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दोस्तों मेरे काव्य संग्रह का यह गीत आपकी नज़र है...
एक अजनबी अपना-सा क्यूँ लगने लगा,
क्यूँ कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा…
किससे मिलने को बेचैन है चाँदनी,
क्यूँ मदहोश है दिल की ये रागिनी।
बनके बादल वफ़ा का बरसने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
गुम हूँ मै एक गुमशुदा की तलाश में,
खो गया दिल धड़कनो की आवाज़ में।
ये कौन सांस बनके दिल में महकने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
हर तरफ़ फ़िजाओं के हैं पहरे मगर,
दम निकलने न पायें जरा देखो इधर।
जिसकी आहट पर चाँद भी सँवरने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
रात के आगोश में फ़ूल भी खामोश है,
चुप है हर कली भँवरा भी मदहोश है।
बन के आईना मुझमें वो सँवरने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
ना मै जिन्दा हूँ ना मौत ही आयेगी
जब तलक न उसकी खबर ही आयेगी।
बनके आँसू आँख से क्यूँ बहने लगा,
एक अजनबी अपना सा क्यूँ लगने लगा।
शानू (काव्य-संग्रह मन पखेरु उड़ चला फिर की एक कविता)
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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