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बहन वृंदाने मुझसे एक सत्यघटना सुनकर लिखी हुयी एक कथा.
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पापा, What is your answer to the question "Is the universe a friendly place?" एलिसने पितासे पूछा. पिता मुस्कुराये, कहा, की बेटा, वह तो निर्भर है हम पर, हम सभीका अपना एक ब्रह्माण्ड है, हम जैसा बनायें, वैसा है. तुम ही कहो, तुम्हारा ब्रह्माण्ड मैत्रीपूर्ण है, कि कुछ और तरहका है. एलिसका तो उत्तर था, कि यदि यह अपनी इच्छा और प्रयत्न पर निर्भर है, तो मेरा ब्रह्माण्ड तो जरुर मैत्रीपूर्ण है और रहेगा. आखिर क्यों कोई भी अपने विश्वको अमैत्रीपूर्ण बनाएगा? एलिस चौबीस वर्षकी थी, जब एक रविवारकी सुबह ब्रेकफास्टके समय पितासे यह बात छेड़ी थी.
केम्ब्रिज शिक्षित पिता डॉक्टर डेविड लेचवर्थ ब्रिटनके गणनापात्र गणितशास्त्री और ब्रिटनके कंप्यूटर प्रोग्रामरोंकी पहली पीढीके सदस्य थे. घरमे शिक्षा और संस्कारके सुन्दर और धार्मिक वातावरणमें एलिस और बड़ी बहन एडना पली थी. किसी भी माता पिताको गौरव हो ऐसी शिक्षा पायी थी, जब केम्ब्रिजसे ही गणितमें अनुस्नातक हो बाहर कदम हि रखा था, तो विश्वके अग्रणी व्यापार संस्थान उसके पास उनके साथ काम करने के लिए अनेक प्रलोभन ले कर पहुँच गए थे. एलिसने जनहितमे कार्य करने वाली एक बेंक को चुना था, वेतन उन बड़ी कम्पनियोकी तुलनामे बहुत कम होते हुए भी. पिताको भी इस बातसे गर्व था. जीवनको समृध्ध करे ऐसा साहित्य नित्य पढना उसकी दिन चर्याका एक भाग हि था. सुबह ब्रेकफास्ट और सांज डिनरके समय पितासे नयी नयी बातों पर गोष्ठी उसका नित्य क्रम था. शिक्षा और विद्वत्ताके सिवा घरमे कला और संगीतका भी वातावरण था. डॉक्टर और श्रीमती लेचवर्थ स्थानिक चर्चमें कार्यकर थे, और एक संगीत वृन्दमें वायोलिन भी बजाते, और गाते थे. एलिस एक नाटक मंडलीमें अभिनेत्री थी. अपने कमरेमें एक दीवार पर कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुरका एक वचन सुन्दर फ्रेममें सजा कर रखा था "Remember, that you do not die, when you live in someone's heart".
उस दिन, आइन्स्टाइनसे किसी पत्रकारने पूछा सवाल उनकी गोष्ठिका विषय था की यह ब्रह्माण्ड मैत्रीपूर्ण है, कि अमैत्रीपूर्ण है. डॉक्टर आइन्स्टाइनने केवल इतना हि उत्तर दिया था, कि यह पश्न मानव जातिके लिए आने वाले समयमे अत्यंत महत्त्व का रहेगा. आज बेटीने पितासे पूछा, पिताने भी उत्तर न दे कर कह दिया बेटी को, कि वह तो हम पर निर्भर है!
एलिस तो वैसे भी अपने ब्रह्माण्डमें मैत्री बढा ही रही थी. उसकी ऑफिसमें एक कर्मचारी था, जिसका नाम था जेक. अकेला था. परिवारमे कोई न था, न कोई मित्र था. उसकी आवाज किसीने शायद हि सुनी हो. ओफिसमे किसीसे बात भी न करता, जो भी किसी से कहना हो तो इमेइल कर देता, किन्तु सामने न आता, न कुछ किसी से बोलता. अत्यंत हताशा से भरा था. उसे किसीने मुस्कुराते भी नहीं देखा था. उसकी आँखोंमें इतनी वेधकता थी, कि कोई भी उस से बात करना वैसे भी नहीं चाहता था. जब एलिस ने सहकारी बेंककी हेड ऑफिस में काम करना शुरू किया, तो उसके उपरी अधिकारीने उसका परिचय सबसे करवाया था, किन्तु जेक का परिचय दूरसे हि करा दिया था, और कहा था, कि उसे बात न करे, यही एलिसके और जेक के भलेमें था. वैसे कोई भय कि बात नहीं थी, पर उसका गुस्सा किसीको न पता था, कि कब फुट निकले, और वह क्या कह दे, या कुछ तोड़ दे, फोड़ दे या फेंक दे. उस से तो अच्छा, कि उसे उसका काम करने दे और इमेइल से हि जो भी कहना हो, कहे.
एलिसको तो यह बात न रुची. उसने अपने अधिकारीसे कहा, कि उसे मदद की जरुरत है, न कि अवगणना की. अधिकारीने कहा, की उसे सरकारकी और से सभी प्रकारकी मदद मिल रही है, तो वह चिंता न करे, और जेकसे बात न करे वही अच्छा था. जेककी मनोचिकित्सा सरकारकी औरसे हो रही थी, उसे मिलने के लिए एक सरकार नियुक्त सामाजिक कार्यकर सप्ताहमें एक बार आता था, और उसके घरके काममें भी मदद करता. सामाजिक कार्यकर रोज दो बार फोनसे जेकके साथ बात करता. जेक एक प्रतिभाशाली इन्वेस्टर था, जो बेंक के लिए खूब महत्त्व का था, इसलिए बेन्कने उसके तेवर जानके भी उसे कामपर रखा था. उसने बेंकको कभी निराश भी नहीं किया था.
एलिसका मन नहीं मान रहा था. सोच रही थी, उस बेचारेका दुनियामे कोई नहीं है, कोई तो होना चाहिए, जो कम से कम उससे बात तो करे? अपने एक जन्मदिवस पर ओफिसमे मिठाई बाँट रही थी, तो अवसर देख कर जेकको भी देनेके लिए चली गयी. जेक भी चौंका, की कोई उसे मिठाई देने आया. एलिसने बड़े प्रेमसे अपना परिचय दिया, तो जेकने भी उससे आनंदसे हि बात की. दुसरे दिन जब जेकने ओफिसमे कदम रखा, तो किसी औरकी ओर न देख कर एलिसको हि गुड मोर्निंग कहके अपने डेस्क पर गया. एलिस खुश थी, की उसने सभी सह कर्मियोंकी मान्यता झूठी साबित कर दी थी, की जेक बात करने जैसा इन्सान नहीं था.
एलिसने उसे कहा, की वह अगर दोपहर लंच के लिए उसके साथ आये तो वो खुश होगी. जेक तो मान हि न सका, अत्यंत खुश हो गया. दोनों दोपहरको साथ खाने गए. यह एक नित्य क्रम हो गया. जेक ओफिसमे किसीके साथ बात न करता, किन्तु एलिसका दोस्त हो गया था. ओफिसमे भी सभीको ताज्जुब, कि यह हो कैसे सकता है! और यह भी आश्चर्य, कि उनके साथ जेकने कभी बात क्यों नहीं कि थी, और एलिसके साथ, जो अभी नयी नयी आई है? शायद किसीको अनुमान न था, कि एलिस अपने ब्रह्माण्डको मैत्री से भरना चाहती थी.
उस रविवारको एलिसको एक नाटक के रिहर्सलके लिए सुबह नौ बजे पहुंचना था. डॉक्टर और श्रीमती लेचवर्थको भी ग्यारह बजे चर्च पहुंचना था, जहाँ उनके ओर्केस्ट्रा के साथ उन्हें गानेका अभ्यास करना था. एलिस साढ़े आठ बजे घरसे निकल गयी. साढ़े नौ बजे नाटक मंडलीके मित्र का फोन आया. कि एलिस अभी क्यों नहीं पहुची थी. यह भी एक आश्चर्य था, कि एलिस हमेशा समयसे पहले पहुचती. फिर भी, लंडनके ट्राफिक का क्या भरोसा, तब मोबाईल फोन भी प्रचलित नहीं हुए थे. एलिसके लिए प्रतीक्षा करनेमें नाट्यमंडलीको खास आपत्ति न थी. दस बजे फिर से फोन आया, कि एलिस नाट्यगृह नहीं पहुची थी. एलिस कही किसी कामसे रुक गयी होगी, काम भी अत्यंत महत्वपूर्ण हि होगा, वरना ऐसा कभी न हुआ था. पिताने एलिसके सभी दोस्तोसे फोन पर पूछना शुरू किया, किन्तु किसीको एलिसके बारेमे मालूम न था. साढ़े दस बजे फिर से फोन आया, कि एलिस अभी भी थियेटर नहीं पहुची है, तो माता पिताने चर्चमें कह दिया, कि उनके आने में देर हो सकती है. ग्यारह बजे तक थियेटरसे दो मित्र एलिसके हर एक दोस्तके घर, और एलिस के जानेके संभावित स्थानों पर हो आये, एलिस का कोई पता न था. पिताभी घरसे थियेटर तकके मार्ग पर दो बार धीमी गतिसे कार चला कर देख चुके, कि कहीं एलिसकी साइकल नजर आ जाये. फिर किसीकी धीरज न रही, और पुलिसको एलिसके गुम होने की खबर की गयी. एलिसका एक दोस्त जेक भी था, यह पिताको मालूम न था. पुलिसने जब एलिसके एक सहकर्मी से पूछ ताछ की, तो उसने कहा, की एलिस जेक को अपने नाट्य मंडलिके मित्रोसे मिलवाना चाहती थी और चाहती थी की रविवार वह बेचारा बंद घरमे अकेला न गुजारे.
रिहर्सल केंसल हुए. सभी दोस्त एलिसके माता पिता के साथ उनके घर बैठे थे. सांज साढ़े पांच बजे कुछ पुलिसकर्मी घर आये, माता पिता, बड़ी बहन एडना और मित्रोंको खबर देने, की एलिसकी हत्या हुई है. जेक नामके एक मनोविक्षिप्त आदमीने आत्महत्या करनेसे पहले एलिसकी हत्या कर दी. मरनेसे पहले एक पत्रमें लिख गया, की दुनियामे कोई नहीं था, जो उसके साथ बात करता, एक एलिस हि थी. इसलिए स्वर्गमे भी वह अकेला न हो जाये, इसलिए उसे अपने साथ लिए जा रहा है.
उसके बाद क्या हुआ होगा, अगर आपको जरुरत लगे, तो खुद अनुमान कर ले. मुझे कुछ सूझ नहीं रहा.
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Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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