दूर सुनसान-से साहिल के क़रीब
एक जवाँ पेड़ के पास
उम्र के दर्द लिए वक़्त मटियाला दोशाला ओढ़े
बूढ़ा-सा पाम का इक पेड़, खड़ा है कब से
सैकड़ों सालों की तन्हाई के बद
झुक के कहता है जवाँ पेड़ से... ’यार!
तन्हाई है ! कुछ बात करो !’
Added by Juee Gor on September 28, 2013 at 5:34pm —
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ફૂલ પર એ
જીવવાની કામના ત્યાગી શકે,
પણ કહો ઝાકળ કદી આખો દિવસ
જાગી શકે ?
આભ છે ઘનઘોર ને છે વાદળોનો ગડગડાટ
એક જણને ભીતરે તડકા-પણું લાગી શકે !
માપસરના હાથ જોડી માપસર માથું
નમાવી
માપસરનું કરગરી એ મહેલ પણ માંગી શકે !
ઈસુથી લઈ આદમી લગ, છે બધું લોહી-
લુહાણ
એકલે હાથે સમય પણ કેટલું વાગી શકે !
Deal કરતાં આવડે આકાશ સાથે જો તને
Lamp ને બદલે તું ઘરમાં ચંદ્ર પણ
ટાંગી શકે !
Added by Juee Gor on September 26, 2013 at 8:19pm —
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Haath mein usko kalam ka aana
achchha lagta hai,
usko bhi school ko jaana achchha
lagta hai.
bada kar diya ghardish ne waqt se
pehle warna,
sar pe kisko bojh uthana achchha
lagta hai…
....unknown
Added by Juee Gor on September 20, 2013 at 2:19pm —
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आओ फिर नज़्म कहें
फिर किसी दर्द को सहला के सुजा लें आँखें
फिर किसी दुखती राग से छुआ दे नश्तर
या किसी भूली हुई राह पे मुड़कर
एक बार नाम लेकर, किसी हमनाम को आवाज़ ही दे लें
फिर कोई नज़्म कहें.
Gulzar
Added by Juee Gor on September 19, 2013 at 2:30pm —
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એક છોકકરાએ સીટીનો હિંચકો બનાવીને
છોક્કરીને કીધું, લે ઝૂલ,
પછી છોક્કરાએ સપનાનું ખીસ્સુ ફંફોસીને
સોનેરી ચોકલેટ કાઢી રે,
ને છોક્કરીની આંખમાંથી સસલીના ટોળાએ
ફેંકી ચીઠ્ઠીઓ અષાઢી રે,
સીધ્ધી લીટીનો સાવ છોક્કરો, તે
પલળ્યો ને બની ગયો બે-ત્રણ વર્તુળ
છોક્કરીને શું એ તો ઝૂલી, તે એને ઘેર જતા થયું
સહેજ મોડું રે,
જે કંઈ થવાનું હતું એ છોક્કરાને થયું,
એના સાનભાન ચરી ગયું ઘોડું રે,
બાપાની પેઢીએ બેસીને રોજ-રોજ
ચોપડામાં ચીતરતો ફૂલ…
Added by Juee Gor on September 14, 2013 at 11:24pm —
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sans lena bhi kaisi aadat hai
jiye jana bhi kya ravayat hai
koi aahat nahi badan mein kaheen
koi saya nahi hai aankhon mein
panv behis hain, chalte jate hain
ik safar hai jo bahata rehta hai
kitne barason se, kitni sadiyon se
jiye jate hain, jiye jate hain
aadaten bhi ajeeb hoti hain
....
Added by Juee Gor on September 12, 2013 at 10:30pm —
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अभी जिन्दा है माँ मेरी, मुझे कुछ
भी नहीं होगा ।
मैं घर से जब निकालता हूँ दुआ भी साथ
चलती है ।।
जब भी कुश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है ।
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है । Munawwar Rana
Added by Juee Gor on September 12, 2013 at 11:33am —
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શાનાં સ્તવન સ્તવું અને ક્યાંના કવન કવું ?
ઉન્માદ ! લાગણીથી વધારે તો શું લવું ?
હાથોમાં હાથ રાખી હવે કેમ જીવવું ?
તારે છે ચાલવું અને મારે છે મ્હાલવું….
પામી લીધું ઊંડાણ મેં અભિવ્યક્તિનું નવું
ચૂમો તો ચીસ પાડું ને કાપો તો ક્લરવું !
સહરાની છાલકો ય પછી અમને ચાલશે,
શીખી જવા દો એક વખત તરબતર થવું.
જાકારો આઠે આઠ દિશાએ દીધા પછી,
અંતર્મુખ એક પળમાં થયા, એમાં શું નવું ?
-મુકુલ ચોકસી
Added by Juee Gor on September 9, 2013 at 2:59pm —
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आकाश असीमित हो तो हो
नन्हा-सा, पर अपना हो जो
उस नीड़ के प्रेम में पड़ कर,
अपना सारा जीवन खोते हैं
कुछ पंछी ऐसे होते हैं
आया नहीं, पर अब आ जाए
कब भाग्य जाने बदल जाए
नभ के चांद को तकते तकते,
हर पल बाट उसकी जोहते हैं
कुछ पंछी ऐसे होते हैं
उठाया मधुमास का आनंदo
साथी संग गाए मीठे छंद
मधुमास गया, साथी छूटा,
सावन के संग अब रोते हैं
कुछ पंछी ऐसे होते हैं
Unknown
Added by Juee Gor on September 8, 2013 at 2:00pm —
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अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा।
देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर
खड़ा होना मैंने सीख लिया है।
घबराओ मत
मैं क्षितिज पर जा रहा हूँ।
सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा
मैं कंधे अड़ा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा।
अब मैं सूरज को नही डूबने दूँगा।
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्हें मैं उतार लाना चाहता हूं
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो…
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Added by Juee Gor on September 4, 2013 at 3:25pm —
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हर जगह मचा है शोर
ख़त्म हो गया है अच्छा आदमी
रोज़ आती हैं ख़बरें
अच्छे आदमी का साँचा
बेच दिया है ईश्वर ने कबाड़ी को
'अच्छे आदमी होते कहाँ हैं
का व्यंग्य मारने से
चूकना नहीं चाहता कोई
एक दिन विलुप्त होते भले आदमी ने
खोजा उस कबाड़ी को
और
मांग की उस साँचे की
कबाड़ी ने बताया
साँचा टूट कर बिखर गया है
बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में
कभी-कभी उस भले आदमी को
दिख जाते हैं, वे टुकड़े
किसी बच्चे के रूप में जो
हाथ थामे…
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Added by Juee Gor on September 2, 2013 at 5:55pm —
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आंधी आई जोर-शोर से
डाली टूटी है झकोर से
उड़ा घोंसला बेचारी का
किससे अपनी बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ
कैसे यह घोंसला बनाएँ
कैसे फूटे अंडे जोड़ें
किससे यह सब बात कहेगी
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी ?
--- रचनाकार: महादेवी वर्मा
Added by Juee Gor on September 1, 2013 at 2:33pm —
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