"योग्यताओं की हत्या कर रह है आरक्षण"
आज भारत में हर जगह आरक्षण का बोल बाला है। आरक्षण राजनीति की धूरी बन गया है जिसके इर्द-गिर्द राजनेता अपनी रोटियाँ सेंक रहें हैं। कोई जाटों को आरक्षण दिलाने के लिए तो कोई मुस्लिमों को आरक्षण दिलाने की राजनीति कर रहा है।
हमारे सविंधान निर्माताओ ने इसे आरंभिक १० वर्षो के लिए ही लागू किया था जब सामाजिक विषमता बहुत अधिक थी और समाज के सभी वर्गों में शिक्षा का प्रसार नहीं था। पर आज हमारा समाज २१वीं सदी में जी रहा है ,जहाँ पर सबको समान अधिकार और समान अवसर प्राप्त हैं। फिर क्या वजह है कि हमें आज भी आरक्षण की बैशाखी की जरुरत है।
क्या जातिगत आरक्षण से मेधावी और होनहार व्यक्तियों की योग्यता को कुचला तो नहीं जा रहा है ?
दुःख है कि नाकाबिल लोग अपने जातिगत आरक्षण की वजह से सिस्टम में घुस जाते हैं और काबिल लोग इसी आरक्षण की वजह से सिस्टम से दूर हो जाते हैं।
चिकित्सक , शिक्षक ,जज जैसी जगहों पर भी 45 % नंबर से उत्तीर्ण हुए लोग बैठ जाते है 90% से ज्यादा वाले मुँह देखते रह जाते हैं।
इसी आरक्षण की वजह से एक शिक्षक जो राष्ट्र का निर्माता कहलाता है उसे खुद ही पूरा ज्ञान नहीं होगा तो वो शिक्षक क्या राष्ट्र बनाएगा ? ऐसे तो देश और गर्त में ही जायेगा। जब 45% से शिक्षा की सेवा में जुड़े लोग हमारे बच्चों को पढ़ायेंगे तो हम ये उम्मीद कैसे रखे कि हमारे बच्चे 100% सफलता प्राप्त करेंगे।
आरक्षण होना चाहिए पर जाति के आधार पर नहीं बल्कि गरीबी के आधार पर, कौन आर्थिक रूप से कितना संपन्न अथवा विपन्न है इस आधार पर।
सवर्ण व पिछडी.जाति के लोग भी गरीब होतें हैं और आरक्षण प्राप्त जाति के लोग भी सर्व संपन्न होतें हैं। अगर सवर्ण व पिछड़ी जाति के माँ- बाप किसी तरह पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा भी दें तो भी आरक्षण उनकी योग्यताओं को कुचल देता है और उन्हें कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती। इसके कई दुष्परिणाम होतें हैं। एक छात्र अपनी योग्यता से कुशल डॉक्टर या कुशल शिक्षक बन सकता है पर यदि कोई अयोग्य व्यक्ति आरक्षण के बल पर वही स्थान प्राप्त करेगा तो वह अपरिपक्व ही होगा और देश के विकास में बाधक भी।
आज सभी वर्णों में धनी और गरीब लोग हैं। सभी वर्णों में अमीर फ्लैट , बंगलो और आलिशान मकानों में रहते हैं और सभी वर्णों के गरीब बस किसी तरह जीवन यापन कर रहें हैं।
फिर आरक्षण का बहाना लेकर भारत के विकास को बाधित क्यों किया जा रहा है ? अब तो सवर्णों द्वारा अन्य वर्गों पर सामाजिक अत्याचार भी नहीं रह गया है। कानून सबके लिए समान है फिर आरक्षण में भेद भाव क्यों ?
हाल ही में घोषित संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा 2015 के परिणामों में टीना डाबी कम अंकों के बाद भी चयनित होकर प्रथम रहतीं हैं जबकि अंकित श्रीवास्तव अधिक अंक प्राप्त कर भी बाहर हो जाते हैं। ये आरक्षण की महिमा का कमाल नही तो क्या है???
भला हो देश की सर्वोच्च अदालत का जिसने पदोन्नति में सामान्य व पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों का दर्द समझा, और इसे खत्म करने का फैसला सुनाया। अारक्षण प्राप्त वर्गों द्वारा शीर्ष अदालत के फैसले का विरोध किया जाने लगा। यह तो ऐसी बात हुई कि-
"तुमने कतल किया तो चर्चा नही हुआ
हमने सिर्फ आह भरी और बदनाम हो गए।"
पदोन्नति में आरक्षण के आधार पर ही एक वरिष्ठ व्यक्ति तमाम योग्यताओं के रहते भी कनिष्ठों का मातहत हो जाता है। वरिष्ठ कुंठित होकर जिंदगी भर घूँटता रहे। हमारे कई विभाग इसके उदाहरण हैं।
इसलिए अब देश में परिवर्तन की जरुरत है और अब जातिगत आरक्षण व पदोन्नति में आरक्षण बंद होना चाहिए ताकि सभी लोगों को समान अवसर मिले और योग्यताओं की हत्या ना हो बल्कि वो देश की प्रगतिं में भागीदार बने | इसके विरोध में हम जो खड़े हुए हैं, एकजुट होकर विरोध या प्रदर्शन ही नही बल्कि क्रांति करनी होगी। इतिहास गवाह है कि परिवर्तन क्रांतियों से ही हुए हैं जो ज्वाला बनकर धधकी है। विरोध की चिंगारियाँ तो दमन की बौछार से ही बूझ जाती हैं। खुशी है कि धार जिले में हम इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित हुए हैं। समस्त साथियों को बहुत-बहुत बधाई और सिंहस्थ में शामिल होने के कारण प्रत्यक्ष न आ पाने का खेद भी है। आपसी ईर्ष्या भाव और खींचतान से परे हम एकजूटता का परिचय दें क्योंकि यह हम सबका दर्द है। हमारा हौंसला बरकरार रहे।
अंत में 'डोर' फिल्म के एक गीत की पंक्तियाँ आप सभी साथियों के लिए सादर समर्पित-
"ये हौंसला कैसे झुके,
ये आरज़ू कैसे रुके
मंजिल मुश्किल तो क्या
धुँधला साहिल तो क्या
तनहा ये दिल तो क्या
राह पे काँटे बिखरे अगर
उसपे तो फिर भी चलना ही है
शाम छुपाले सूरज मगर
रात को एक दिन ढलना ही है
रुत ये टल जाएगी
हिम्मत रंग लाएगी
सुबह फिर आएगी।
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