Rina Badiani Manek's Blog (234)

एक नयी 'हां' / अमृता प्रीतम

ज़िंदगी को मैंने एक नयी 'हां' कर दी है......

एक 'नांह' थी

सम्भावना के पैरों में - अज़ल से ठुके हुए कील जैसी -

पर 'हां' के अर्थ को वही पहचानता

जो कील के वजूद से 'नांह' करनी जानता .....

और वही 'नांह' मैंने पैरों से निकाल कर

अपनी हथेलियों पे धर ली है ......

और ज़िंदगी को मैंने एक 'हां' कर दी है......



सम्भावना के कदमों से -

यह धरती कुछ मांग रही दिखती है

और आज दायें पैर की एड़ी

उसने राहों पर रख दी है.....



यह नाजुक बदन की… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 12, 2014 at 8:19am — 1 Comment

A Dream Within A Dream/ Edgar Allan Poe

Take this kiss upon the brow!

And, in parting from you now,

Thus much let me avow-

You are not wrong, who deem

That my days have been a dream;

Yet if hope has flown away

In a night, or in a day,

In a vision, or in none,

Is it therefore the less gone?

All that we see or seem

Is but a dream within a dream.



I stand amid the roar

Of a surf-tormented shore,

And I hold within my hand

Grains of the golden sand-

How few!… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 9, 2014 at 9:41pm — No Comments

त्रिवेणी / गुलज़ार

पत्थर की दीवार पे, लकड़ी की इक फ्रेम में काँच के अंदर फूल बने हैं
एक तसव्वुर ख़ुश्बू का और कितने सारे पहनावों में बन्द किया है

इश्क़ पे दिल का एक लिबास ही काफ़ी था, अब कितनी पोशाकें पहनेगा ।

Added by Rina Badiani Manek on March 9, 2014 at 6:05pm — No Comments

કોણ જાણે શું થયું /મકરંદ દવે

જિંદગીની આ મજલમાં કોણ જાણે શું થયું ?

વીજવરણી એક પલમાં કોણ જાણે શું થયું ?



દોસ્ત, આ ચૂરા કરી ચાલ્યા છલકતા જામના,

તેં જ પાયેલા અમલમાં કોણ જાણે શું થયું ?



ધોમ રણવગડા અને ભડકા અમે વ્હાલા ગણ્યા ,

છાંયના ઘેઘૂર છલમાં કોણ જાણે શું થયું ?



ઓરણીમાં આગ વાવી'તી છતાં ફાંટે લણ્યા,

દૂધિયા દાણા ફસલમાં, કોણ જાણે શું થયું ?



જૂઠની બાજી ભલે ખેલી અમે જાણી કરી,

મૌજ માણી'તી અસલમાં, કોણ જાણે શું થયું ?



હર સુનેરી માછલી મરતી ગઈ મોતી… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 9, 2014 at 5:31pm — No Comments

એકાંત / અનિલ ચાવડા

થાય જો તું ગીત મારું તો ગઉં,
હું નહીંતર આજીવન મૂંગો રઉં.

એમ મારી હાજરી તારામાં છે
જેમ કોઈ રંકના ઘરમાં ઘઉં.

વારતામાં આવતા રાક્ષસ સમું,
એકદમ એકાંત બોલ્યું કે, 'ખઉં ?'

બાળપણમાં જેમ મા કરતી હતી ,
એક કિસ્સાએ કર્યું એમ જ 'હઉં'!

હું અહીં હાજર હતો, છું ને છઉં,
તું કહે છે આ બધાને કે કઉં ?

Added by Rina Badiani Manek on March 7, 2014 at 7:15pm — No Comments

ગઝલ / કિરણસિંહ ચૌહાણ

સહેજ પણ આવી ન એની ગંધ પણ,
એ રીતે સરતા ગયા સંબંધ પણ....!

એનું આમંત્રણ ઉપરછલ્લું જ છે,
દ્વાર ખુલ્લા છે અને છે બંધ પણ.

અલ્પ તો હોતી નથી શરણાગતિ,
માથું ઝૂકે એ પછી આ સ્કંધ પણ.

કોઈ અમથું હમસફર બનતું નથી ,
કામ આવે છે ઋણાનુબંધ પણ.

Added by Rina Badiani Manek on March 7, 2014 at 6:46pm — No Comments

ગઝલ /નયન દેસાઈ

પાણી છે એટલે હવે તરશે બધી જગા
સમંદરને શોધવા સતત ફરશે બધી જગા

જળવત્ ઊંડાણ લઈ અને ડૂબી ગઈ આ સાંજ
અંધારું બુંદ બુંદ થૈ ઝરશે બધી જગા

ઢોળાવ પરથી ઢળશે ઊંચેથી એ આવશે
થંભી જશે તો ખુદથી જ એ ભરશે બધી જગા

પાણીને પામવાના આ આપણા પ્રયત્નો
કોને ખબર કે પ્યાસ ઉછરશે બધી જગા

Added by Rina Badiani Manek on March 6, 2014 at 4:33pm — No Comments

ग़ज़ल / परवीन शाकिर

रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी

साये से मगर उसको मुहब्बत भी बहुत थी



ख़ेमे न कोई मेरे मुसाफ़िर के जलाये

ज़ख़्मी था बहुत पांव, मुसाफ़त भी बहुत थी



सब दोस्त मेरे मंतज़िरे-पर्द:-ए-शब थे

दिन में तो सफ़र करने में दिक़्क़त भी बहुत थी



बारिश की दुआओं में नमी आंख की मिल जाए

जज़्बे की कभी इतनी रिफ़ाकत भी बहुत थी



कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास कम आये

और कुछ मेरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी



फूलों का बिखरना तो मुक़द्दर ही… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2014 at 11:09am — No Comments

ગઝલ / મનોજ ખંડેરિયા

કનાતોથી હું ખંડિત, થઈ ગયો છું શ્હેરમાં આવી;

હું મારામાં વિભાજિત, થઈ ગયો છું શ્હેરમાં આવી.



મને પ્રશ્નો ભરી નજરે નિહાળે છે બધા રસ્તે,

હું જાણે અર્થ-ગર્ભિત, થઈ ગયો છું શ્હેરમાં આવી.



સતત પ્હેરી છે વીંટી, પણ નથી વીંટી હું ઓળખતો,

સ્મરણથી સાવ શાપિત, થઈ ગયો છું શ્હેરમાં આવી.



ભીતરથી તૂટીને વેરાઈ બેઠો છું અહીં ને ત્યાં -

ઉપરથી બહુ વ્યવસ્થિત, થઈ ગયો છું શ્હેરમાં આવી.



હવે પોપટની કોઈ ડોક મરડે, એ પ્રતીક્ષા છે,

બની પથ્થર હું સ્થાપિત , થઈ ગયો… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2014 at 10:39am — No Comments

गुलज़ार

मैं इसको, मुट्ठी -भर मिट्टी को लेकर
कहाँ से देखो तो मुड़कर कहाँ से

उफ़क के भी परे से, उस तरफ़ से
चला हूँ और चलता आ रहा हूँ

ज़मीं के इस किनारे तक जहाँ पर
तुम अपनी रूह की लौ को सँभाले

सुलगते जिस्म को मुट्ठी में लेकर
किसी की मुन्तज़िर थी, मुन्तज़िर हो......


मुन्तज़िर - प्रतीक्षा में

Added by Rina Badiani Manek on March 2, 2014 at 5:42pm — No Comments

ગઝલ / મનોજ ખંડેરિયા

જે ડૂબ્યું ખોળવાનો અર્થ નથી,
આંસુને ડહોળવાનો અર્થ નથી.

સીંચતા જળને બદલે મૃગજળ સહુ,
આપણે કોળવાનો અર્થ નથી.

ઘરપણું થઈ ગયું છે મેલું ત્યાં -
ભીંતને ધોળવાનો અર્થ નથી .

પલ્લું ભારી રહે છે દુનિયાનું,
સ્વપ્નને તોળવાનો અર્થ નથી .

જાગૃતિ જેણે ઓઢી ચાદર જેમ ,
એને ઢંઢોળવાનો અર્થ નથી .

એ મળે તો સહજ રીતે જ મળે,
બાકી ફંફોળવાનો અર્થ નથી .

ઝીલતાં આવડે તો જ ઉછાળો,
શબ્દ ફંગોળવાનો અર્થ નથી .

Added by Rina Badiani Manek on March 2, 2014 at 5:02pm — No Comments

संपूर्ण औरत / इमरोज़

चलते चलते एक दिन

पूछा था अमृता ने-

तुमने कभी woman with mind

paint की है?

चलते चलते मैं रूक गया

अपने भीतर देखा , अपने बाहर देखा

जवाब कहीं नहीं था

चारों ओर देखा -

हर दिशा की ओर देखा और किया इन्तज़ार

पर न कोई आवाज़ आई, न कहीं से प्रति-उत्तर

जवाब तलाशते-तलाशते

चल पड़ा और पहुँच गया-

पेंटिंग के क्लासिक काल में

अमृता के सवाल वाली औरत

औरत के अंदर की सोच

सोच के रंग

न किसी पेंटिंग के रंगों में दिखे

न ही किसी आर्ट ग्रंथ… Continue

Added by Rina Badiani Manek on March 1, 2014 at 4:41pm — 1 Comment

Chicken - Licken / Maya Angelou

She was afraid of men,
sin and the humors
of the night.
When she saw a bed
locks clicked
in her brain.

She screwed a frown
around and plugged
it in the keyhole.
Put a chain across
her door and closed
her mind.

Her bones were found
round thirty years later
when they razed
her building to
put up a parking lot.

Autopsy read:
dead of acute peoplelessness.

Added by Rina Badiani Manek on February 26, 2014 at 5:31pm — 1 Comment

दोस्त / गुलज़ार

बे-यारो मददगार ही काटा था सारा दिन
कुछ ख़ुद से अजनबी सा,
तन्हा , उदास सा,
साहिल पे दिन बुझा के मैं, लौट आया फिर वहीं ,
सुनसान सी सड़कों के ख़ाली मकान में !

दरवाज़ा खोलते ही, मेज़ पे रखी किताब ने कहा,
"देर कर दी दोस्त "

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 4:00pm — No Comments

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदायें भेजी है / गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदायें भेजी है

गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं



जो आफ़ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं

वो दिल है मेरा उसी की शु'आयें भेजी हैं



तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगती

वह सारी यादें जो तुमको रूलायें भेजी हैं



स्याह रंग, चमकती हुई किनारी है

पहन लो अच्छी लगेगी घटायें भेजी हैं



तुम्हारे ख़्वाब से हरदम लिपट के सोते हैं

सज़ायें भेज दो, हमने ख़तायें भेजी हैं



अकेला पत्ता हवा में बहुत बुलंद उड़ा

ज़मीं… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 2:59pm — No Comments

एक मुलाकात / अमृता प्रीतम

मैं चुप, शांत और अडोल खड़ी थी

सिर्फ़ पास बहते समुद्र में तूफ़ान था

फिर समुद्र को ख़ुदा जाने क्या ख़याल आया

उसने तूफ़ान की इक पोटली सी बाँधी

मेरे हाथों में थमाई और हँसकर कुछ दूर हो गया



हैरान थी पर उसका चमत्कार ले लिया

पता था कि इस तरह की घटना कभी सदियों में होती है



लाखों ख़याल आये

माथे में झिलमिलाये



पर खड़ी रह गयी कि इसको उठाकर

अब अपने शहर में मैं कैसे जाऊंगी ?

मेरे शहर की हर गली तंग है

मेरे शहर की हर छत नीची… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 12:08am — No Comments

अमृता प्रीतम

न मैंने वुजू किया है, न कोई सजदा किया है

न मन्नत माँगने आई हूं

तेरे चारों चिराग जलते रहें

मैं तो पांचवां जलाने आई हूं.....



दुखों को पेल कर मैंने तेल लिया है

और माथे का तेवर एक रूई की बत्ती

जो माथे में सजाई है.....

चेतना की नदी में हाथों को धोया है

माथे का दिया हथेलियों पर लिया है

और उसे आत्मा की आग छुआ दी है......



यह मिट्टी का दीया , तूने ही तो दिया था

मैंने तो उसे आग का शगुन डाला है

और तेरी अमानत लौटा लाई हूं....

तेरे… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 10:15am — No Comments

इक नज़्म / गुलज़ार

ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पर हाथ छुड़ा कर तुम
यूं तन तन्हा चल निकली हो
इस ख़ौफ़ से शायद राह भटक जाओ न कहीं
हर मोड़ पे मैंने नज़्म खड़ी कर दी है !

थक जाओ अगर -----
और तुमको ज़रूरत पड़ जाये,
इक नज़्म की उँगली थाम के वापस आ जाना !!

गुलज़ार

Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 8:19am — No Comments

...अमृता प्रीतम

आसमान के महलों में मेरा सूरज सो रहा है
जहाँ कोई द्वार नहीं , कोई खिड़की नहीं
और सदीयों के हाथों ने
जो पगदंड़ी बनाई है -
वह मेरी सोच के पैरों के लिए
बहुत संकरी है......

Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 1:50am — No Comments

बदल कर देखें तो रस्ता / गुलज़ार

बदल कर देखें तो रस्ता,
वहीं से आते जाते हैं हमेशा !

वही है भेजता है, ऐसा कहते हैं
कि बिल्डर जिस तरह साइट पे वर्कर्ज़ भेजता है
बुला लेता है जब उसकी दिहाड़ी ख़त्म होती है !

बहुत से और भी सय्यारे हैं इस कायनात में
बदल कर देखें कोई और मालिक ज़िंदगी का
कहीं पे और भी कोई ख़ुदा होगा !

Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 12:56am — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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