Rina Badiani Manek's Blog (234)

સૌંદર્યબોધ /જવાહર બક્ષી

સ્હેજ કોમળ રંગ તડકો, સ્હેજ વાદળ રંગરંગ

ફૂલની એવી તરસ જાગી કે ઝાકળ રંગરંગ



એક પડછાયો પડ્યો એવો , સકળજળ રંગરંગ

એનો પડઘો એમ કૈં ડૂબ્યો કે ખળખળ રંગરંગ



હર ગતિ કે હર સ્થિતિ કે હર કોઈ સ્થળ રંગરંગ

એક એની શક્યતા ને સર્વ અટકળ રંગરંગ



મય-સમય ફીણ્યા કરે હર પળ ધવલ છળ રંગરંગ

ખોબલે લૂંટાવ પરપોટા પળેપળ રંગરંગ



એ ભલે નિર્લેપ છે પણ એમ કૈં નીરસ નથી

સાવ તો અમથા નથી હોતા કમળદળ રંગરંગ



સ્વપ્નમાં પણ કંઈ લખ્યાની કલ્પના સુધ્ધાં નથી

જાગીને… Continue

Added by Rina Badiani Manek on June 11, 2014 at 4:42pm — No Comments

'नहीं कोई दोस्त अपना यार अपना / ताबाँ' अब्दुल हई

नहीं कोई दोस्त अपना यार अपना मेहर-बाँ अपना

सुनाऊँ किस को ग़म अपना अलम अपना फ़ुग़ाँ अपना



न ताक़त है इशारे की न कहने की न सुनने की

कहूँ क्या मैं सुनूँ क्या मैं बताऊँ क्या बयाँ अपना



निपट रखता है जी मेरा ख़फ़ा हूँ नाक में दम है

न घर भाता है ने सहरा कहाँ कीजे मकाँ अपना



हुआ हूँ गुम मैं लश्कर में परी-रूयाँ के हे ज़ालिम

कहाँ ढूँढूँ किसे पूछूँ नहीं पाता निशाँ अपना



बहुत चाहा कि आवे यार या इस दिल को सब्र आवे

न यार आया न सब्र आया दिया में… Continue

Added by Rina Badiani Manek on June 8, 2014 at 10:24pm — No Comments

मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर / गुलज़ार

मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर
मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है
सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं
लवें बुझा दी हैं अपने चेहरों की, हसरतों ने
कि शौक़ पहचनता ही नहीं
मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं

मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से
कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर

Added by Rina Badiani Manek on June 7, 2014 at 7:22pm — No Comments

प्यार वो बीज है / गुलज़ार

प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा

दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये

प्यार अकेला नहीं जी सकता

जीता है तो दो लोगों में

मरता है तो दो मरते हैं



प्यार इक बहता दरिया है

झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं

सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता

बस दरिया है और बह जाता है.



दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है

चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है

पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना

नीचे से फिर भाग के सूरत उपर… Continue

Added by Rina Badiani Manek on June 7, 2014 at 7:21pm — No Comments

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. / गोपालदास "नीरज"

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..



हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..

मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..

सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..

मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..

मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..

तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..



मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..



अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..

मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..

हूं… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 31, 2014 at 9:43pm — No Comments

उलझन / परवीन शाकिर

रात भी तन्हाई की पहली दहलीज़ पे है
और मेरी जानिब अपने हाथ बढ़ाती है
सोच रही हूं
उनको थामूं
ज़ीना-ज़ीना सन्नाटों के तहख़ानों में उतरूं
या अपने कमरे में ठहरूं
चांद मेरी खिड़की पर दस्तक देता है

Added by Rina Badiani Manek on May 31, 2014 at 2:01am — No Comments

અજવાશ જેવું શું છે /મનોજ ખંડેરિયા

ઝળહળ ઝબાક ઝળહળ અજવાશ જેવું શું છે

આ બંધ દ્વાર પાછળ અહસાસ જેવું શું છે



હોઠે ધરું જો આસવ પીવા ન થાય ઇચ્છા

તો કાં ગળું સુકાતું ? આ પ્યાસ જેવું શું છે



એક નામ લેતાં સાથે ભરચક ત્વચાથી પ્રસરે,

અત્તરની આછી આછી આ વાસ જેવું શું છે



ક્ષણમાં રચાઉં; ક્ષણમાં વિખરાઈ જઉં હવામાં ,

હોવું નથી જ તો આ આભાસ જેવું શું છે



તાજપ-લીલાશ-સળવળ-કુમળાશ ભીની એમાં

આંખોને અડકી જાતું આ ઘાસ જેવું શું છે



ખુલ્લી છે સીમ- માથે આકાશ ઝૂક્યું - વચ્ચે… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 25, 2014 at 5:24pm — No Comments

નવી એક લાગણી / મનોજ ખંડેરિયા

નવી એક લાગણી એવી રીતે મનમાં ફરે
અજાણી કોઈ વ્યક્તિ આવ-જા ઘરમાં કરે

રીઢા આ કોઈ ગુનેગાર જેવા શ્વાસ સહુ
મળે આપણને હરજન્મે ને કાયમ છેતરે

નથી કાં કોઈ પણ પડકારતું એને જરી
ગલીમાં ચાંદની શકમંદ હાલતમાં ફરે

હું તો જોયા કરું જુદાઈની બારી થકી
સજા ખાધેલ આરોપી સમા દિવસો સરે

"મને તું મૌન દઈને શબ્દ તારો લઈ જજે"
પડી છે એક જાસાચિઠ્ઠી મારા ઉંબરે

Added by Rina Badiani Manek on May 25, 2014 at 4:58pm — No Comments

मुझे सहल हो गईं मंजिलें / मजरूह सुल्तानपुरी

मुझे सहल हो गईं मंजिलें वो हवा के रुख भी बदल गये

तिरा हाथ हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये



वो लजाये मेरे सवाल पर कि उठा सके न झुका के सर,

उड़ी जुल्फ़ चेहरे पे इस तरह कि शबों के राज मचल गये



वही बात जो न वो कह सके मिरे शेर-ओ-नज़्मे आ गई,

वही लब न मैं जिन्हें छू सका क़दहे-शराब में ढ़ल गये



वही आस्ताँ, वही जबीं , वही अश्क हैं, वही आस्तीं,

दिले-ज़ार तू भी बदल कहीं कि जहाँ के तौर बदल गये



तुझे चश्मे-मस्त पता भी है कि शबाब गर्मी-ए-बज्म… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 24, 2014 at 10:16am — No Comments

उधार / अज्ञेय

सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थी

और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।



मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार

चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?

मैनें घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी—

तिनके की नोक-भर?

शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी—

किरण की ओक-भर?

मैने हवा से मांगा: थोड़ा खुलापन—बस एक प्रश्वास,

लहर से: एक रोम की सिहरन-भर उल्लास।

मैने आकाश से मांगी

आँख की झपकी-भर असीमता—उधार।



सब से उधार मांगा, सब ने दिया ।

यों… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 21, 2014 at 8:12pm — No Comments

ગઝલ /પ્રમોદ આહિરે

બારી, ભીંતો, ઉંબરથી સતત દૂર ભાગે છે,

ધીરે ધીરે એ ઘરથી સતત દૂર ભાગે છે.



કોશિશ કરે એ આખો દિવસ શ્હેર જીતવા ,

ને સાંજે ખુદ નગરથી સતત દૂર ભાગે છે.



પોતાનો છાંયડો રહે અકબંધ એટલે ,

એક વૃક્ષ પાનખરથી સતત દૂર ભાગે છે ?



દરિયાની વચ્ચે જઈને રમે છે જે શખ્સ રોજ,

શા માટે એ લહરથી સતત દૂર ભાગે છે?



મંઝિલ ઉપર પહોંચીને હારી ગયો જે એ-

વળતી વખત સફરથી સતત દૂર ભાગે છે.



કોશિશ કરે છે જે બધાંને સાથે રાખવા ,

એ શખ્સ ખુદ ભીતરથી સતત દૂર ભાગે… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 21, 2014 at 7:21pm — No Comments

कुछ ऐसा मोजज़ा लफ़्ज़ों के साथ हो जाये / वसीम बरेलवी

कुछ ऐसा मोजज़ा लफ़्ज़ों के साथ हो जाये

जो मैं कहूँ वो ज़माने की बात हो जाये



हमारे पास कहाँ वक़्त जीतने का हुनर

जो दिन को ढूँढने निकलें तो रात हो जाये



बुरी चली है हवा हमसफ़र बदलने की

न जाने कौन कहाँ किस के साथ हो जाये



बस एक प्यार ही ऐसा बुरा खिलाड़ी है

जो चाल भी न चले और मात हो जाये



वो लाख जाने-सफ़र हो मगर उसे ये लगे

सफ़र में जैसे कोई यूँ ही साथ हो जाये



मैं तेरे काम का, दुनिया ! कभी न हो पाऊँ

तो मुझको लगता है… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 21, 2014 at 7:16pm — No Comments

वक़्त को जितना गूंध सके / गुलज़ार

वक़्त को जितना गूंध सके हम, गूंध लिया
आटे की मिक़दार कभी बढ़ भी जाती है
भूख मगर इक हद से आगे बढ़ती नहीं
पेट के मारों की ऐसी ही आदत है......
भर जाये तो दस्तरख़्वान से उठ जाते हैं......

आओ, अब उठ जायें दोनों
कोई कचहरी का खूंटा दो इन्सानों को दस्तरख़्वान पे कब तक बांध के रख सकता है
क़ानूनी मोहरों से कब रूकते हैं, या कटते हैं रिश्ते
रिश्ते राशन कार्ड नहीं हैं !!!

Added by Rina Badiani Manek on May 15, 2014 at 4:41pm — No Comments

कब तक दिल की ख़ैर मनायें / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब तक दिल की ख़ैर मनायें, कब तक रह दिखलाओगे

कब तक चैन की मोहलत दोगे, कब तक याद न आओगे



बीता दीद-उमीद का मौसम, ख़ाक उड़ती है आँखों में

कब भेजोगे दर्द का बादल , कब बरखा बरसाओगे



अहदे-वफ़ा या तर्के-मुहब्बत, जी चाहो सो आप करो

अपने बस की बात ही क्या है, हमसे क्या मनवाओगे



किसने वस्ल का सूरज देखा , किस पर हिज्र की रात ढली

गेसुओंवाले कौन थे क्या थे, उनको क्या जतलाओगे



'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर बसना भी, लुट जाना भी

तुम उस हुस्न के… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 15, 2014 at 12:40pm — No Comments

अब तो पथ यही है / दुष्यंत कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,

अब तो पथ यही है|



अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,

एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,

यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,

क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,

अब तो पथ यही है |



क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,

एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,

एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,

आज हर नक्षत्र है अनुदार,

अब तो पथ यही है|



यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 12, 2014 at 11:16am — No Comments

मापदण्ड बदलो / दुष्यंत कुमार

मेरी प्रगति या अगति का

यह मापदण्ड बदलो तुम,

जुए के पत्ते-सा

मैं अभी अनिश्चित हूँ ।

मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,

कोपलें उग रही हैं,

पत्तियाँ झड़ रही हैं,

मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,

लड़ता हुआ

नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।



अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,

मेरे बाज़ू टूट गए,

मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,

मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,

या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 12, 2014 at 11:01am — No Comments

मैं क़ैदी हूं / गुलज़ार

कई पिंजरों का क़ैदी हूं
कई पिंजरों में बसता हूं
मुझे भाता है क़ैदें काटना
और अपनी मरज़ी से चुनाव करते रहना
अपने पिंजरों का
मीयादें तय नहीं करता में रिश्तों की
असीरी ढूँढता हूं मैं
असीरी अच्छी लगती है !!!

Added by Rina Badiani Manek on May 11, 2014 at 6:31pm — No Comments

एक सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ।

उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ।

ताना : ताना मज़बूत चाहिए : कहाँ से मिलेगा?

पर कोई है जो उसे बदल देगा,

जो उसे रसों में बोर कर रंजित करेगा, तभी तो वह खिलेगा।

मैं एक गाढ़े का तार उठाता हूँ :

मैं तो मरण से बँधा हूँ; पर किसी के-और इसी तार के सहारे

काल से पार पाता हूँ।

फिर बाना : पर रंग क्या मेरी पसन्द के हैं?

अभिप्राय भी क्या मेरे छन्द के हैं?

पाता हूँ कि मेरा मन ही तो गिर्री है, डोरा है;

इधर से उधर, उधर से इधर; हाथ… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 11, 2014 at 9:11am — No Comments

गए मौसम में जो खिलते थे / परवीन शाकिर

गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह

दिल पे उतरेंगे वही ख़्वाब अज़ाबों की तरह



राख के ढेर पे अब रात बसर करनी है

जल चुके हैं मेरे ख़ीमे, मेरे ख़्वाबों की तरह



साअते-दीद के आरिज़ हैं गुलाबी अब तक

अव्वलीं लम्हों के गुलनार हिजाबों की तरह



वह समंदर है तो फिर रूह को शादाब करें

तिश्नगी क्यों मुझे देता है सराबों की तरह



ग़ैर मुमकिन है तेरे घर के गुलाबों का शुमार

मेरे रिसते हुए ज़ख्मों के हिसाबों की तरह



याद तो होंगी वो बातें… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 10, 2014 at 5:25pm — No Comments

બારી ખૂલી ગઈ / જવાહર બક્ષી

બારી ખૂલી ગઈ છે

કિંતુ સુગંધ અહીંનો

રસ્તો ભૂલી ગઈ છે....



રસ્તો ભૂલી જવામાં

કેવી અજબ મજા છે

અમથી જ આવજામાં.



અમથી જ આવજા છે

મંજિલ નથી કે રસ્તો

ચારે તરફ હવા છે.....



ચારે તરફ હવાઓ

મ્હેકી પડે અચાનક

સ્પર્શીલી શક્યતાઓ.



સ્પર્શીલી શક્યતા પર

ગમતું ગણિત ગણું છું

ઇચ્છાનાં ટેરવાં પર.....



ઇચ્છાનાં ટેરવાંથી

આકાશ ઊંચકું છું

ઊઘડું દશે દિશાથી.



ઊઘડું ને વિસ્તરું છું

આંખો ઉઘાડી… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 9, 2014 at 5:16pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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