Made in India
Added by Juee Gor on February 19, 2015 at 10:10am — 2 Comments
Added by Juee Gor on February 11, 2015 at 8:25pm — No Comments
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न…
Added by Juee Gor on February 2, 2015 at 10:02pm — No Comments
मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार…
Added by Juee Gor on January 20, 2015 at 9:36am — No Comments
Added by Juee Gor on January 14, 2015 at 11:00pm — 2 Comments
जरा सा छू सकता था हवा को
जरा सा ताक सकता था आसमान
पानी की नाप में नहीं नाप सकता था तुम्हें
डुबो लेता पैर सांझ ढलते ढलते
जरा सा भिगो लेता हथेलियां...
लहर पर लहर आकर गिरी
मैं भीगा नहीं....।
पेड़ हिलाते रहे हाथ
खोले रहे बाहें,
फुनगियों पर नाचती रही मुस्कुराहट
पत्तियां खड़खड़ाती रहीं
सुन ना सका....।
तनी हुई गर्दन का ऐंठना भी
तय ना कर सका ऊंचाई...
पहाड़ की सबसे छोटी चोटी
मुझसे कितनी ऊंची है
इतना सा ही तो जानना था…
Added by Juee Gor on January 11, 2015 at 9:00pm — No Comments
मेरा अंधेरा
खो गया था
उसकी आँखों में
और मैं भी-
चलते-चलते
उसके साथ
क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर ।
श्वेत दृष्टि
श्यामल हो उठी थी ।
मेरे
होने,
न होने को
वह विभक्त नहीं कर सका था
सूर्यास्त से
सूर्योदय के बीच ।
Added by Juee Gor on January 7, 2015 at 9:56pm — 3 Comments
Added by Juee Gor on January 3, 2015 at 9:49pm — No Comments
Added by Juee Gor on January 1, 2015 at 4:53pm — No Comments
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है ! सुना है शेर का जब पेट भर जाये तो वो हमला नही करता , दरख्तों की घनी छाओँ जा कर लेट जाता है ! सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है !! सुना है जब किसी नदी के पानी में हवा के तेज़ झोंके जब दरख्तों को हिलाते हैं तो मैना अपने घर को भूल कर कौवे के अंडो को परों से थाम लेती है | सुना है घोंसले से कोई बच्चा गिर पड़े तो , सारा जंगल जाग जाता है | सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है !! सुना है जब किसी नद्दी के पानी में बये के घोंसले का गुन्दुमी साया लरज़ता…
ContinueAdded by Juee Gor on December 17, 2014 at 9:32pm — No Comments
आसमान जब मुझे अपनी बाँहों में लेता है
और ज़मीन अपनी पनाहों में लेती है
मैं उन दोनों के मिलन की कहानी
लिख जाती हूँ, श्वास से क्षितिज बन जाती हूँ ।
दिशाएँ जब भी मुझे सुनती हैं
हवाएँ जब भी मुझे छूती हैं
मैं ध्वनि बन फैल जाती हूँ
और छुअन से अहसास हो जाती हूँ ।
किसी शंख की आवाज़ जब मुझे लुभाती है
किसी माँ की लोरी जब मुझे सुलाती है
मैं दर्द से दुआ…
Added by Juee Gor on December 12, 2014 at 10:25pm — 1 Comment
ऊँचे पहाड़ों में गुम होती पगडंडी पर खड़ा हुआ नन्हा चरवाहा बकरी के बच्चे को फिसलते देख के कुछ इस तरह हँसा है वादी की हर दर्ज़[1] से झरने फूट रहे हैं शब्दार्थ: ↑ दरार
Added by Juee Gor on December 7, 2014 at 10:45pm — No Comments
Added by Juee Gor on November 21, 2014 at 10:07pm — No Comments
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं
मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं
कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं
ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं
उसकी याद आई हैं…
Added by Juee Gor on October 11, 2014 at 10:13pm — No Comments
મારા ખોબામાં ખખડાવું કોડી ૪૦
તને બોલાવું : રમવા આવીશ ?
છાબડી લઇને ચાલ, પરપોટા વીણશું
ને સાંજરે વળીશું ઘેર પાછાં
વીણેલા પરપોટા સાંધી સાંધીને
એના દરિયાઓ ગોઠવશું આછા
પછી દરિયાને તું ક્યાં વાવીશ ?
રણથી ટેવાયેલી આંગળીઓ
પાણીને ઑળખાણ આપતાં મૂઝાંશે
પોતાના ખખડાટે છળી જતી કોડીને
દરિયો અફળાય તો શું થાશે ?
તારા ખોબામાં તું…
ContinueAdded by Juee Gor on October 8, 2014 at 8:52pm — No Comments
એક ચકી ને ચકો મુંઝાઈ ગયા છે. ચોખા ને મગના બે દાણા હતા ને? હવે ચાંચમાંથી એ પણ છીનવાઈ ગયા છે. કોમ્પ્યુટર, મોબાઈલ, ટીવી, છે સોંઘા પણ એની રંધાય નહીં ખીચડી ચકી ને ચકાના જીવન પર ત્રાટકી છે મોંઘવારી નામે એક વીજળી, ફાઈવસ્ટાર મોલના ફાલેલા જંગલમાં નાનકડા સપના ખોવાઈ ગયા છે, એક ચકી ને ચકો મુંઝાઈ ગયા છે. મીનરલ વૉટરથી તો સસ્તા છે આંસૂ, ને મીઠી પણ લાગશે રસોઈ, ખાંડ માટે ટળવળતી કીડીની પાસે જઈ આટલું તો સમજાવો કોઈ, લાગે છે શેરડીના આખ્ખાયે વાઢને લુચ્ચા શિયાળીયા ખાઈ ગયા છે. એક ચકી ને ચકો મુંઝાઈ ગયા છે. ચકી ને…
ContinueAdded by Juee Gor on June 2, 2014 at 2:49pm — No Comments
Added by Juee Gor on May 20, 2014 at 4:57pm — No Comments
कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है चाँदनी उतर आयी बर्फ़ीली चोटियोँ से तमाम वादी गूँजती है बस एक ही सुर में ख़ामोशी की यह आवाज़ होती है… तुम कहा करते हो न! इस क़दर सुकून कि जैसे सच नहीं हो सब यह रात चुरा ली है मैनें अपनी ज़िन्दगी से अपने ही लिये
Added by Juee Gor on May 16, 2014 at 7:53pm — No Comments
માણસ ઉર્ફે રેતી, ઉર્ફે દરિયો, ઉર્ફે ડૂબી જવાની ઘટના ઉર્ફે;
ઘટના એટલે લોહી, એટલે વહેવું એટલે ખૂટી જવાની ઘટના ઉર્ફે…
ખુલ્લી બારી જેવી આંખો ને આંખોમાં દિવસો ઊગે ને આથમતા;
દિવસો મતલબ વેઢા, મતલબ પંખી, મતલબ ઊડી જવાની ઘટના ઉર્ફે…
વજ્જરની છાતી ના પીગળે, આંસું જેવું પાંપણને કૈં અડકે તો પણ;
આંસુ, એમાં શૈશવ, એમાં કૂવો, એમાં કૂદી જવાની ઘટના ઉર્ફે…
પગમાંથી પગલું ફૂટે ને પગલાંમાંથી રસ્તાના કૈં રસ્તા ફૂટે;
રસ્તા અથવા ફૂલો અથવા પથ્થર અથવા ઊગી જવાની ઘટના…
Added by Juee Gor on May 12, 2014 at 10:37pm — No Comments
Added by Juee Gor on May 11, 2014 at 3:17pm — No Comments
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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