Rina Badiani Manek's Blog (234)

गूँगी आवाज़ /रीना

दीवारों से टकरा कर
टूटी
बिखरी पड़ी हैं....
फिर भी
बॉंब से छूटी
शार्पनेल की तरह
आरपार चीर जाती है
यह गूँगी आवाज़ ......

Added by Rina Badiani Manek on August 8, 2014 at 11:51am — No Comments

હું સમયથી ભાગી / મનોજ ખંડેરિયા

હું સમયથી ભાગી છૂટી જાઉં ક્યાં
પારદર્શક શહેરમાં છુપાઉં ક્યાં

હું ક્ષિતિજની બ્હાર હોઈશ, આવજે
આ જગામાં આ રીતે રોકાઉં ક્યાં

હું સ્વયં અંધાર છું, ના શોધ કર
તારી ફરતો છું, તને દેખાઉં ક્યાં

હું પવનથી પાતળું કૈં પોત છું
મુઠ્ઠીમાં હોવા છતાં પકડાઉં ક્યાં

આ ધુમાડો ઊડતો ઘોંઘાટનો
શાંત ક્યાં વાતાવરણ છે, ગાઉં ક્યાં

Added by Rina Badiani Manek on August 6, 2014 at 10:29am — No Comments

दिल के साथ लगा रहता है / मुहम्मद अलवी

दिल के साथ लगा रहता है
क्या जाने ये डर कैसा है

आँगन में पत्ते फूटे हैं
सीढ़ी पर इक फूल खिला है

इक साया उभरा है गली में
खिड़की में इक हाथ उगा है

पुल को भी अब याद नहीं है
नीचे इक दरिया बहता है

अपने आप को धोखा देना
कभी कभी अच्छा लगता है

Added by Rina Badiani Manek on August 5, 2014 at 4:02pm — No Comments

कौन / मुहम्मद अलवी

कभी दिल के अंधे कुएँ में
पड़ा चीख़ता है
कभी दौड़ते ख़ून में
तैरता डूबता है
कभी हड्डियों की
सुरंगो में बत्ती जलाकर
यूँ ही घूमता है
कभी कान में आके
चुपके से कहता है
तू अब तलक जी रहा है
बड़ा बेहया है
मेरे जिस्म में कौन है यह
जो मुझसे ख़फ़ा है

Added by Rina Badiani Manek on August 5, 2014 at 12:52pm — No Comments

The Lesson / Maya Angelou

I keep on dying again.
Veins collapse, opening like the
Small fists of sleeping
Children.
Memory of old tombs,
Rotting flesh and worms do
Not convince me against
The challenge. The years
And cold defeat live deep in
Lines along my face.
They dull my eyes, yet
I keep on dying,
Because I love to live.

Added by Rina Badiani Manek on August 4, 2014 at 1:16pm — No Comments

तेरे उतारे हुए दिन / गुलज़ार

तेरे उतारे हुए दिन टंगे हैं लॉन में अब तक

न वो पुराने हुए हैं, न उनका रंग उतरा

कहीं से कोई भी सीवन अभी नहीं उधड़ी



इलायची के बहुत पास रखे पत्थर पर

ज़रा सी जलदी सरक आया करती है छाँव

ज़रा सा और घना हो गया है वो पौधा

मैं थोड़ा थोड़ा वो गमला हटाता रहता हूँ -

फ़क़ीरा अब भी वहीं मेरी कॉफ़ी देता है



कभीकभी जब उतरती है चील शाम की छत से

थकी-थकी सी ज़रा देर लॉन में रूक कर

सफ़ेद और गुलाबी, 'मसुंडे' के पौधों में घुलने लगती है

कि जैसे बर्फ़ का… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 4, 2014 at 10:31am — No Comments

जो पुल बनाएंगे / अज्ञेय

जो पुल बनाएंगे
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएंगे।
सेनाएँ हो जाएंगी पार
मारे जाएंगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएंगे

Added by Rina Badiani Manek on August 2, 2014 at 8:35am — No Comments

ग़ज़ल /दाग़ देहलवी

तब्अ बिगड़ी हुई ज़ालिम की संभाली न गई

जो गिरह दिल में पड़ी फिर वो निकाली न गई



कब मुझे देख के तलवार निकाली न गई

जब निकाली तो नज़ाकत से संभाली न गई



ग़ैर के सामने बेपरदा हुए थे इक बार

फिर नक़ाब उनसे कभी चेहरे पे डाली न गई



तू भी बेचैन हुआ दिल के सताने वाले

दर्द-मंदो की दुआ देख ले खाली न गई



ज़ुल्फ़ में रख के मेरे दिल को गिरा आए कहाँ

ये रक़म बेश-बहा जेब में डाली न गई



नातवानी में हवा से मेरे पर उड़ते हैं

छूट कर दाम से भी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 1, 2014 at 12:06pm — No Comments

ग़ज़ल / राहत इन्दौरी

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ

मैं चाहता था चराग़ों को आफ़ताब करूँ



मैं करवटों के नए ज़ाविए लिखूँ शब भर

ये इश्क़ है तो कहाँ ज़िंदगी अज़ाब करूँ



है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे-बहरों की

किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ



उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है

बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूँ



ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है

कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ



राहत इन्दौरी



आफ़ताब - सूरज

ज़ाविए -… Continue

Added by Rina Badiani Manek on July 31, 2014 at 7:27pm — No Comments

मशवरा / मुहम्मद अलवी

मेरी जाँ इस कदर अंधे कुएँ में
भला यूँ झाँकने से क्या दिखेगा
कोई पत्थर उठाओ और फेंको
अगर पानी हुआ तो चीख़ उठेगा

Added by Rina Badiani Manek on July 30, 2014 at 4:36pm — 1 Comment

देर से /निदा फ़ाज़ली

कहीं छत थी, दीवारो-दर थे कहीं

मिला मुझको घर का पता देर से

दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे

मगर जो दिया वो दिया देर से



हुआ न कोई काम मामूल से

गुजारे शबों-रोज़ कुछ इस तरह

कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर

कभी घर में सूरज उगा देर से



कभी रुक गये राह में बेसबब

कभी वक़्त से पहले घिर आयी शब

हुए बन्द दरवाज़े खुल-खुल के सब

जहाँ भी गया मैं गया देर से



ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है

यही है जुदाई, यही मेल है

मैं मुड़-मुड़ के देखा… Continue

Added by Rina Badiani Manek on July 30, 2014 at 3:36pm — No Comments

ग़ज़ल / क़तील शिफ़ाई

मैनें पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठायेगा

आई इक आवाज़ कि तू जिसका मोहसिन कहलायेगा



पूछ सके तो पूछे कोई रूठ के जाने वालों से

रोशनियों को मेरे घर का रस्ता कौन बतायेगा



लोगो मेरे साथ चलो तुम जो कुछ है वो आगे है

पीछे मुड़ कर देखने वाला पत्थर का हो जायेगा



दिन में हँसकर मिलने वाले चेहरे साफ़ बताते हैं

एक भयानक सपना मुझको सारी रात डरायेगा



मेरे बाद वफ़ा का धोखा और किसी से मत करना

गाली देगी दुनिया तुझको सर मेरा झुक जायेगा



सूख… Continue

Added by Rina Badiani Manek on July 29, 2014 at 11:48am — No Comments

पागल है वो, सब कहते है / रीना

पागल है वो, सब कहते है
कद में बड़ी ही गई, लेकिन अक्लसे नहीं.
न कोई तहज़ीब , न तौर-तरीके.

वैसे तो बंद कमरे में ही रहती है
परेशां नहीं करती किसीको
लेकिन कभी कभी कमरे से भाग के बाहर आ जाती है
और लोग परेशां हों जाते है उससे...
क्या करूं उसका, कुछ समझ नहीं पाती.

उसकी आँखों में भरे आँसूओं को अनदेखा करती हूँ
तो उसकी चीखें, कानो में सुराख़ कर देती है.....

हिस्सा है इस अस्तित्व का .......
कैद कर सकती हूँ उसे, काट तो नहीं सकती......

Added by Rina Badiani Manek on July 14, 2014 at 6:26pm — No Comments

अंधियार ढल कर ही रहेगा / गोपालदास "नीरज"

आंधियां चाहें उठाओ,

बिजलियां चाहें गिराओ,

जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।



रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये,

वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये,

वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है,

जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,

उग रही लौ को न टोको,

ज्योति के रथ को न रोको,

यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।

जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।



दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,

धूप में… Continue

Added by Rina Badiani Manek on July 7, 2014 at 8:35pm — No Comments

न आते हमें इसमें तकरार क्या थी / इक़बाल

न आते हमें इसमें तकरार क्या थी

मगर वादा करते हुए आर क्या थी



तुम्हारे पयामी ने ख़ुद राज़ खोला

ख़ता इसमें बन्दे की सरकार क्या थी?



भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा

तिरी आँख मस्ती में हुशियार क्या थी



तअम्मुल तो था उनको आने में क़ासिद

मगर ये बता तर्ज़े-इन्कार क्या थी?



खिंचे ख़ुद-ब-ख़ुद जानिबे-तूर मूसा

कशिश तेरी ऐ शौक़े-दीदाए क्या थी



कहीं ज़िक्र रहता है इक़बाल तेरा

फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या… Continue

Added by Rina Badiani Manek on July 1, 2014 at 8:02pm — 1 Comment

The Average Child / Mike Buscemi

I don’t cause teachers trouble;

My grades have been okay.

I listen in my classes.

I’m in school every day.

My teachers think I’m average;

My parents think so too.

I wish I didn’t know that, though;

There’s lots I’d like to do.

I’d like to build a rocket;

I read a book on how.

Or start a stamp collection…

But no use trying now.

’Cause, since I found I’m average,

I’m smart enough you see

To know there’s nothing special

I… Continue

Added by Rina Badiani Manek on June 25, 2014 at 11:36am — No Comments

કૅન્વાસ / હેમેન શાહ

કૅન્વાસ પર એક ઊભી રેખા દોરી હતી

બાકી અવકાશ .



સામે ઊભેલી વ્યક્તિ કહે,

આ તો ગાંધીજી !

આ ગાંધીજીની લાકડી

અને ગાંધીજી પડદા પાછળ.

પણ લાકડી તો બીજા પણ રાખે કદાચ .

તો આ રેખાને ચશ્માની દાંડી તરીકે પણ તો જોઈ શકાય .



બીજો માણસ કહે,

આમાં તો પૃથ્વીનો આખો ઇતિહાસ આવી જાય.

પણ સીધી રેખા પૃથ્વી કેવી રીતે બને ?

કેમ? રેખાને વાળો અને બે છેડા ભેગા કરો

તો પૃથ્વી ના બને ?

પછી તો પૈડું પણ આ જ

અને શુન્ય પણ આ જ.

ઓહો ! આમાં તો… Continue

Added by Rina Badiani Manek on June 19, 2014 at 6:09pm — No Comments

त्रिवेणी / गुलज़ार

जाते जाते एक बार तो कार की बत्ती सुर्ख़ हुई
शायद तुम ने सोचा हो कि रूक जाओ, या लौट आओ

सिग्नल तोड़ के लेकिन तुम इक दूसरी जानिब घूम गये

Added by Rina Badiani Manek on June 19, 2014 at 4:31pm — No Comments

ગ્રંથિભેદ / રાજેન્દ્ર શુક્લ

છેલ્લા શબદે છેલ્લી તાળી,
હવે બધું લો ખાલી ખાલી !

એ ક્ષણ તો ઊડીને આવી ,
આ ક્ષણ પ્હોંચી ચાલી, ચાલી !

એક ઘૂંટડે પૂરું કરી દ્યો,
ક્યાં લગ પીવું પ્યાલી પ્યાલી !

મૂળે તો રહેવું મૂળ માંહીં,
વેલ વળૂંભી ફૂલી, ફાલી !

ખબર બધી યે જાય ઊખડતી,
ગાંઠ ગઠી જે ઠાલી ઠાલી !

Added by Rina Badiani Manek on June 17, 2014 at 5:50pm — No Comments

रात/गुलज़ार

मेरी दहलीज़ पर बैठी हुयी जानो पे सर रखे
ये शब अफ़सोस करने आई है कि मेरे घर पे
आज ही जो मर गया है दिन
वह दिन हमजाद था उसका!

वह आई है कि मेरे घर में उसको दफ्न कर के,
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
निशानी छोड़ दे कि मह्व है ये कब्र,
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!

मैं शब को कैसे बतलाऊँ,
बहुत से दिन मेरे आँगन में यूँ आधे अधूरे से
कफ़न ओढ़े पड़े हैं कितने सालों से,
जिन्हें मैं आज तक दफना नही पाया!!

Added by Rina Badiani Manek on June 12, 2014 at 3:18am — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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