कोई किसी से खुश हो और वो भी बारहा हो
यह बात तो गलत है
रिश्ता लिबास बन कर मैला नहीं हुआ हो
यह बात तो गलत है
वो चाँद रहगुज़र का, साथी जो था सफ़र का
था मौजिज़ा नज़र का
हर बार की नज़र से रोशन वह मौजिज़ा हो
यह बात तो गलत है
है बात उसकी अच्छी, लगती है दिल को सच्ची
फिर भी है थोड़ी कच्ची
जो उसका हादसा है मेरा भी तजुर्बा हो
यह बात तो गलत है
दरिया है बहता पानी, हर मौज है रवानी
रुकती नहीं कहानी
जितना लिखा गया है उतना…
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Added by Rina Badiani Manek on April 25, 2015 at 9:49am —
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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते
वरना ये रात आज के संगीन दौर की
डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल
ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें
गो हम से भागती रही ये तेज़-गाम उम्र
ख़्वाबों के आसरे पे कटी है तमाम उम्र
ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब, होंठों के ख़्वाब, और बदन के ख़्वाब
मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब, कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब
तहज़ीब-ए-ज़िन्दगी के, फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब
ज़िन्दाँ के ख़्वाब, कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब
ये ख़्वाब…
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Added by Rina Badiani Manek on April 17, 2015 at 5:03pm —
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મુંગુ બારણું
બહેરી દીવાલો
આંધળી બારીઓ
સ્પર્શીનેય ન સ્પર્શતી
કેટલીયે ચીજો
અને ..??!!
અને ....આ બધાને
બોલતા
સાંભળતા
દેખતા
અડકતા
અને એમાં
જિંદગીની સુગંધ
શોધતા
મારા શ્વાસ અને હું...
Added by Rina Badiani Manek on April 14, 2015 at 5:44pm —
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स्वप्न में
मन के सादे कागज पर
एक रात किसी ने
ईशारों से लिख दिया अ....
और अकारण
शुरू हो गया वह
और एक अनमनापन बना रहने लगा
फिर उस अनमनेपन को दूर करने को
एक दिन आई खुशी
और आजू-बाजू कई कारण
खडें कर दिए
कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए
और वह लगा डग भरने , चलने और
और अखीर में उड़ने
अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी
जिधर का ईशारा करता अ...
और पाता कि यह दुनिया तो
इसी अकारण प्यार से चल रही है
और उसे पहली बार…
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Added by Rina Badiani Manek on April 12, 2015 at 9:20am —
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रोशनी उम्मीद से आगे निकल गई है
उसकी चकाचौंध में
न उम्मीद दिखायी देती है, न नाउम्मीदीः
उनकी इबारतें धुल-पुँछकर मिट गई है ।
पत्तियों की काँपती हरीतिमा से
चिड़िया कुछ चाहती होगी
यह कहना कठिन है :
उनका काँपते हुए होना सुंदर है,
चिड़िया देखे, न देखे
उन्हें धारे हुए वृक्ष जाने , न जाने ।
बच्चे की आँखें धूप से चौंधिया कर मुँदी हैं
और उसे पता तक नहीं है कि
कितनी दूर तक फैल गया है धूप का संसार ।
रोशनी ने सबकुछ ढकेल दिया है
सिवाय इस…
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Added by Rina Badiani Manek on April 7, 2015 at 2:54pm —
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the flesh covers the bone
and they put a mind
in there and
sometimes a soul,
and the women break
vases against the walls
and the men drink too
much
and nobody finds the
one
but keep
looking
crawling in and out
of beds.
flesh covers
the bone and the
flesh searches
for more than
flesh.
there's no chance
at all:
we are all trapped
by a singular
fate.
nobody ever…
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Added by Rina Badiani Manek on April 6, 2015 at 8:46am —
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મૌને
કહ્યો હતો
એક શબ્દ ...
તેં
સાંભળ્યો નહીં
તો....
ટપ કરી પડ્યો
જમીન પર
અને
ઊગી નીકળ્યું
એક ઘટાદાર વૃક્ષ .....
Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 1:14pm —
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पैंसठ ने रोका और पूछा
कौन हो कैसे आए हो
अच्छा आगे जाना है
ठीक है लेकिन यह तो कहो
मेरे लिये क्या लाये हो
मैंने कहा क्या चाहते हो
दाँत इकसठ ने मार लिये
बासठ, त्रेसठ और चौंसठ ने
सर के बाल उतार लिए
अब दो आँखें बाक़ी है
आगे रस्ता ठीक नहीं
तुम चाहो तो भाई मेरे
आधी बीनाई ले लो
66' का वीज़ा दे दो
Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 12:42pm —
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ये बे सदा संग-ओ-दर अकेले
उजाड़ , सुनसान घर अकेले
चले जो पीके मस्तियों में
गए कहाँ बेखबर अकेले
मुहीब बन था चहार जानिब
कटा था सारा सफ़र अकेले
हवा सी रंगों में चल रही है
खड़े हैं वो बाम पर अकेले
है शाम की ज़र्द धूप सर पर
हों जैसे दिन में नगर अकेले
'मुनीर' घर से निकल के हम भी
बहुत फिरे दर-ब-दर अकेले
Added by Rina Badiani Manek on March 4, 2015 at 12:19pm —
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आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2015 at 8:15am —
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प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा
दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाईश है ये
प्यार अकेला नहीं जी सकता
जीता है तो दो लोगों में
मरता है तो दो मरते हैं
प्यार इक बहता दरिया है
झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं
सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता
बस दरिया है और बह जाता है.
दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है
चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है
पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना
नीचे से फिर भाग के सूरत उपर…
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Added by Rina Badiani Manek on February 14, 2015 at 1:10pm —
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अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन
मैंने कहाँ पढ़ी है वह कविता
अभी तो तूने मेरी आँखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं
कंधे लिखे हैं उठान लिए
और मेरी सुरीली आवाज लिखी है
पर मेरी रूह फ़ना करते
उस शोर की बाबत कहाँ लिखा कुछ तूने
जो मेरे सरकारी जिरह-बख़्तर के बावजूद
मुझे अंधेरे बंद कमरे में
एक झूठी तस्सलीबख़्श नींद में ग़र्क रखता है
अभी तो बस सुरमई आँखें लिखीं हैं तूने
उनमें थक्कों में जमते दिन-ब-दिन
जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का…
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Added by Rina Badiani Manek on January 28, 2015 at 5:50pm —
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दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गयी, मुझे भी सब्र आ गया
पुकारती हैं फ़ुर्सतें, कहाँ गयी वो सुह्बतें
ज़मीं निगल गयी उन्हें कि आसमान खा गया
ये सुबह की सफ़ेदियाँ, ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलमकशों ! उठो कि सर पे आफ़ताब आ गया
Added by Rina Badiani Manek on January 27, 2015 at 6:59am —
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विश्वास करना चाहता हूँ कि
जब प्रेम में अपनी पराजय पर
कविता के निपट एकांत में विलाप करता हूँ
तो किसी वृक्ष पर नए उगे किसलयों में सिहरन होती है
बुरा लगता है किसी चिड़िया को दृश्य का फिर भी इतना हरा-भरा होना
किसी नक्षत्र की गति पल भर को धीमी पड़ती है अंतरिक्ष में
पृथ्वी की किसी अदृश्य शिरा में बह रहा लावा थोड़ा बुझता है
सदियों के पार फैले पुरखे एक-दूसरे को ढाढ़स बंधाते हैं
देवताओं के आंसू असमय हुई वर्षा में झरते हैं
मैं रोता हूँ
तो पूरे ब्रह्मांड…
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Added by Rina Badiani Manek on January 25, 2015 at 11:04pm —
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तुमको मेरे मरने की ये हसरत ये तमन्ना
अच्छों को बुरी बात का अरमाँ नहीं देखा
लो और सुनो, कहते हैं वो देख के मुझको
जो हाल सुना था वो परीशाँ नहीं देखा
तुम मुँह से कहे जाओ कि देखा है ज़माना
आँखें तो ये कहती हैं कि हाँ हाँ नहीं देखा
कहती है मेरी कब्र पे रो रो के मुहब्बत
यूँ ख़ाक में मिलते हुए अरमाँ नहीं देखा
क्यों पूछते हो कौन है ये किसकी है शोहरत
क्या तुमने कभी 'दाग़' का दीवाँ नहीं देखा
Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2015 at 5:09pm —
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दुआ जो मेरी बेअसर हो गई
फिर इक आरज़ू दर बदर हो गई
वफ़ा हम ने तुझ से निभाई मगर
निगह में तेरी बेसमर हो गई
तलाश ए सुकूँ में भटकते रहे
हयात अपनी यूंही बसर हो गई
कड़ी धूप की सख़्तियाँ झेल कर
थी ममता जो मिस्ले शजर हो गई
न जाने कि लोरी बनी कब ग़ज़ल
"ज़रा आँख झपकी सहर हो गई"
वो लम्बी मसाफ़त की मंज़िल मेरी
तेरा साथ था ,मुख़्तसर हो गई
मैं जब भी उठा ले के परचम कोई
तो काँटों भरी रहगुज़र हो…
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Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2015 at 8:58am —
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नाव में बहते-बहते इक नज़्म मेरी पानी में गिरी और गलने लगी
काग़ज़ का पैराहन था
मेरी तहरीर न थाम सका
सियाही फैल गई पहले
फिर लफ़्ज़ गले, और एकएक करके डूब गये
टूटते मिसरों की हिचकी, कुछ दूर सुनाई दी और फिर
बाक़ीमांदा......
कुछ मानी थे
कुछ देर किसी तलछट की तरह
पानी की सतह पर तैरे और फिर बहते-बहते
आँख से ओझल होते गये !
Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 9:06pm —
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दह्र के अंधे कुएँ में कसके आवाज़ लगा
कोई पत्थर फ़ेककर पानी का अंदाज़ा लगा
रात भी अब जा रही है अपनी मंज़िल की तरफ़
किसकी धून में जागता है, घर का दरवाज़ा लगा
काँच के बरतन में जैसे सुर्ख़ कागज़ का गुलाब
वह मुझे उतना ही अच्छा और तरोताज़ा लगा
शहर की सड़कों पे अंधी रात के पिछले पहर
मेरा ही साया मुझे रंगों का शीराज़ा लगा
जाने रहता है कहाँ इक़बाल साजिद इन दिनों
रातदिन देखा है उसके घर का दरवाज़ा लगा
दह्र -…
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Added by Rina Badiani Manek on January 18, 2015 at 8:05pm —
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यां आदमी पे जान को वारे है आदमी
और आदमी पे तेग़ को मारे है आदमी
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी
चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी
और सुनके दौड़ता है सो है वह भी आदमी
मरने में आदमी ही क़फन करते हैं तैयार
नहला-धुला उठाते हैं कांधे पे कर सवार
कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार
सब आदमी ही करते हैं मुर्दे का कारोबार
और वह जो मर गया है सो है वह भी आदमी
Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:53pm —
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नीले नीले से शब के गुंबद में
तानपूरा मिला रहा है कोई
एक शफ़्फ़ाक़ काँच का दरिया
जब खनक जाता है किनारों से
देर तक गूँजता है कानों में
पलकें झपका के देखती है शमएं
और फ़ानूस गुनगुनाते हैं
मैंने मुन्द्रों की तरह कानों में
तेरी आवाज़ पहन रक्खी है
Added by Rina Badiani Manek on January 10, 2015 at 6:31pm —
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