Rina Badiani Manek's Blog – May 2015 Archive (9)

एक नया अनुभव / हरिवंशराय बच्चन

मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक

कविता लिखना चाहता हूँ।

चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में

मेरे परों की रंगीनी है?'

मैंने कहा, 'नहीं'।

'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'

'नहीं।'

'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'

'नहीं।'

'जान है?'

'नहीं।'

'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'

मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'

चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'

एक अनुभव हुआ नया।

मैं मौन हो… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 31, 2015 at 8:40pm — No Comments

उलझन / परवीन शाकिर

रात भी तन्हाई की पहली दहलीज़ पे है
और मेरी जानिब अपने हाथ बढ़ाती है
सोच रही हूं
उनको थामूं
ज़ीना-ज़ीना सन्नाटों के तहख़ानों में उतरूं
या अपने कमरे में ठहरूं
चांद मेरी खिड़की पर दस्तक देता है

Added by Rina Badiani Manek on May 31, 2015 at 12:14am — No Comments

घुटन / गुलज़ार

जी में आता है कि इस कान में सुराख़ करूँ
खींचकर दूसरी जानिब से निकालूँ उसको
सारी की सारी निचोडूँ ये रगें साफ़ करूँ
भर दूँ रेशम की जलाई हुई भुक्की इसमें

कह्कहाती हुई भीड़ में शामिल होकर
मैं भी एक बार हँसूँ, खूब हँसूँ, खूब हँसू

Added by Rina Badiani Manek on May 29, 2015 at 4:11pm — No Comments

तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया / दुष्यंत कुमार

तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया

पाँवों की सब ज़मीन को फूलों से ढँक दिया



किससे कहें कि छत की मुँडेरों से गिर पड़े

हमने ही ख़ुद पतंग उड़ाई थी शौक़िया



अब सब से पूछता हूँ बताओ तो कौन था

वो बदनसीब शख़्स जो मेरी जगह जिया



मुँह को हथेलियों में छिपाने की बात है

हमने किसी अंगार को होंठों से छू लिया



घर से चले तो राह में आकर ठिठक गये

पूरी हुई रदीफ़ अधूरा है काफ़िया



मैं भी तो अपनी बात लिखूँ अपने हाथ से

मेरे सफ़े पे छोड़… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 19, 2015 at 10:24am — No Comments

गुलज़ार/ टहनी पर बैठा था वो

टहनी पर बैठा था वो
नीचे तालाब का पानी था और,
तालाब के अंदर आसमान था
डूबने से डर लगता था
न तैरा, न उड़ा, न डूबा
टहनी पर बैठे बैठे ही बिलाख़िर वो सूख गया !
एक अकेला शाख़ का पत्ता !

Added by Rina Badiani Manek on May 16, 2015 at 3:37pm — No Comments

इतनी देर से क्यों / अशोक वाजपेयी

उससे पूछो

वह इतनी देर से क्यों आई है?

इस बीच पृथ्वी अपनी धुरी पर रहते हुए

सूर्य की कितनी परिक्रमा कर चुकी,

कितनी वनस्पतियाँ विजड़ित होकर चट्टान बन गई,

पत्थरों के कितने सारे सपने

रेत-रेत होकर बिखर चुके -

चिथड़े हो चुके महाकाव्य

और भूरी पड़ चुकी है सारी प्रतीक्षा ,

चिड़िया चहचहाने और गाने के बाद

थककर अपने घोंसलों में लौट गई है,

शब्द मौन की और बढ़ने लगे हैं, धीरेधीरे उभर रहा है मृत्यु का आवाहन संगीत -

उससे पूछो

वह इतनी देर से क्यों… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 15, 2015 at 5:32pm — No Comments

मापदण्ड बदलो / दुष्यंत कुमार

मेरी प्रगति या अगति का

यह मापदण्ड बदलो तुम,

जुए के पत्ते-सा

मैं अभी अनिश्चित हूँ ।

मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,

कोपलें उग रही हैं,

पत्तियाँ झड़ रही हैं,

मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,

लड़ता हुआ

नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।



अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,

मेरे बाज़ू टूट गए,

मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,

मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,

या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 12, 2015 at 2:27pm — No Comments

भिन्न / अनामिका

मुझे भिन्न कहते हैं -

किसी पाँचवीं कक्षा के क्रुद्ध बालक की

गणित पुस्तिका में मिलूँगी -

एक पाँव पर खड़ी - डगमग !

मैं पूर्ण इकाई नहीं,

मेरा अधोभाग

मेरे माथे से जब भारी पड़ता है -

लोग मुझे मानते हैं ठीक-ठाक ,

अँग्रेजी में 'प्रोपर फ्रेक्शन' !



अगर कहीं गलती से

मेरा माथा

मेरे अधोभाग पर भारी पड़ जाए ,

लोगों के गले यह नहीं उतरता

और मेरे माथे पर बट्टा लग जाता है -

'इम्प्रोपर फ्रेक्शन' का !

क्या माथा अधोभाग से भारी… Continue

Added by Rina Badiani Manek on May 4, 2015 at 7:43pm — No Comments

कुंठा / दुष्यंत कुमार

मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ' वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा।

Added by Rina Badiani Manek on May 3, 2015 at 9:19pm — No Comments

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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