी थी
और इक तुम्हारी

Added by Rina Badiani Manek on February 18, 2014 at 2:10am — No Comments

अल्लाह की दुहाई / अमृता प्रीतम

कोई एक बंजारा था --
कन्धों पर गठरी लिए आया
इश्क का नाफा खरीद लिया मैंने
तो बोला -- अल्लाह की दुहाई है ।

विरह का एक खरल था--
मैं सुरमे सी पिस गई उसमें
तो नील गगन की सुंदरी --
चुटकी भर मांगने आई है ।

तिनकों की मेरी झोंपडी
कोई आसन कहाँ बिछाऊँ
कि तेरी याद की चिनगारी--
मेहमान बनकर आई है ।

मेरी आग मुझे मुबारक !
कि आज सूरज मेरे पास आया
और एक कोयला मांग कर उसने
अपनी आग सुलगाई है ।

Added by Rina Badiani Manek on February 17, 2014 at 11:37am — No Comments

उस की हसरत है / अमीर मीनाई

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ



मेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ



डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा

कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ



ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है

के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ



ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना

क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ



उस के पहलू में जो ले… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 15, 2014 at 10:47pm — No Comments

ज़िंदगी / अमृता प्रीतम

यह ज़िंदगी एक रात थी
कि हम तो जागते रहे -
किस्मत को नींद आ गई.....

इस मौत से वाकिफ हैं हम
अक्सर हमारी ज़िंदगी -
उसका ज़िक्र करती रही......

आती है अपनी याद सी
जब सामने आकाश में -
है टूटता तारा कोई ......

Added by Rina Badiani Manek on February 15, 2014 at 4:23pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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