तू किसी पे जाँ को निसार करदे कि दिल को क़दमों में डाल दे
कोई होगा तेरा यहाँ कभी ये ख़याल दिल से निकाल दे
मिरे हुक्मराँ भी अजीब हैं कि जवाब लेके वो आए हैं
मुझे हुक्म है कि सवाल का हमें सीधा सीधा सवाल दे
रगो-पै में जम गया सर्द ख़ूँ न मैं चल सकूँ न मैं हिल सकूँ
मिरे ग़म की धूप को तेज़ कर, मिरे ख़ून को तू उबाल दे
वो जो मुस्कुरा के मिला कभी तो ये फ़िक्र जैसे मुझे हुई
कहूँ अपने दिल का जो मुद्आ, कहीं मुस्कुरा के न टाल दे
ये जो ज़ह्न दिन…
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Added by Rina Badiani Manek on January 30, 2014 at 11:23am —
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सिर्फ़ दो रजवाड़े थे –
एक ने मुझे और उसे
बेदखल किया था
और दूसरे को
हम दोनों ने त्याग दिया था।
नग्न आकाश के नीचे –
मैं कितनी ही देर –
तन के मेंह में भीगती रही,
वह कितनी ही देर
तन के मेंह में गलता रहा।
फिर बरसों के मोह को
एक ज़हर की तरह पीकर
उसने काँपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा!
चल! क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख! परे – सामने उधर
सच और झूठ के बीच –
कुछ ख़ाली जगह है...
Added by Rina Badiani Manek on January 30, 2014 at 10:31am —
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जीवन-बाला ने कल रात
सपने का एक निवाला तोड़ा
जाने यह खबर किस तरह
आसमान के कानों तक जा पहुँची
बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनी
लंबी चोंचों ने यह ख़बर सुनी
तेज़ ज़बानों ने यह ख़बर सुनी
तीखे नाखूनों ने यह खबर सुनी
इस निवाले का बदन नंगा,
खुशबू की ओढ़नी फटी हुई
मन की ओट नहीं मिली
तन की ओट नहीं मिली
एक झपट्टे में निवाला छिन गया,
दोनों हाथ ज़ख्मी हो गये
गालों पर ख़राशें आयीं
होंटों पर नाखूनों के निशान
मुँह…
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Added by Rina Badiani Manek on January 30, 2014 at 1:15am —
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मैं जब भी गुज़रा इस आईने से,
इस आईने ने कुतर लिया कोई हिस्सा मेरा ।
इस आईने ने कभी मेरा पूरा अक्स वापस नहीं किया है -
छुपा लिया मेरा कोई पहलू,
दिखा दिया कोई जाविया ऐसा,
जिस से मुझ को, मेरा कोई ऐब दिख ना पाये।
मैं ख़ुद को देता रहूँ तसल्ली
कि मुझ सा तो दूसरा नहीं है ।
Added by Rina Badiani Manek on January 28, 2014 at 11:59am —
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થરથરતો દૂર થાય ના ખાલીપો તાપણે
થીજી ગયેલ યુગના પ્રતિનિધિ આપણે
દ્રશ્યો નિહાળવામાં બને અંતરાય- રૂપ
વળગ્યો છે જે ભૂતકાળનો ભાર પાંપણે
આંખો છે લીલી કાચ ને જે જોઉં તે લીલું
એવો તો ડંખ કારમો માર્યો છે સાપણે
મારી ત્વચાઓ જાણે ઉતરડી લીધી સળંગ
છીનવી લીધાં છે વિસ્મયો દુનિયાના ડહાપણે
પોતીકી વાતનો જ સૂરજ ઝળહળી શકે
અંધાર દૂર થાય ન બીજાની થાપણે
સપનાં અને ઉદાસીનાં અડતાં મકાનની
મજમુ દીવાલ જેવાં છીએ દોસ્ત , આપણે !
Added by Rina Badiani Manek on January 28, 2014 at 11:11am —
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All those men were there inside,
when she came in totally naked.
They had been drinking: they began to spit.
Newly come from the river, she knew nothing.
She was a mermaid who had lost her way.
The insults flowed down her gleaming flesh.
Obscenities drowned her golden breasts.
Not knowing tears, she did not weep tears.
Not knowing clothes, she did not have clothes.
They blackened her with burnt corks and cigarette stubs,
and rolled around…
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Added by Rina Badiani Manek on January 27, 2014 at 8:12am —
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એક તાલે ચાલે જિંદગી, જાણે પરેડમાં
શ્વાસોની આવ-જા થતી એક જ ઘરેડમાં
તલવાર જેવો ક્યાં છે સમય ધારદાર એ,
ખાલી લટકતું માત્ર રહ્યું મ્યાન કેડમાં
આકાશને કહો કે જરા વિસ્તરે વધુ !
ફફડાવે પાંખ વેદના કિરણોની શેડમાં
ઝરમરતી સાંજ આપવી આખો દિવસ તપી,
સ્હેલું નથી જ ઊભવું નભની હરેડમાં
પાતાળ-કૂવો આંખનો ખાલી કર્યું અમે,
પાણી ન પ્હોંચ્યું પૂરતું સપનાની ખેડમાં
મનોજ ખંડેરિયા
Added by Rina Badiani Manek on January 26, 2014 at 6:14pm —
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I want you to know
one thing.
You know how this is:
if I look
at the crystal moon, at the red branch
of the slow autumn at my window,
if I touch
near the fire
the impalpable ash
or the wrinkled body of the log,
everything carries me to you,
as if everything that exists,
aromas, light, metals,
were little boats
that sail
toward those isles of yours that wait for me.
Well, now,
if little by little you…
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Added by Rina Badiani Manek on January 26, 2014 at 8:11am —
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ख़ामोशी के पेड़ से मैंने -
ये अक्षर नहीं तोड़े
यह तो पेड़ पर से झड़े थे
मैं वही अक्षर चुनती रही .....
नहीं, आपसे या किसी से
मैं कुछ नहीं कहती
यह तो जो ख़ून में से बोले हैं
मैं वही हर्फ़ सुनती रही .....
एक बिजली सी लम्बी लकीर थी
छाती से गुज़री थी
यह तो कुछ उसी के टुकड़े
मैं अंगुलियों पर गिनती रही...
और चाँद ने चर्खे पर बैठकर
बादल की रूई काती
यह तो कुछ वही धागे हैं
मैं खड्डी पर बुनती…
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Added by Rina Badiani Manek on January 25, 2014 at 12:52pm —
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मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं…
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Added by Rina Badiani Manek on January 24, 2014 at 8:34pm —
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શ્વાસમાંથી સંચરી ના આંખમાંથી નીતરી,
એટલે તું કૌંસમાં પારેવું અથવા જળપરી.
જે લખાવાની હજુ બાકી છે તે કંકોતરી,
એટલે તું કૌંસમાં એક વેદના આગોતરી.
આમ પાછું કંઈ નહીં ને એક સ્વપ્નીલ શૂન્યતા,
એટલે તું કૌંસમાં એક અર્થહીન યાયાવરી.
થડથી આગળ જાય તો પણ થડ વગર ચાલે નહીં,
એટલે તું કૌંસમાં ડાળી અને ફૂલપાંતરી.
મુકુલ ચોક્સી
Added by Rina Badiani Manek on January 23, 2014 at 10:41am —
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I keep on dying again.
Veins collapse, opening like the
Small fists of sleeping
Children.
Memory of old tombs,
Rotting flesh and worms do
Not convince me against
The challenge. The years
And cold defeat live deep in
Lines along my face.
They dull my eyes, yet
I keep on dying,
Because I love to live.
Added by Rina Badiani Manek on January 23, 2014 at 10:37am —
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मुझे ख़र्ची में पूरा एक दिन , हर रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है,
झपट लेता है, कोई अंटी से !
कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती ,
खरे दिन को भी मैं खोटा समझ के भूल जाता हूं !--
गिरेबाँ से पकड़ के माँगने वाले भी मिलते हैं!
"तेरी गुज़री हुयी पुश्तों का क़र्ज़ा है,
तुझे किश्तें चुकानी हैं--"
ज़बरदस्ती कोई गिरवी भी रख लेता है, ये कह कर,
अभी दो चार लम्हे ख़र्च करने के लिये रख ले,
बक़ाया उम्र के खाते में…
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Added by Rina Badiani Manek on January 21, 2014 at 6:36pm —
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લખાતી પળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે,
સકળ કાગળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે.
સભર કેવા હતા બેચાર બિંદુના ઝગારાથી,
ફૂલો ઝાકળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે.
હતી પીડાને કારણ કેટલી આત્મીયતા ભરચક,
નયનમાં જળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે.
પડ્યું છે સાવ જડવત્ ઘાસનું મેદાન લીલુંછમ,
ભીની સળવળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે.
ભર્યું મન રહેતું ભ્રમણાથી, ભર્યું ઘર રહેતું ભણકારે,
કશી અટકળ વિના તો સાવ ખાલી ખાલી લાગે છે.
મનોજ…
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Added by Rina Badiani Manek on January 21, 2014 at 11:18am —
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कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे
कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे
रवां हैं फिर भी रूके हैं वहीं पे सदियों से
बड़े उदास लगे जब भी आबशार दिखे
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतज़ार दिखे
ख़फ़ा थी शाख़ से शायद, कि जब हवा गुज़री
ज़मीं पे गिरते हुये फूल बेशुमार दिखे
कोई तिलस्मी सिफ़त थी जो इस हुजूम में वो
हुये जो आँख से ओझल तो बार बार दिखे
गुलज़ार
शहसवार - अच्छा…
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Added by Rina Badiani Manek on January 21, 2014 at 10:47am —
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सब्र हर बार अख़्तियार किया
हम से होता नहीं , हज़ार किया
आदतन तुमने कर दिये वादे
आदतन हमने ऐतबार किया
हमने अक्सर तुम्हारी राहों में
रूक के अपना ही इन्तज़ार किया
फिर न माँगेंगे ज़िंदगी यारब
ये गुनाह हमने एक बार किया
गुलज़ार
Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2014 at 12:51pm —
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एक तम्बू लगा है सरकस का
बाज़ीगर झूलते ही रहते हैं
ज़ेहन ख़ाली कभी नहीं होता ।
Added by Rina Badiani Manek on January 20, 2014 at 12:41pm —
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