She was afraid of men,
sin and the humors
of the night.
When she saw a bed
locks clicked
in her brain.
She screwed a frown
around and plugged
it in the keyhole.
Put a chain across
her door and closed
her mind.
Her bones were found
round thirty years later
when they razed
her building to
put up a parking lot.
Autopsy read:
dead of acute peoplelessness.
Added by Rina Badiani Manek on February 26, 2014 at 5:31pm —
1 Comment
बे-यारो मददगार ही काटा था सारा दिन
कुछ ख़ुद से अजनबी सा,
तन्हा , उदास सा,
साहिल पे दिन बुझा के मैं, लौट आया फिर वहीं ,
सुनसान सी सड़कों के ख़ाली मकान में !
दरवाज़ा खोलते ही, मेज़ पे रखी किताब ने कहा,
"देर कर दी दोस्त "
Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 4:00pm —
No Comments
गुलों को सुनना ज़रा तुम सदायें भेजी है
गुलों के हाथ बहुत सी दुआएँ भेजी हैं
जो आफ़ताब कभी भी ग़ुरूब होता नहीं
वो दिल है मेरा उसी की शु'आयें भेजी हैं
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगती
वह सारी यादें जो तुमको रूलायें भेजी हैं
स्याह रंग, चमकती हुई किनारी है
पहन लो अच्छी लगेगी घटायें भेजी हैं
तुम्हारे ख़्वाब से हरदम लिपट के सोते हैं
सज़ायें भेज दो, हमने ख़तायें भेजी हैं
अकेला पत्ता हवा में बहुत बुलंद उड़ा
ज़मीं…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 2:59pm —
No Comments
मैं चुप, शांत और अडोल खड़ी थी
सिर्फ़ पास बहते समुद्र में तूफ़ान था
फिर समुद्र को ख़ुदा जाने क्या ख़याल आया
उसने तूफ़ान की इक पोटली सी बाँधी
मेरे हाथों में थमाई और हँसकर कुछ दूर हो गया
हैरान थी पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस तरह की घटना कभी सदियों में होती है
लाखों ख़याल आये
माथे में झिलमिलाये
पर खड़ी रह गयी कि इसको उठाकर
अब अपने शहर में मैं कैसे जाऊंगी ?
मेरे शहर की हर गली तंग है
मेरे शहर की हर छत नीची…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 25, 2014 at 12:08am —
No Comments
न मैंने वुजू किया है, न कोई सजदा किया है
न मन्नत माँगने आई हूं
तेरे चारों चिराग जलते रहें
मैं तो पांचवां जलाने आई हूं.....
दुखों को पेल कर मैंने तेल लिया है
और माथे का तेवर एक रूई की बत्ती
जो माथे में सजाई है.....
चेतना की नदी में हाथों को धोया है
माथे का दिया हथेलियों पर लिया है
और उसे आत्मा की आग छुआ दी है......
यह मिट्टी का दीया , तूने ही तो दिया था
मैंने तो उसे आग का शगुन डाला है
और तेरी अमानत लौटा लाई हूं....
तेरे…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 10:15am —
No Comments
ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पर हाथ छुड़ा कर तुम
यूं तन तन्हा चल निकली हो
इस ख़ौफ़ से शायद राह भटक जाओ न कहीं
हर मोड़ पे मैंने नज़्म खड़ी कर दी है !
थक जाओ अगर -----
और तुमको ज़रूरत पड़ जाये,
इक नज़्म की उँगली थाम के वापस आ जाना !!
गुलज़ार
Added by Rina Badiani Manek on February 24, 2014 at 8:19am —
No Comments
आसमान के महलों में मेरा सूरज सो रहा है
जहाँ कोई द्वार नहीं , कोई खिड़की नहीं
और सदीयों के हाथों ने
जो पगदंड़ी बनाई है -
वह मेरी सोच के पैरों के लिए
बहुत संकरी है......
Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 1:50am —
No Comments
बदल कर देखें तो रस्ता,
वहीं से आते जाते हैं हमेशा !
वही है भेजता है, ऐसा कहते हैं
कि बिल्डर जिस तरह साइट पे वर्कर्ज़ भेजता है
बुला लेता है जब उसकी दिहाड़ी ख़त्म होती है !
बहुत से और भी सय्यारे हैं इस कायनात में
बदल कर देखें कोई और मालिक ज़िंदगी का
कहीं पे और भी कोई ख़ुदा होगा !
Added by Rina Badiani Manek on February 22, 2014 at 12:56am —
No Comments
तन्हाई तारीक कुआँ है
तेरा ख़याल जो बोले कहीं से
आसमान रोशन हो जाए
ख़ामोशी के दलदल में
कब से मेरे पाँव फँसे हैं !
Added by Rina Badiani Manek on February 21, 2014 at 11:41pm —
No Comments
हम, खाँसी , धुआँ , मच्छर , मक्खियाँ और जुएँ
और कुड़े का ढेर , और हड्डियों के पिंजर
सब प्रोटेस्ट करते हैं
और बताते हैं हमें यह बस्ती अलाट हुई है
कुछ सपनोंने रात को झुग्गियाँ बनाई है
यह झुग्गियाँ उठाओ क्योंकि यह 'अनओथोनराइज़्ड' हैं ।
Added by Rina Badiani Manek on February 21, 2014 at 9:38am —
1 Comment
हमारी मुहब्बत की
क्लीनीकल मौत वाक़े हो चुकी है !
माज़रतों और उज़्र-ख़्वाहियों का
मसनूई तनफ़्फ़ुस
उसे कब तक ज़िंदा रखेगा
बेहतर यही है
कि हम मुनाफ़्फ़ित का प्लग निकाल दें
और एक ख़ूबसूरत जज़्बे को
बावकार मौत मरने दें !
माज़रतों - विवशता
उज़्र-ख़्वाहियों - बहाने बाज़ी
मसनूई तनफ़्फ़ुस - बनावटी साँस
मुनाफ़्फ़ित - पाखंड
बावकार - सम्मानजनक
Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 10:21pm —
No Comments
જળ બનીને
સમુદ્રનો સંપર્ક કરવા
ટેલિફોન નંબર જોડું છું
ત્યાં રેતીનો અવાજ સંભળાય છે,
'માફ કરજો, આ રોંગ નંબર છે'.
પાંદડું બનીને
વૃક્ષ માટે પૂછું છું
ત્યારે
પાનખરનો ગુસ્સો ભભૂકી ઊઠે છે,
'તું નીચે ખરી પડ, તું નંબર ભૂલી ગયો છે.'
વાટ ભૂલેલા વટેમાર્ગુ બનીને
માર્ગ શોધું છું
ત્યારે વિકટ જંગલ કહે છે
'ટેલિફોનનું રિસીવર નીચે મૂક.'
હું
થાકેલો - હારેલો
વિચારું છું
ત્યારે
ચારે બાજુથી સંભળાય છે
ટેલિફોનની ઘંટડીઓનો…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 12:46pm —
No Comments
रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था ’प्यार’ तुमने
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 20, 2014 at 7:15am —
No Comments
ઇચ્છાનો સૂર્ય અસ્ત થવાની ઘડી છે આ
અજવાશ અસ્તવ્યસ્ત થવાની ઘડી છે આ
ધસમસતું ઘોડાપૂર નીરવતાનું આવતું ,
કાંઠાઓથી વિરક્ત થવાની ઘડી છે આ
આવી ગયો છે સામે શકુનિ સમો સમય
આજે ફરી શિકસ્ત થવાની ઘડી છે આ
થાકી ગયાં હલેસાં, હવે સઢ ચડાવી દો !
પાછા પવન-પરસ્ત થવાની ઘડી છે આ
હર ચીજ પર કળાય અસર પક્ષઘાતની,
જડ્વત નગર સમસ્ત થવાની ઘડી છે આ
લીલાશ જેમ પર્ણથી જુદી પડી જતી
એમ જ હવે વિભક્ત થવાની ઘડી છે આ
પ્રગટાવ પાણિયારે તું…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 5:33pm —
No Comments
रूके रूके से क़दम रूक के बारबार चले
क़रार ले के तेरे दर से बेक़रार चले
उठाये फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
न जाने कौनसी मिट्टी वतन की मिट्टी थी
नज़र में, धूल, जिगर में लिए गुबार चले
सहर न आयी कई बार नींद से जागे
थी रात, रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
मिली है शम'अ से रस्मे-आशिक़ी हम को
गुनाह हाथ पे ले कर गुनाहगार चले
गुलज़ार
Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 4:56pm —
1 Comment
कभी ऐसे पुरसुक़ून लम्हात भी आएंगे
जब
मैं भी उसी तरह सो जाऊंगी
वह ख़ामोशी
कितनी सुहानी होगी
मौत के बाद
अगरचे महज़ ख़ला है
सिर्फ़ तारीकी है मगर
वह तारीकी
इस करब-अंगेज़ उजाले से
यक़ीनन बेहतर होगी
क्योंकि
मैं
उन ज़िंदगीयों में से हूँ जिन्हें
हर सुबह निहायत क़लील सी रोशनी मिलती है
उम्मीद की इतनी-सी किरन कि
सिर्फ़ दिनभर ज़िंदा रह सकें
और जिस दिन
यह रोशनी भी न मिल सकी…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 19, 2014 at 1:37pm —
No Comments
दुआ तो जाने कौन-सी थी
ज़ह्न में नहीं
बस इतना याद है
कि दो हथेलियाँ मिली हुई थीं
जिनमें एक मेरी थी
और इक तुम्हारी
Added by Rina Badiani Manek on February 18, 2014 at 2:10am —
No Comments
कोई एक बंजारा था --
कन्धों पर गठरी लिए आया
इश्क का नाफा खरीद लिया मैंने
तो बोला -- अल्लाह की दुहाई है ।
विरह का एक खरल था--
मैं सुरमे सी पिस गई उसमें
तो नील गगन की सुंदरी --
चुटकी भर मांगने आई है ।
तिनकों की मेरी झोंपडी
कोई आसन कहाँ बिछाऊँ
कि तेरी याद की चिनगारी--
मेहमान बनकर आई है ।
मेरी आग मुझे मुबारक !
कि आज सूरज मेरे पास आया
और एक कोयला मांग कर उसने
अपनी आग सुलगाई है ।
Added by Rina Badiani Manek on February 17, 2014 at 11:37am —
No Comments
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
मेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
ज़ब्त कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ
उस के पहलू में जो ले…
Continue
Added by Rina Badiani Manek on February 15, 2014 at 10:47pm —
No Comments
यह ज़िंदगी एक रात थी
कि हम तो जागते रहे -
किस्मत को नींद आ गई.....
इस मौत से वाकिफ हैं हम
अक्सर हमारी ज़िंदगी -
उसका ज़िक्र करती रही......
आती है अपनी याद सी
जब सामने आकाश में -
है टूटता तारा कोई ......
Added by Rina Badiani Manek on February 15, 2014 at 4:23pm —
No Comments