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मनो बुध्यहंकार चिता निनाहम,
न च श्रोत्र जिह्वे न च ग्राना नेत्रे,
न च व्योमा भूमि न तेजो न वायुह,
चिदानंद रूपह शिवोहम, शिवोहम (२)
न च प्राण संग्नो न वै पंच वायुह,
न वा सप्त धातु न व पंच कोशः,…
Added by Sonya Shah on February 27, 2014 at 2:18pm — No Comments
मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……
फिर समुन्द्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया
हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..
लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये
पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर
अब…
Added by Sonya Shah on February 26, 2014 at 2:58pm — No Comments
दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं।
तुझसे बिछड़ के क्यों लगता है, तनहा नहीं हूँ मैं।
उम्र-सफश्र में कब सोचा था, मोड़ ये आयेगा।
दरिया पार खड़ा हूँ गरचे प्यासा नहीं हूँ मैं।
पहले बहुत नादिम था लेकिन आज बहुत खुश हूँ।
दुनिया-राय थी अब तक जैसी वैसा नहीं हूँ मैं।
तेरा लासानी होना तस्लीम किया जाए।
जिसको देखो ये…
Added by Sonya Shah on February 25, 2014 at 3:38pm — No Comments
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया
तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में
ये वो बेइज़्ज़त चीज़ है जो, बंट जाती है इज़्ज़तदारों…
Added by Sonya Shah on February 19, 2014 at 4:38pm — No Comments
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनो
चलो इक बार फिर से ...
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से ...
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि…
Added by Sonya Shah on February 19, 2014 at 4:36pm — No Comments
Added by Sonya Shah on February 18, 2014 at 2:20pm — No Comments
ये धुएँ का एक घेरा कि मैं जिसमें रह रहा हूँ
मुझे किस क़दर नया है, मैं जो दर्द सह रहा हूँ
ये ज़मीन तप रही थी ये मकान तप रहे थे
तेरा इंतज़ार था जो मैं इसी जगह रहा हूँ
मैं ठिठक गया था लेकिन तेरे साथ—साथ था मैं
तू अगर नदी हुई तो मैं तेरी सतह रहा हूँ
तेरे सर पे धूप आई तो दरख़्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा…
Added by Sonya Shah on February 17, 2014 at 2:12pm — No Comments
જન્મોજનમની આપણી સગાઇ,
હવે શોધે છે સમજણની કેડી
આપણા અબોલાથી ઝૂર્યા કરે છે
હવે આપણે સજાવેલી મેડી.
બોલાયેલા શબ્દોના સરવાળા-બાદબાકી
કરતું રહ્યું છે આ મન
પ્રત્યેક વાતમાં સોગંદ લેવા પડે
છે કેવું આ આપણું જીવન
મંઝિલ દેખાય ને હું ચાલવા લાગું ત્યાં
વિસ્તરતી જાય છે આ કેડી.
રંગીન ફૂલોને મેં ગોઠવી દીધાં છે તેથી
ખીલેલો લાગે આ…
Added by Sonya Shah on February 17, 2014 at 2:11pm — No Comments
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया….
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया….
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है….…
Added by Sonya Shah on February 15, 2014 at 3:27pm — No Comments
लबों से चूम लो,आँखों से थाम लो मुझको
तुम्ही से जन्मु तो शायद मुझे पनाह मिले
दो सौंधे सौंधे से जिस्म जिस वक़्त,एक मुठ्ठीमें सो रहे थे
बता तो उस वक़्त मैं कहाँ था, बता तो उस वक़्त तू कहाँ थी
मैं आरजू की तपिशमें पिघल रही थी कहीं
तुम्हारे जिस्म से हो कर निकल रही थी कहीं
बड़े हसीन थे जो राह में गुनाह मिले
तुम्ही से जन्मु तो शायद मुझे पनाह मिले..…
Added by Sonya Shah on February 14, 2014 at 2:29pm — No Comments
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे…
Added by Sonya Shah on February 12, 2014 at 5:41pm — No Comments
એક રજકણ સૂરજ થવાને શમણે,
ઉગમણે જઇ ઊડે, પલકમાં ઢળી પડે આથમણે.
જળને તપ્ત નજરથી શોશી
ચહી રહે ઘન રચવા,
ઝંખે કોઇ દિન બિંબ બનીને
સાગરને મન વસવા
વમળ મહીં ચકરાઇ રહે એ કોઇ અકળ મૂંઝવણે.
એક રજકણ…
જ્યોત કને જઇ જાચી દીપ્તિ,
જ્વાળ કને જઇ લ્હાય;
ગતિ જાચી ઝંઝાનિલથી,
એ રૂપ ગગનથી ચ્હાય;
ચકિત થઇ સૌ ઝાંખે એને ટળવળતી નિજ ચરણે.
એક રજકણ…
- હરીન્દ્ર દવે
Added by Sonya Shah on February 1, 2014 at 11:20am — No Comments
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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