Rina Badiani Manek's Blog (234)

शब्द झूठे हैं सभी सत्यकथाओं की तरह / गोपालदास 'नीरज'

शब्द झूठे हैं सभी सत्यकथाओं की तरह

वक़्त बेशर्म है वेश्या की अदाओं की तरह



जाने वो किसका था साया कि जिसे छूने को

हम भटकते रहे आवारा हवाओं की तरह



प्यार के वास्ते प्यासा है ये दिल सदियों से

अब तो बरसो कोई सावन की घटाओं की तरह



हर अंधेरे से सुबह बनके गुज़र जाऊँगा

तेरा आंचल जो रहे सर प' दुआओं की तरह



आज पलकों में मुझे ख़्वाब बनाकर रख लो

कल मैं खो जाऊंगा गुमनाम गुफ़ाओं की तरह



मुझको सुलझाने में तुम ख़ुद ही उलझ… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 4, 2015 at 10:33am — No Comments

कुंठा / दुष्यंत कुमार

मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ' वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा।

Added by Rina Badiani Manek on October 8, 2014 at 11:33am — No Comments

गुफ़्तगू / गुलज़ार

कभीकभी, जब मैं बैठ जाता हूँ

अपनी नज़्मों के सामने निस्फ़ दायरे में

मिज़ाज पूछूँ

कि एक शायर के साथ कटती है किस तरह से?

वो घूर के देखती हैं मुझ को

सवाल करती हैं ! उनसे मैं हूँ ?

या मुझसे हैं वो ?

वो सारी नज़्में , कि मैं समझता हूँ वो मेरे

'जीन' से हैं लेकिन

वो यूँ समझती हैं उनसे है मेरा नाक-नक़्शा

ये शक्ल उनसे मिली है मुझको !



मिज़ाज पूछूँ मैं क्या ? कि इक नज़्म आगे आती है

छू के पेशानी पूछती है -

" बताओ गर इन्तिशार है कोई सोच… Continue

Added by Rina Badiani Manek on October 5, 2014 at 9:11pm — No Comments

तमाम लोग अकेले थे/ परवीन शाकिर

तमाम लोग अकेले थे राहबर ही न था

बिछड़ने वालों में इक मेरा हमसफ़र ही न था



बरहना शाख़ों का जंगल गड़ा था आँखों में

वो रात थी कि कहीं चांद का गुज़र ही न था



तुम्हारे शहर की हर छाँव मेहरबां थी मगर

जहां पे धूप कड़ी थी , वहाँ शजर ही न था



समेट लेती शिकस्ता गुलाब की ख़ुश्बू

हवा के हाथ में ऐसा कोई हुनर ही न था



मैं इतने सांपो को रस्ते में देख आयी थी

कि तेरे शहर में पहुंची तो कोई डर ही न था



कहाँ से आती किरन ज़िंदगी के ज़िंदा… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 26, 2014 at 5:54pm — No Comments

तनहाई / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहीं

राहरौ होगा, कहीं और चला जायेगा

ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़ुबार

लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदः चिराग़

सो गई रस्तः तक-तक के हरइक राहगुज़ार

अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिये क़दमों के सुराग़

गुल करो शम्‍एँ, बढ़ा दो मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़

अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो

अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा







राहरौ - पथिक

ग़ुबार - धूल

ऐवानों - महलों

मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़ - शराब, सुराही… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 19, 2014 at 7:57pm — No Comments

कुछ तो हो / अनामिका

कुछ तो हो!

कोई पत्ता तो कहीं डोले

कोई तो बात होनी चाहिए अब जिन्दगी में

बोलने मैं समझने - जैसी कोई बात ,

चलने में पहुँचने - जैसी

करने में हो जाने - जैसी कोई तरंग



या मौला, क्या हो रहा है यह

ओंठ चल रहे हैं लगातार

शब्द से अर्थ खेलते हैं कुट्टी-कुट्टी

पर बात कहीं भी नहीं पहुँच पाती.



जो देखो वो है सवार

कोई किसी के कंधे पर

कोई ऐन आपके ही सिर

सब हैं सवार

सब जा रहे हैं कहीं न कहीं

कहीं बिना पहुंचे हुए!



जैसे… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 14, 2014 at 7:57pm — No Comments

दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं / ग़ालिब

दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं

ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं



क्यों गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाये दिल?

इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र नहीं हूँ मैं



या रब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये

लौह-ए-जहां पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर नहीं हूँ मैं



हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत के वास्ते

आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं



किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे?

लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर नहीं हूँ मैं



रखते हो तुम क़दम… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 11, 2014 at 6:04pm — No Comments

ज़िंदगी / अमृता प्रीतम

छः कदम पूरे और एक आधा

जेल की एक कोठरी

कि इन्सान बैठ-उठ सके

और आराम से सो भी सके ।



'इश्वर' एक बासी रोटी

'सब्र' अधपका सालन

चाहे तो जी भरकर

वह दोनों जून खा ले ।



और जेल के अहाते में

एक जोहड़ ' ज्ञान ' का

कि इन्सान हाथ- मुँह धो ले

(और कुछ मच्छर छान कर)

वह अंजुली भर पी ले ।



रूह का एक ज़ख़्म

एक आम रोग है ।



ज़ख़्म की नग्नता से

जो बहुत शर्म आये

तो सपने का टुकड़ा फाड़कर

उस ज़ख़्म को ढाँप लें… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 11, 2014 at 7:16am — No Comments

नहीं होता / फ़िराक़ गोरखपुरी

कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता

हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता

बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता

यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता

Added by Rina Badiani Manek on September 11, 2014 at 6:07am — 1 Comment

कितनी दूरियों से कितनी बार / अज्ञेय

कितनी दूरियों से कितनी बार

कितनी डगमग नावों में बैठ कर

मैं तुम्हारी ओर आया हूँ

ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!

कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी

पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में

पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।

कितनी बार मैं,

धीर, आश्वस्त, अक्लांत—

ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार...



और कितनी बार कितने जगमग जहाज़

मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर

किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में

जहाँ नंगे अंधेरों को

और भी उघाड़ता रहता… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 10, 2014 at 8:02pm — No Comments

हरी हरी दूब पर / अटल बिहारी वाजपेयी

हरी हरी दूब पर

ओस की बूंदे

अभी थी,

अभी नहीं हैं|

ऐसी खुशियाँ

जो हमेशा हमारा साथ दें

कभी नहीं थी,

कहीं नहीं हैं|



क्काँयर की कोख से

फूटा बाल सूर्य,

जब पूरब की गोद में

पाँव फैलाने लगा,

तो मेरी बगीची का

पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,

मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ

या उसके ताप से भाप बनी,

ओस की बुँदों को ढूंढूँ?



सूर्य एक सत्य है

जिसे झुठलाया नहीं जा सकता

मगर ओस भी तो एक सच्चाई है

यह बात अलग है… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 10, 2014 at 6:25am — No Comments

ख़ुदकुशी / गुलज़ार

बस एक लम्हे का झगड़ा था
दरो-दीवार पे ऐसे छनाके से गिरी आवाज़ जैसे काँच गिरता है-
हर इक शै में गयीं उड़ती हुई, जलती हुई किर्चें !
नज़र में, बात में, लहजे में, सोच और साँस के अंदर ।
लहू होना था इक रिश्ते का, सो वह हो गया उस दिन - !

उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फर्श से उस शब,
किसी ने काट लीं नब्ज़ें-
न की आवाज़ तक कुछ भी,
कि कोई जाग न जाये !!

Added by Rina Badiani Manek on September 9, 2014 at 7:48pm — 1 Comment

सबकुछ आँखों में है / मुज़फ़्फ़र वारसी

सबकुछ आँखों में है और कहता हूँ देखा क्या है

एक प्यासे का तसव्वुर है ये दुनिया क्या है



ज़िंदगी है कि हवाओं को पकड़ने का जुनूँ

ख़्वाब में चलने की आदत है तमन्ना क्या है



ज़ेह्न रोशन हो तो हो जाता है क़द भी ऊँचा

मेरे हमज़ाद की तस्वीर है साया क्या है



मेरा किरदार मोहब्बत, मिरी तहज़ीब वफ़ा

फिर भी सब पूछ रहे हैं मिरा मंशा क्या है



तीरगी नींद मुज़फ़्फ़र है मिरी आँखों की

मेरी ख़्वाबों का तबस्सुम है उजाला क्या है



मुज़फ़्फ़र… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 9, 2014 at 7:31pm — 1 Comment

तलाशी / अनामिका

उन्होंने कहा- "हैण्ड्स अप!"

एक-एक अंग फोड़ कर मेरा

उन्होंने तलाशी ली!



मेरी तलाशी में मिला क्या उन्हें?

थोड़े से सपने मिले और चांद मिला

सिगरेट की पन्नी-भर,

माचिस-भर उम्मीद, एक अधूरी चिट्ठी

जो वे डीकोड नहीं कर पाये



क्योंकि वह सिन्धुघाटी सभ्यता के समय

मैंने लिखी थी-

एक अभेद्य लिपि में-

अपनी धरती को-



"हलो धरती, कहीं चलो धरती,

कोल्हू का बैल बने गोल-गोल घूमें हम कब तक?

आओ, कहीं आज घूरते हैं तिरछा

एक अग्निबान… Continue

Added by Rina Badiani Manek on September 9, 2014 at 5:15pm — No Comments

वक़्त / गुलज़ार

मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख़्तों की, छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
त'आकुब में था उसके मैं
गिरफ्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था ।

Added by Rina Badiani Manek on September 6, 2014 at 6:32pm — No Comments

तख़लीक़ / मुहम्मद अलवी

एक ज़ंग आलूदा
तोप के दहाने में
नन्ही मुन्नी
चिड़िया ने
घोंसला बनाया है



तख़लीक़ - सृजन
ज़ंग आलूदा - जंग लगी

Added by Rina Badiani Manek on September 4, 2014 at 4:39pm — No Comments

ऐश ट्रे पूरी भर गई है..../ गुलज़ार

जगह नहीं और डायरी में

ये ऐश ट्रे पूरी भर गई है

भरी हुई है जले-बुझे अधकहे ख़यालों की राखो-बू से

ख़याल पूरी तरह से जो कि जले नहीं थे

मसल दिया या दबा दिया था, बुझे नहीं वो

कुछ उनके टुर्रे पड़े हुए हैं

बस एक दो कश लेके ही कुछ मिसरे रह गये थे



कुछ ऐसी नज़्में जो तोड़ कर फेंक दी थी उसमें

धुआँ न निकले

कुछ ऐसे अशआर जो मेरे ब्रांड के नहीं थे

वो एक ही कश में खांस कर, ऐश ट्रे में

घिस के बुझा दिए थे



इस ऐश ट्रे में

'ब्लेड' से काटी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 31, 2014 at 5:40pm — No Comments

जो कहा नही गया / अज्ञेय

उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गई,

सुख की स्मिति कसक भरी,निर्धन की नैन-कोरों में काँप गई,

बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गई।

अधूरी हो पर सहज थी अनुभूति :

मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप गई-

फिर मुझ बेसबरे से रहा नहीं गया।

पर कुछ और रहा जो कहा नहीं गया।



निर्विकार मरु तक को सींचा है

तो क्या? नदी-नाले ताल-कुएँ से पानी उलीचा है

तो क्या ? उड़ा हूँ, दौड़ा हूँ, तेरा हूँ, पारंगत हूँ,

इसी अहंकार के मारे

अन्धकार में सागर के किनारे… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 31, 2014 at 8:04am — No Comments

वर्किंग वूमन / परवीन शाकिर

सब कहते हैं

कैसे गुरुर की बात हुई है

मैं अपनी हरियाली को खुद अपने लहू से सींच रही हूँ

मेरे सारे पत्तों की शादाबी

मेरे अपनी नेक कमाई है

मेरे एक शिगुफ़े पर भी

किसी हवा और किसी बारिश का बाल बराबर क़र्ज़ नहीं है

मैं जब चाहूँ खिल सकती हूँ

मेरे सारा रूप मिरी अपनी दरयाफ्त है

मैं अब हर मौसम से सर ऊँचा करके मिल सकती हूँ

एक तनवर पेड़ हूँ अब मैं

और अपनी ज़रखेज़ नुमू के सारे इम्कानात को भी पहचान रही हूँ

लेकिन मेरे अन्दर की ये बहुत पुरानी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on August 30, 2014 at 4:44pm — No Comments

सिर्फ़ एक लम्हा / जया जादवानी

सिर्फ़ एक लम्हा फूँकना
तुम मेरी साँस में साँस
मुझे जीवित कर देना
सिर्फ़ एक लम्हा
निहारना मेरी तरफ़
मुझमें पंख उगा देना
सिर्फ़ एक लम्हा
तुम मुझे देना शब्द एक
मुझे कालजयी बना देना
सिर्फ़ एक लम्हा धुन-सा
तुम मेई देह की
खाली बाँसुरी में उतरना
सातों राग भर देना
सिर्फ़ एक लम्हा ही जीकर
सदियों जीने से मुक्त हो पाऊँगी
सिर्फ़ एक लम्हे के लिए
मैं फिर-फिर वापस आऊँगी।

Added by Rina Badiani Manek on August 27, 2014 at 11:44am — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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