Rina Badiani Manek's Blog (234)

यह बात तो ग़लत है / निदा फ़ाज़ली

कोई किसी से खुश हो और वो भी बारहा हो

यह बात तो गलत है

रिश्ता लिबास बन कर मैला नहीं हुआ हो

यह बात तो गलत है



वो चाँद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का

था मौजिज़ा नज़र का

हर बार की नज़र से रोशन वह मौजिज़ा हो

यह बात तो गलत है



है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची

फिर भी है थोड़ी कच्ची

जो उसका हादसा है मेरा भी तजुर्बा हो

यह बात तो गलत है



दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी

रुकती नहीं कहानी

जितना लिखा गया है उतना… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 25, 2015 at 9:49am — No Comments

आओ कि कोई ख़्वाब बुनें / साहिर लुधियानवी

आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते

वरना ये रात आज के संगीन दौर की

डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल

ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें



गो हम से भागती रही ये तेज़-गाम उम्र

ख़्वाबों के आसरे पे कटी है तमाम उम्र



ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब, होंठों के ख़्वाब, और बदन के ख़्वाब

मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब, कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब



तहज़ीब-ए-ज़िन्दगी के, फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब

ज़िन्दाँ के ख़्वाब, कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब



ये ख़्वाब… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 17, 2015 at 5:03pm — No Comments

.........../ રીના

મુંગુ બારણું
બહેરી દીવાલો
આંધળી બારીઓ
સ્પર્શીનેય ન સ્પર્શતી
કેટલીયે ચીજો

અને ..??!!

અને ....આ બધાને
બોલતા
સાંભળતા
દેખતા
અડકતા
અને એમાં
જિંદગીની સુગંધ
શોધતા
મારા શ્વાસ અને હું...

Added by Rina Badiani Manek on April 14, 2015 at 5:44pm — 2 Comments

अकारण प्यार से / अरुणा राय

स्वप्न में

मन के सादे कागज पर

एक रात किसी ने

ईशारों से लिख दिया अ....

और अकारण

शुरू हो गया वह

और एक अनमनापन बना रहने लगा

फिर उस अनमनेपन को दूर करने को

एक दिन आई खुशी

और आजू-बाजू कई कारण

खडें कर दिए

कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए

और वह लगा डग भरने , चलने और

और अखीर में उड़ने

अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी

जिधर का ईशारा करता अ...

और पाता कि यह दुनिया तो

इसी अकारण प्यार से चल रही है

और उसे पहली बार… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 12, 2015 at 9:20am — No Comments

उम्मीद से आगे / अशोक वाजपेयी

रोशनी उम्मीद से आगे निकल गई है

उसकी चकाचौंध में

न उम्मीद दिखायी देती है, न नाउम्मीदीः

उनकी इबारतें धुल-पुँछकर मिट गई है ।

पत्तियों की काँपती हरीतिमा से

चिड़िया कुछ चाहती होगी

यह कहना कठिन है :

उनका काँपते हुए होना सुंदर है,

चिड़िया देखे, न देखे

उन्हें धारे हुए वृक्ष जाने , न जाने ।

बच्चे की आँखें धूप से चौंधिया कर मुँदी हैं

और उसे पता तक नहीं है कि

कितनी दूर तक फैल गया है धूप का संसार ।

रोशनी ने सबकुछ ढकेल दिया है

सिवाय इस… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 7, 2015 at 2:54pm — No Comments

Alone With Everybody /Charles Bukowski

the flesh covers the bone

and they put a mind

in there and

sometimes a soul,

and the women break

vases against the walls

and the men drink too

much

and nobody finds the

one

but keep

looking

crawling in and out

of beds.

flesh covers

the bone and the

flesh searches

for more than

flesh.



there's no chance

at all:

we are all trapped

by a singular

fate.



nobody ever… Continue

Added by Rina Badiani Manek on April 6, 2015 at 8:46am — No Comments

મૌન શબ્દ ....../ રીના

મૌને
કહ્યો હતો
એક શબ્દ ...
તેં
સાંભળ્યો નહીં
તો....
ટપ કરી પડ્યો
જમીન પર
અને
ઊગી નીકળ્યું
એક ઘટાદાર વૃક્ષ .....

Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 1:14pm — 2 Comments

रिश्वत ख़ोर दहाई / मुहम्मद अलवी

पैंसठ ने रोका और पूछा
कौन हो कैसे आए हो
अच्छा आगे जाना है
ठीक है लेकिन यह तो कहो
मेरे लिये क्या लाये हो
मैंने कहा क्या चाहते हो
दाँत इकसठ ने मार लिये
बासठ, त्रेसठ और चौंसठ ने
सर के बाल उतार लिए
अब दो आँखें बाक़ी है
आगे रस्ता ठीक नहीं
तुम चाहो तो भाई मेरे
आधी बीनाई ले लो
66' का वीज़ा दे दो

Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 12:42pm — No Comments

ग़ज़ल / मुनीर नियाज़ी

ये बे सदा संग-ओ-दर अकेले
उजाड़ , सुनसान घर अकेले

चले जो पीके मस्तियों में
गए कहाँ बेखबर अकेले

मुहीब बन था चहार जानिब
कटा था सारा सफ़र अकेले

हवा सी रंगों में चल रही है
खड़े हैं वो बाम पर अकेले

है शाम की ज़र्द धूप सर पर
हों जैसे दिन में नगर अकेले

'मुनीर' घर से निकल के हम भी
बहुत फिरे दर-ब-दर अकेले

Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 12:19pm — No Comments

आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा / मीना कुमारी

आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा

ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा

प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा

मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा

ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा

Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2015 at 8:15am — 1 Comment

प्यार वो बीज है / गुलज़ार

प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा

दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये

प्यार अकेला नहीं जी सकता

जीता है तो दो लोगों में

मरता है तो दो मरते हैं



प्यार इक बहता दरिया है

झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं

सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता

बस दरिया है और बह जाता है.



दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है

चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है

पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना

नीचे से फिर भाग के सूरत उपर… Continue

Added by Rina Badiani Manek on February 14, 2015 at 1:10pm — No Comments

अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन / अरुणा राय

अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन

मैंने कहाँ पढ़ी है वह कविता

अभी तो तूने मेरी आँखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं

कंधे लिखे हैं उठान लिए

और मेरी सुरीली आवाज लिखी है



पर मेरी रूह फ़ना करते

उस शोर की बाबत कहाँ लिखा कुछ तूने

जो मेरे सरकारी जिरह-बख़्तर के बावजूद

मुझे अंधेरे बंद कमरे में

एक झूठी तस्सलीबख़्श नींद में ग़र्क रखता है



अभी तो बस सुरमई आँखें लिखीं हैं तूने

उनमें थक्कों में जमते दिन-ब-दिन

जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 28, 2015 at 5:50pm — No Comments

दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया / नासिर काज़मी

दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गयी, मुझे भी सब्र आ गया

पुकारती हैं फ़ुर्सतें, कहाँ गयी वो सुह्बतें
ज़मीं निगल गयी उन्हें कि आसमान खा गया

ये सुबह की सफ़ेदियाँ, ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया

गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलमकशों ! उठो कि सर पे आफ़ताब आ गया

Added by Rina Badiani Manek on January 27, 2015 at 6:59am — No Comments

विश्वास करना चाहता हूँ / अशोक वाजपेयी

विश्वास करना चाहता हूँ कि

जब प्रेम में अपनी पराजय पर

कविता के निपट एकांत में विलाप करता हूँ

तो किसी वृक्ष पर नए उगे किसलयों में सिहरन होती है

बुरा लगता है किसी चिड़िया को दृश्य का फिर भी इतना हरा-भरा होना

किसी नक्षत्र की गति पल भर को धीमी पड़ती है अंतरिक्ष में

पृथ्वी की किसी अदृश्य शिरा में बह रहा लावा थोड़ा बुझता है

सदियों के पार फैले पुरखे एक-दूसरे को ढाढ़स बंधाते हैं

देवताओं के आंसू असमय हुई वर्षा में झरते हैं

मैं रोता हूँ

तो पूरे ब्रह्मांड… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 25, 2015 at 11:04pm — No Comments

तुमको मेरे मरने की ये हसरत ये तमन्ना / दाग़ देहलवी

तुमको मेरे मरने की ये हसरत ये तमन्ना
अच्छों को बुरी बात का अरमाँ नहीं देखा

लो और सुनो, कहते हैं वो देख के मुझको
जो हाल सुना था वो परीशाँ नहीं देखा

तुम मुँह से कहे जाओ कि देखा है ज़माना
आँखें तो ये कहती हैं कि हाँ हाँ नहीं देखा

कहती है मेरी कब्र पे रो रो के मुहब्बत
यूँ ख़ाक में मिलते हुए अरमाँ नहीं देखा

क्यों पूछते हो कौन है ये किसकी है शोहरत
क्या तुमने कभी 'दाग़' का दीवाँ नहीं देखा

Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2015 at 5:09pm — No Comments

दुआ जो मेरी बेअसर हो गई / इस्मत ज़ैदी



दुआ जो मेरी बेअसर हो गई

फिर इक आरज़ू दर बदर हो गई



वफ़ा हम ने तुझ से निभाई मगर

निगह में तेरी बेसमर हो गई



तलाश ए सुकूँ में भटकते रहे

हयात अपनी यूंही बसर हो गई



कड़ी धूप की सख़्तियाँ झेल कर

थी ममता जो मिस्ले शजर हो गई



न जाने कि लोरी बनी कब ग़ज़ल

"ज़रा आँख झपकी सहर हो गई"



वो लम्बी मसाफ़त की मंज़िल मेरी

तेरा साथ था ,मुख़्तसर हो गई



मैं जब भी उठा ले के परचम कोई

तो काँटों भरी रहगुज़र हो… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2015 at 8:58am — No Comments

नाव में बहते -बहते / गुलज़ार

नाव में बहते-बहते इक नज़्म मेरी पानी में गिरी और गलने लगी
काग़ज़ का पैराहन था
मेरी तहरीर न थाम सका

सियाही फैल गई पहले
फिर लफ़्ज़ गले, और एकएक करके डूब गये
टूटते मिसरों की हिचकी, कुछ दूर सुनाई दी और फिर
बाक़ीमांदा......
कुछ मानी थे
कुछ देर किसी तलछट की तरह
पानी की सतह पर तैरे और फिर बहते-बहते
आँख से ओझल होते गये !

Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 9:06pm — No Comments

दह्र के अंधे कुएँ में कसके आवाज़ लगा / इक़बाल साजिद

दह्र के अंधे कुएँ में कसके आवाज़ लगा

कोई पत्थर फ़ेककर पानी का अंदाज़ा लगा



रात भी अब जा रही है अपनी मंज़िल की तरफ़

किसकी धून में जागता है, घर का दरवाज़ा लगा



काँच के बरतन में जैसे सुर्ख़ कागज़ का गुलाब

वह मुझे उतना ही अच्छा और तरोताज़ा लगा



शहर की सड़कों पे अंधी रात के पिछले पहर

मेरा ही साया मुझे रंगों का शीराज़ा लगा



जाने रहता है कहाँ इक़बाल साजिद इन दिनों

रातदिन देखा है उसके घर का दरवाज़ा लगा







दह्र -… Continue

Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 8:05pm — No Comments

यां आदमी पे जान को वारे है आदमी / नज़ीर अकबराबादी

यां आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी पे तेग़ को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वह भी आदमी

मरने में आदमी ही क़फन करते हैं तैयार
नहला-धुला उठाते हैं कांधे पे कर सवार
कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार
सब आदमी ही करते हैं मुर्दे का कारोबार
और वह जो मर गया है सो है वह भी आदमी

Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:53pm — No Comments

नीले नीले से शब के गुंबद में / गुलज़ार

नीले नीले से शब के गुंबद में
तानपूरा मिला रहा है कोई

एक शफ़्फ़ाक़ काँच का दरिया
जब खनक जाता है किनारों से
देर तक गूँजता है कानों में

पलकें झपका के देखती है शमएं
और फ़ानूस गुनगुनाते हैं
मैंने मुन्द्रों की तरह कानों में
तेरी आवाज़ पहन रक्खी है

Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:31pm — 1 Comment

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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