Made in India
Added by Sonya Shah on February 18, 2014 at 2:20pm — No Comments
ये धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ
मुझे किस क़दर नया है, मैं जो दर्द सह रहा हूँ
ये ज़मीन तप रही थी ये मकान तप रहे थे
तेरा इंतज़ार था जो मैं इसी जगह रहा हूँ
मैं ठिठक गया था लेकिन तेरे साथ—साथ था मैं
तू अगर नदी हुई तो मैं तेरी सतह रहा हूँ
तेरे सर पे धूप आई तो दरख़्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा…
Added by Sonya Shah on February 17, 2014 at 2:12pm — No Comments
જન્મોજનમની આપણી સગાઇ,
હવે શોધે છે સમજણની કેડી
આપણા અબોલાથી ઝૂર્યા કરે છે
હવે આપણે સજાવેલી મેડી.
બોલાયેલા શબ્દોના સરવાળા-બાદબાકી
કરતું રહ્યું છે આ મન
પ્રત્યેક વાતમાં સોગંદ લેવા પડે
છે કેવું આ આપણું જીવન
મંઝિલ દેખાય ને હું ચાલવા લાગું ત્યાં
વિસ્તરતી જાય છે આ કેડી.
રંગીન ફૂલોને મેં ગોઠવી દીધાં છે તેથી
ખીલેલો લાગે આ…
Added by Sonya Shah on February 17, 2014 at 2:11pm — No Comments
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया….
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया….
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है….…
Added by Sonya Shah on February 15, 2014 at 3:27pm — No Comments
लबों से चूम लो,आँखों से थाम लो मुझको
तुम्ही से जन्मु तो शायद मुझे पनाह मिले
दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त,एक मुठ्ठीमें सो रहे थे
बता तो उस वक़्त मैं कहाँ था, बता तो उस वक़्त तू कहाँ थी
मैं आरजू की तपिशमें पिघल रही थी कहीं
तुम्हारे जिस्म से हो कर निकल रही थी कहीं
बड़े हसीन थे जो राह में गुनाह मिले
तुम्ही से जन्मु तो शायद मुझे पनाह मिले..…
Added by Sonya Shah on February 14, 2014 at 2:29pm — No Comments
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे…
Added by Sonya Shah on February 12, 2014 at 5:41pm — No Comments
એક રજકણ સૂરજ થવાને શમણે,
ઉગમણે જઇ ઊડે, પલકમાં ઢળી પડે આથમણે.
જળને તપ્ત નજરથી શોશી
ચહી રહે ઘન રચવા,
ઝંખે કોઇ દિન બિંબ બનીને
સાગરને મન વસવા
વમળ મહીં ચકરાઇ રહે એ કોઇ અકળ મૂંઝવણે.
એક રજકણ…
જ્યોત કને જઇ જાચી દીપ્તિ,
જ્વાળ કને જઇ લ્હાય;
ગતિ જાચી ઝંઝાનિલથી,
એ રૂપ ગગનથી ચ્હાય;
ચકિત થઇ સૌ ઝાંખે એને ટળવળતી નિજ ચરણે.
એક રજકણ…
- હરીન્દ્ર દવે
Added by Sonya Shah on February 1, 2014 at 11:20am — No Comments
देश के महान संगीतकारो में से एक ओमप्रसाद नैयर (ओ.पी. नैयर), शायद ही कोई ऐसा हो जो ना जानता हो इन्हें! आज के ही दिन वे ७साल पहले हम सब को शारीरिक रूप से अलविदा कह गये थेI पर उनके निर्देशित किए हुए लगभग ७७हिन्दी फिल्मों के संगीत एवं गाने आज भी इतने ही लोगो के दिल में हैंI
नैयर साहब का जन्म लाहोर में १६जनवरी,१९२६ हुआ थाI ओ. पी. साहबने संगीतकी…
Added by Sonya Shah on January 29, 2014 at 1:39pm — No Comments
આજે કવિશ્રી સુરસિંહજી તખ્તસિંહજી ગોહિલ (કલાપી)ની ૧૪૦મી જન્મતિથિ છે. ઍમનાં ગુજરાતી સાહિત્યને આપેલ અમુલ્ય વારસામાંથી આ સુંદર રચના આવો આજે માણીઍ.
તે પંખીની ઉપર પથરો ફેંકતા ફેફી દીધો,
છૂટ્યો તે ને અરરર! પડી ફાળ હૈયા મહીં તો!
રે રે! લાગ્યો દિલ પર અને શ્વાસ રૂંધાઇ જાતાં,
નીચે આવ્યું તરુ ઉપરથી પાંખ ઢીલી થતાંમાં.
મેં પાળ્યું તે તરફડી મરે હસ્ત મ્હારા જ-થી આ,
પાણી છાંટ્યું દિલ ધડકતે તોય ઊઠી શક્યું…
Added by Sonya Shah on January 26, 2014 at 7:30pm — No Comments
वो जो शायर था चुप-सा रहता था
बहकी-बहकी-सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था
गूँगी खामोशियों की आवाज़ें!
जमा करता था चाँद के साए
और गीली- सी नूर की बूँदें
रूखे-रूखे- से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही, वो अजीब- सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था…
Added by Sonya Shah on January 19, 2014 at 11:28am — 1 Comment
From baby bump troubles to nappy changing woes, follow Sense's humorous look at modern motherhood in India.
From “Are you throwing up yet?” and “Where’s the belly? I want to see a belly!” to "Do you have milk?" and "No leaking?" , Sense has to grapple with not just her new found feelings with pregnancy and motherhood, but the barrage of oddly disturbing questions and advice from friends, family and so-called well-wishers.
This book traces the journey of a young Indian couple…
ContinueAdded by Sonya Shah on January 16, 2014 at 3:26pm — No Comments
मेरी तलाश छोड़ दे तू मुझको पा चुका
मैं सोच की हदों से बहुत दूर जा चुका
लोगो ! डराना छोड़ दो तुम वक्त़ से मुझे
यह वक्त़ बार बार मुझे आज़मा चुका
दुनिया चली है कैसे तेरे साथ तू बता
ऐ दोस्त मैं तो अपनी कहानी सुना चुका
बदलेगा अनक़रीब यह ढाँचा समाज का
इस बात पर मैं दोस्तो ईमान ला चुका
अब तुम मेरे ख़याल की परवाज़ देख़ना
मैं इक ग़ज़ल को ज़िंदगी अपनी बना चुका…
Added by Sonya Shah on January 9, 2014 at 10:20am — No Comments
સ્વાતંત્ર્ય સત્યાગ્રહી અને પ્રખર સાહિત્યકાર કુલપતિ ડો. કનૈયાલાલ મ. મુનશીની આજ ૧૨૬મી વર્ષગાંઠની સહુ કોઈ સાહિત્યપ્રેમીઓને શુભકામના.
આપણને આપેલ ગુજરાતી,ઇંગ્લીશ તથા હિન્દી ઍ ત્રણેય ભાષાઓમાં ૧૨૫ પુસ્તકોનો ખજાનો અને સાહિત્ય સમૃદ્ધિનો ઍ અમૂલ્ય વારસો કેમ વિસરાય...
ખાસ કરીને "પાટણ ની પ્રભુતા ","ગુજરાત નો નાથ""પૃથ્વીવલ્લભ"…
Added by Sonya Shah on December 30, 2013 at 2:35pm — No Comments
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यूँ है
तन्हाई की ये कौन सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो
ता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
हम ने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की
वो ज़ूद-ए-पशेमान पशेमान सा क्यूँ है
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम…
Added by Sonya Shah on December 24, 2013 at 10:35am — No Comments
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान…
Added by Sonya Shah on December 23, 2013 at 10:41am — No Comments
બાય ધ વે , હમણા પાકિસ્તાનના બહુ મોટા ગજાના કવિ અફઝલ અહમદ ની એક સરસ કવિતા વાંચવામાં આવી .આ કવિતાની શીર્ષક " લાકડામાંથી બનેલા માણસો " છે લાકડું તો આપણે સહુએ જોયું છે પણ કવિની દ્રષ્ટી લાકડાને અનન્ય રીતે નિરખે છે .કવિએ આ કવિતામાં લાકડામાંથી બનેલા માણસોનો એક પ્રતિક તરીકે વિનિયોગ કર્યો છે કવિતા એન્જોય કરો .
- અનિલ જોશી
"લાકડામાંથી બનેલા માણસો
પાણીમાં ડૂબતા નથી
પણ એને દિવાલો ઉપર ટાંગી શકાય છે
કદાચ…
Added by Sonya Shah on December 21, 2013 at 10:13am — No Comments
कोई ये कैसे बता ये कि वो तन्हा क्यों हैं
-कैफ़ी आज़मी
कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं
एक ज़रा हाथ बढ़ा, दे तो पकड़ लें दामन
उसके सीने…
Added by Sonya Shah on December 20, 2013 at 9:02am — 2 Comments
ओ री चिरैया
नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे
ओ री चिरैया
नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे
अंधियारा है घना और लहू से सना
किरणों के तिनके अम्बर से चुन्न के
अंगना में फिर आजा रे
हमने तुझपे हज़ारों सितम हैं किये
हमने तुझपे जहां भर के ज़ुल्म किये
हमने सोचा नहीं
तू जो उड़ जायेगी
ये ज़मीन तेरे बिन सूनी रह जायेगी
किसके दम पे सजेगा…
Added by Sonya Shah on December 16, 2013 at 8:25am — No Comments
बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है
बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है
यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है
अमीरी रेशम-ओ-कमख़्वाब में नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में रहती है
मैं इन्साँ हूँ…
Added by Sonya Shah on December 13, 2013 at 9:59am — 1 Comment
वो थका हुआ मेरी बाहों में ज़रा सो गया था तो क्या हुआ
अभी मैं ने देखा है चाँद भी किसी शाख़-ए-गुल पे झुका हुआ
जिसे ले गई है अभी हवा वो वरक़ था दिल की किताब का
कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कहीं आँसुओं से लिखा हुआ
कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ
मुझे हादसों ने सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मेरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहन्दियों से रचा हुआ
वही ख़त के जिस पे जगह जगह दो महकते…
Added by Sonya Shah on December 11, 2013 at 9:39am — 1 Comment
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
© 2024 Created by Facestorys.com Admin. Powered by
Badges | Report an Issue | Privacy Policy | Terms of Service