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एक बार मैं अपने कम्प्युटरसे बज रहे एक गानेके साथ बड़े आनंद और प्रेमसे साथ साथ गा रहा था, तब मेरे एक मेहमान, मेरे मित्र, श्री रतिलाल जोषी, गुमसुन्न हो गए. यह एक अचरजकी बात थी, क्योंकि एक संगीत रसिक होने के कारण जब भी हम साथ कोई गीत सुनते, तो गीतके राग, ताल, संगीतकार, वाद्यवृन्दमें बज रहे वाद्योंके बारेमें, गीतके शब्द, उसका साहित्य मूल्य, उस फिल्मके बारेमे सुन्दर बातें सुननेको मिलती. उस गानेके बारेमे मैंने कहा, कि अगर कोई एक गाना छोड़ कर सारे गाने अगर भूल जाने हों, तो मैं यह एक याद रखूँगा. वह गाना तो एक अति लोक प्रिय रागमें था, फिर भी जोषीजी कुछ कह नहीं रहे थे, बल्कि चुप हो गए थे और कहीं खो गए थे.
मैंने इस sudden shift का कारण पूछा. तो उनहोंने कहा कि वह गीत एक करुण और कडवी याद दिला गया था. मैंने जानना चाहा, उन्होंने मुझे १९६० के दशकमें घटी एक घटना सुनाई.
वे मुंबई महानगर निगममें आरोग्य और स्वास्थ्य विभागमें अधिकारी थे. उनका काम उन्हें मुंबईके हर एक रेस्टोरंटमें और होटलोमें ले जाता. स्वयं साहित्य, संगीत और कलाके पारखी थे, इसलिए उनके कामने उन्हें कई नामांकित और माने हुए लोगोंसे परिचय और मित्रता करवाई, जैसे कि उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र खान, पंडित जसराज और अर्दशीर गोदरेज.
एक दिन कामके ही लिये राजकमल स्टुडियो गए थे. जिन्हें मिलना था, उनकी प्रतीक्षामे थे. कार्यालयके बहार एक मुफलिस जैसे आदमीको देखा, जिसके पास एक थैला था, जिसमें से कुछ चित्रोंके कोने नजर आ रहे थे. रंगोकी पेंसिलें उसकी उपरी जेबमें दिखाई दे रही थी. कुछ याद आया, तो एक छोटा सा द्रोइंग बोर्ड थैले से निकाल कर चित्रांकन करने लगा. जोषीजी स्वयं एक चित्रकार हैं, तो उस चित्रकार से बात करने पास गए. वह चित्रकार नई फिल्मों के पोस्टर डिजाईन करता. जब शूटिंग होता, तो वह देखने आता और द्रश्योंके चित्रांकन कर लेता, जिनमेंसे दिग्दर्शक और निर्माता उनकी पसंद चुनते, जिन परसे यह रंगीन पोस्टर बनता, वह फिर छपने को जाते. उसका नाम था मंगल.
जोषीजीने उसे पास वाली एक दुकान पर अपने साथ चाय पीने आने का अनुरोध किया. मंगलने स्वीकार किया. फिर दोनों चित्रकारी की बात करने लगे. मंगल उत्तम चित्रकार था, किन्तु वह एक पैन्टर ही रहा, एक कलाकार नहीं हो सका था. स्वभावका भी भोला था. बात बातमे जोषीजीने जाना, कि मंगलका बहुत शोषण भी होता था. उसके कई चित्र रद्द कर दिए गए हैं ऐसा कह कर उसे उन चित्रोंका मुआवजा न देते, और कुछ ही दिन बाद वेही चित्र पोस्टर बनके देशकी दीवारों पर चिपके नजर आते. मंगल गरीबीसे ऊपर ही उठा नहीं था.
बात करते करते अचानक क्या याद आ गया, कि मंगलने अपनी जेबसे एक नोटबुक निकाली और कुछ लिखने लगा. जोषीजीको इसमें उसका अविवेक लगा, मंगलने यह जाना, उसने उनके सामने देख कर नजरोंसे ही क्षमा चाही, कुछ गुनगुना रहा था और लिख रहा था. कुछ क्षण लिखनेके बाद उसने हंसके जोषीजीकी माफ़ी मांगी, कहते हुए, की कोई कविता सूझी थी, तो भुलनेसे पहले लिख लेना चाहता था. जोषीजी तो प्रभावित हुए, कि एक चित्रकार कवि भी था. उन्होंने कविताके बारेमे बात छेड़ी उसके बाद. जोषीजी का स्वाभाव जितना मैं जानता हूँ, उस पर से कह सकता हूँ कि उनसे बात करने वाला बहुत ही जल्दी उनसे मित्रता कर लेता है. मंगल भी उनसे बहुत ही मित्रताभावसे फिर सब कुछ कहने लगा, जो उसने कभी किसी को नहीं बताया होगा.
जोषीजी ने उसकी नोटबुक उसके हाथसे खींच ली. मंगल पहले तो झिझका, पर इतना मैत्रीभाव उसने अबतक जाना था, कि उनके आग्रह्को रोक नहीं सका. जोषीजी चौंके ही रह गए. पहले तो मान नहीं सके, तो पूछ भी लिया, कि जो वे देख रहे थे, वह वास्तव था. बहुतसे गीत जोषीजीने सुने हुए थे. हर कविताके निचे उसने ' मतवाला ' नामसे दस्तखत किये थे. जोषीजीको आश्चर्य इस बातका हुवा, कि जो गीत उन्होंने सुने थे, वे रेडियो पर मतवालेके लिखे हुए नहीं, जाने माने कई फ़िल्मी गीतकारोंके नामसे सुने हुए थे. पूरी बातको एक ही पल में जान गए. मंगलने और कुछ न पुछ्नेको अनुरोध किया, कि उसके बारेमें बात न करें तो अच्छा था. फिरभी जोषीजीने पूरी बात जाननी चाही.
बात वही थी, जो जोषीजी मानते थे. मंगल अपने गीत नामी गीतकारों को बेचता था. वह था एक साधारण चित्रकार. कलाकारभी नहीं. एक पोस्टर पेंटर. कविता अपने शौकसे करता था, तो एक दिन उस दिशामें भाग्य आजमाना चाहा. बड़े उत्साहसे संगीतकारोके चक्कर काटना शुरू किया. संगीतकारोंने बहुत दाद न दी, फिर दिग्दर्शकोंके पास यहाँ से वहां धक्के खाना शुरू हुआ. किसीने उसे उचित मान न दिया. फिर गीतकारोंके पास गया, अपनी कविता दिखाने. एक गीतकारने उसे नौसीखिया कह दिया, और कहा कि उसकी कविता संवारने में वह मदद करेगा. मंगल तो खुश हो गया. उसने अपनी सारी कविताएँ उस नामी गीतकारको एक बाद एक दिखाई.
वही हुआ, जो हम अनुमान कर रहे हैं. कुछ महीनों बाद उसका लिखा गीत रेडियो पर था, और गीतकारका नाम था, जिसे उसने अपनी सारी कविताएँ दिखाई थी. वह तो दौड़ा उसके पास. गीतकार इतना तो सज्जन था, कि उसने मंगलको अपने पास आने दिया. आखिर बिना मेहनत नाम और दाम कमानेमे काम जो आया था! मंगल जब फरियाद करने लगा, तो उस गीतकारने कहा, कि उसे उसकी कविताओंका कुछ नहीं मिल रहा था, तो उसके पाससे कम से कम कुछ पैसे तो मिल ही जायेंगे. मंगल को गीतकारने कुछ रूपये दिए. गरीब मंगलको नाम से ज्यादा पैसोंकी जरुरत थी. फिर दोनोका ताल मेल बैठ गया. मंगल गीत लिखता, कभी पुरे, कभी अधूरे, और उस गीतकारको दे देता, और दाल रोटीके पैसे कमा लेता.
अब उसे तरीका मिल गया था. वह और गीतकारोंके पास भी गया, कौन नहीं चाहता उत्तम कविताएँ बिलकुल मुफ्तके दाम पर? मंगलके गीत रेडियो पर आने लगे, भले कोई जानता नहीं, पर उसे संतोष मिलता, कि उसकी कविताकी कदर हो रही थी, जो पहले नहीं हो रही थी.
जोषीजी तो फिर गुजरात सरकारमें उच्च अधिकारी बने, और अहमदाबाद आ गए. उनका पता मंगलके पास था, कभी कभी मंगलको ऐसा लगता, कि उसका कोई गीत खूब चले ऐसी संभावना थी, तो बंद कवरमें कविताकी हस्तप्रत जोषीजी को भेजता, कुछ महीनों, या एकाद साल भरमें वह गाना भारतभरकी गलियोंमें गूंजता सुनाई पड़ता.
धीरे धीरे मंगलके पत्र आने कम होने लगे, और फिर बंद हो गए. एक बार जोषीजी का मुंबई निवासी बेटा मंगलसे पिताकी औरसे खबर पूछने गया. मंगलकी तबियत अच्छी नहीं रहा करती थी. उसने अपने पिताका फोन नंबर मंगलको दिया, अगर कभी बात करना चाहे. फोन तो बहुत महीनों तक आया नहीं था. यह बात १९८१-८२ की थी, एक बार जोषीजी पर मंगलका फ़ोन आया. कहा, कि तबियतका कुछ भरोसा नहीं था, और उसका एक गाना चारों और सुनाई दे रहा था, तो सोचा, कि एक कदरदान मित्रको समाचार दें. गाना उन दिनोंमें एक एक संगीतप्रिय व्यक्तिके होंठोंपर था. वह मंगलका आखिरी गीत था, जिसका कमसे कम एक व्यक्तिको पता चला, कि उसका कवि कौन था.
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Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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