Made in India
तुम्हारी अनंतिम इच्छा थी कि मैं तुम्हारे लिए एक प्रेम पत्र लिखूं। कई बार लिखने की कोशिश की लेकिन तुम्हारे साथ रात भर मोबाइल से मैसेज का आदान प्रदान करने के बाद कोई शब्द नहीं बचता था जिसे प्रेम पत्र का रूप दे सकूं। तुम्हारे जाने के बाद अब तुम्हारे साथ बीता हर लम्हा एक प्रेम पत्र है। तुम्हारे साथ गुजरे जीवन के दस वर्षों की यादें मेरी अंतिम इच्छा पूछे जाने तक साथ रहेंगी। तुम्हारी यादों के साथ कुछ अनमोल तोहफें भी हैं जो तुमने अपनी शरारतों के दौरान हमें सौंपे थे। रक्षाबंधन के एक दिन पहले तुमने पहला तोहफा दिया था। हमें चिढ़ाने के लिए मेरी कलाई पर तुमने एक रस्सी बांध दी थी। रस्सी का वो टुकड़ा तो दस वर्षों में कुछ कमजोर पड़ गया है लेकिन हमारे रिश्ते की डोर बीतते समय के साथ और मजबूत होती जा रही है। आज भी उस रस्सी को अपनी हथेली पर रखता हूं तो लगता है कि तुम्हारी कलाइयां मेरे हाथ में हैं। तुम्हारा दूसरा तोहफा प्लास्टिक से बना होने के कारण शायद वक्त की मार से हमेशा बचा रहेगा। हम रजनीगंधा खाकर अपने दांत गंदे ना करें इसलिए तुम रोज सेंटर फ्रेश या बिग बबल लेकर आती थीं। कालेज जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी में एक दिन तुम सेंटर फ्रेश लाना भूल गईं। क्लास रूम में फेंके हुए सेंटर फ्रेश के खाली रैपर में एक छोटा सा पत्थर डालकर तुमने हमारे हाथ पर रख दिया था। सेंटर फ्रेश का वो रैपर अभी तक गुलाब की तरह मेरी डायरी के दो पन्नों के बीच रखा हुआ है, मेरे जेहन में बसी तुम्हारी खुशबू की तरह। तुम्हारे तोहफों के साथ तुम्हारे अधिकार जताने के तरीके से भी मैं हैरान रहता था। दोस्तों के साथ हास्टल जाकर मस्ती करने के लालच में अक्सर तुमसे दो दो हाथ करना पड़ता था। याद होगा तुम्हें वो दिन जब हास्टल जाने की बात पर पूरी क्लास के सामने तुमने मेरा कालर पकड़ा था और खींचते हुए अपने साथ ले गई थीं। क्लास ख़त्म होने के बाद आटो में तुम्हारे साथ अपनी मंजिल तक पहुंचने के सुख से हास्टल में मिस की गई मस्ती की भरपाई हो जाती थी। एक किलोमीटर के छोटे से सफ़र में कभी तुम्हारे साथ बैठने का सौभाग्य प्राप्त होता तो कभी दूसरी महिला सवारियों के कारण ड्राईवर के साथ सीट शेयर करनी पड़ती। उस छोटे से सफ़र के दौरान शायद ही हमने कभी एक दूसरे से बात की हो लेकिन सैंडल के अन्दर तुम्हारे पैर के पंजे और जूते में कैद मेरे पैर के पंजे रास्ते भर एक दूसरे से बात करते थे। तुम्हारे साथ रहने के लिए कई बार तुम्हारे गुस्से का भी शिकार होना पड़ता था। एक बार ऐसा भी लगा था कि तुम शायद बात करना भी बंद कर दो। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने और लखनऊ यूनिवर्सिटी में एमबीए की पात्रता हासिल करने के बाद भी मैं तुम्हारे साथ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में ही रहना चाहता था। मेरे इस फैसले के बाद हमें धिक्कारते समय तुम्हारी आंखों में जो प्यार और नाज था अब वो अक्सर मेरी आंखों से छलकता है। मेरे फैसले का प्रायश्चित करने के लिए तुमने पहाड़ों के बीच बसे कालेज में प्रवेश नहीं लिया। पहाड़ और प्रकृति तुम्हें हमेशा ही आकर्षित करते थे। तुमने बहुत सारे वादे करवाए थे हमसे लेकिन हम किसी पर खरे नहीं उतरे। एक वादा हमने अपने आपसे किया था कि जब तक साथ रहेगा तुम्हारा शहर नहीं छोडूंगा। भोपाल और लखनऊ न जाने के फैसले पीछे भी मेरा यही वादा था। तुम्हारे शहर से दूर रहकर हम ये नहीं सुन पाते कि "बाबू, तुम्हे देखने का मन कर रहा है।"
इस पत्र में इतना ही, बाकी यादें अगले ख़त में।
तुम्हारा, विभांशु
21.04.2013
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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