अंजु चौधरी

1. आपका साहित्य सफ़र.. किस व्यक्ति या चीज़ ने आपको लिखने के लिए प्रेरित किया

इसका उत्तर मुझे अपने शुरू के वक्त से ही देना होगा | उम्र सोलह साल और अचानक के पापा की मौत और मेरा खुद में अकेला हो जाना..जब कुछ समझ नहीं आया तो कलम उठा ली| पापा की मौत ने वैसे भी सबसे अलग-थलग कर दिया था...शांत और मौन प्रवृति ने कभी किसी के करीब जाने नहीं दिया...दिल की बातें  दिल में ही दबी रहती थी| इसी वक़्त कलम हाथ में आते ही डायरी में लिखना शुरू किया पहले पहले तो डेली रूटीन की बातें लिखा करती थी..फिर पता नहीं कैसे ये रूटीन की बातें ...सोचते सोचते रिश्तों की सोच पर आ कर रुक जाती थी|

रिश्तों को सोचते हुए...हर रिश्ते को खुद में जीते हुए उसी पर कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी |इसी दौरान शादी हुई और मैं ससुराल आ गई...पर यहाँ व्यस्त होते हुए भी अकेलापन सोच पर हावी रहता था...सारा दिन काम में निकल जाता और रात को नींद ना आने पर मेरी डायरियाँ मेरी लिखी घटनाओं और कहानियों से भरने लगी |

पर फिर भी मन अभी भी अशांत था...कुछ था जी अधूरा था...कुछ था जो मुझे करना था| सरिता,गृहशोभा और इंडिया टुडे जैसी मैगज़ीन मैं शुरू से ही पढ़ती आ रही थी...रात रात भर जाग कर भी  ४००...५०० पन्ने वाले नोवल पढ़ लेना, एक आदत सी बन गयी थी ...पर मन में कसस अभी भी बनी हुई थी |मेरा जीवन मुझे व्यर्थ लगता था..पता नहीं क्यों मुझे शुरू से ऐसा लगता था कि ऐसा कुछ है जो अभी मुझे ही करना है पर क्या? वो समझ नहीं आ रहा था...लेखन अपनी जगह चल रहा था |

२००७ मे मैंने शौंकिया तौर पर अपने बड़े बेटे से कम्पूटर चलाना सीखा...बस यहीं से मेरे लेखन को एक दिशा मिल गई टाइपिंग सीखते और टाइपिंग करते करते कहानी लिखने वाली मैं कब कविता लिखने लगी ये मुझे भी नहीं पता चला |

२०१० तक मैंने सिर्फ कम्पूटर पर चेटिंग की और मन में आने वाली हर सोच को कविता के रूप में लिखा और बस लिखा और नेट पर होने वाली बातचीत में बहुत से दोस्त भी बने ,जिस में से कुछ साहित्य के क्षेत्र से भी जुड़े हुए थे, साहित्य के क्षेत्र में कदम रखते हुए मन में बहुत डर भी था कि पता नहीं ये दुनिया कैसी होगी | साहित्य के बारे में अधिक जानकारी ना होते हुए भी मैं अपनी लिखी कुछ कविताओं के साथ इस क्षेत्र में दाखिल हो गई और इस राह में मुझे सबसे पहले रायसन के (भोपाल ) विवेक जी के सहयोग और मार्गदर्शन की वजह से मुझे २०११  में निर्दलीय प्रकाशन के राष्ट्रीय अलंकरण की श्रृंखला में साहित्य वारिधि अलंकरण कविता एवं साहित्य के क्षेत्र में सम्मानित किया गया | 

मेरे लिए सब कुछ नया था,हर अनुभव नया,रसोई में काम करते करते मैं सीधा मंच पर पहुँच गई थी |  मेरी पहले की लिखी कविताओं में नादानियाँ और गलतियाँ होते हुए भी हिंदी युग्म के शैलेश भारतवासी ने मुझे आगे बढ़ने और मेरा संग्रह छापने का आश्वासन ही नहीं दिया बल्कि एक बच्चे की भांति मेरा हाथ पकड़ा कर मुझे कदम-दर-कदम आगे बढ़ का चलना सिखाया | मेरा  पहला काव्य संग्रह  ''क्षितिजा'' जो की हिंदी युग्म के शैलेश भारतवासी २०१२ में लेकर आए एक काव्य संग्रह के रूप में इसका विमोचन विश्व पुस्तक मेला (दिल्ली) में रखा गया था |उस वक्त मैं ये नहीं जानती थी कि मुझे इस काव्य संग्रह के लिए कुछ ही वक्त के बाद सम्मानित किया जाएगा | सौभाग्यवश मेरा काव्य संग्रह डॉ अमरसिंह वधान , प्रोफसर एमरिट्स (चंदीगढ़ से) उनके हाथों तक पहुंचा और उन्होंने मुझे 14..4..2012 को   महात्मा फुले प्रतिभा टेलेंट रिसर्च अकादमी - नागपुर, International award से नवाज़ा | 26.5.2012 …पूर्वोतर हिंदी अकादमी ....शिलोंग की ओर से ....लेखन और साहित्यधर्मिता के लिए सम्मान पत्र दिया गया और फिर इसके बाद मुझे दिसम्बर २०१२, क्षितिजा(काव्य संग्रह) के लिए ही, अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) की ओर से काव्य शिरोमणि सम्मान से सम्मानित | २०१३ में मेरा दूसरा काव्य संग्रह ''ऐ-री-सखी'' और मेरा संपादित काव्य संग्रह ''अरुणिमा'' आया वो भी हिंदी युग्म के शैलेश जी द्वारा ही प्रकाशित किया गया है जिकी वजह से मुझे एक बार फिर से  मुझे आगामी १४ सितम्बर २०१३ को  हिंदी दिवस वाले दिन ...राष्ट्रीय साहित्य,कला और संस्कृति परिषद ,महाराणा प्रताप संग्रहालय ,हल्दीघाटी, राजस्थान की और से मुझे काव्य शिरोमणि राष्टीय सम्मान मिला | इसके बाद सम्मानों की लिस्ट लम्बी है | विक्रमशिला हिंदी विद्द्यापीठ ....गांधीनगर ईशीपुर, भागलपुर द्वारा... उज्जैन में ''विद्यावाचस्पति'' सम्मान से सम्मानित, 14 दिसंबर 2014 ...गांधीनगर ईशीपुर, भागलपुर द्वारा... उज्जैन में ''विद्ध्यासगर'' सम्मान से सम्मानित, तीसरे दिल्ली इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में "Best Poet of the year" से सम्मानित ''सावित्री बाई फूले'' को समर्पित, प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति (करनाल,हरियाणा) द्वारा ''सशक्त नारी सम्मान ‘’ से सम्मानित | करनाल (हरियाणा)में हुए  ‘’डॉ हेडगेवार राष्ट्रीय सम्मान’’ के लिए .''शान-ए-हिन्दुस्तान'' सम्मान से सम्मानित, हरियाणा गौरव सम्मान से सम्मानित, गंतव्य संस्थान(दिल्ली) द्वारा नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित, ३१ जुलाई २०१६    करनाल में शहीद उधम सिंह एंव अब्दुल कलाम के पुण्य स्मृति दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि एंव सम्मान समारोह में मुझे मेरे तीसरे काव्य-संग्रह ''ठहरा हुआ समय'' के लिएशाइनिंग डायमंड अवार्ड से संम्मानित किया गया.

पर साथ ही साथ मैंने, मुकेश कुमार सिन्हा के साथ मिला कर २०१३ से साँझा संग्रह के क्षेत्र में कदम रखा,जबकि मैंने अपना एक साँझा संग्रह पहले से ही ला चुकी थी,पर वो मेरे बहुत ही सीमित जानकारों के बीच में ही रह गया |

मुकेश जी के साथ काम करते हुए हमने पगडंडियाँ ,कस्तूरी,गुलमोहर,गूंज और तुहिन पर काम किया...इस में हमने अपने साथ साथ बहुत सरे नए चहरों को लिया, यूँ कहना ज्यादा बेहतर होगा हम बहुत सरे नए लागों ने मिल कर साँझा मंच तैयार किया और इस मंच को तैयार करने में मुकेश जी की भूमिका बहुत अहम् रही| अब हम लोग अपने एक नए प्रयोग ''१०० कदम साँझा'' संग्रह में १०० लोगों की कवितायेँ शामिल की हैं |आगामी सितम्बर २०१६ में हम इसका विमोचन करने जा रहे हैं | 

ये है मेरा अब तक का लेखन का सफ़र...

अपने आप को साहित्य के क्षेत्र से नहीं कहूँगी क्योंकि क्योंकि यहाँ पर अभी तक पुरानी विचार-धाराएँ आपस में ही टकराव की स्थिति में है...और मुझे टकराव/तकरार एक दम से नहीं सुहाती ...शांत रह कर/चुप होकर अपना काम करना मुझे ज्यादा पसंद है...बस मुझे लिखना अच्छा लगता है इस लिए  अपने दिल की ख़ुशी के लिए लिख देती हूँ वो साहित्य है या नहीं ये तो पाठक ही तय करेंगें|

2. साहित्य के बारे में आप क्या विचार रखते है?

मैंने अपने वक़्त में हिंदी पढ़ते हुए प्रेमचंद,निराला,महादेवी वर्मा,कबीर और सूरदास को पढ़ा हुआ है...इसी लिए उस वक़्त से लेकर ४३ की उम्र तक मेरे लिए ये ही हिंदी के बड़े साहित्यकार थे,इनको पढना और इनके पढ़े छंद,पद्ध की व्याख्या करना ही मेरा मन-पसंद काम रहता था|वो हिंदी ही हमारे लिए साहित्य होता था...उम्र के जिस पड़ाव  पर जब से लिखना शुरू किया है,तब से जाना कि असली साहित्य क्या है और उसकी अन्दर की राजनीती क्या है?

बस उसी राजनीती से बचने और अपने लिखने को यूँ ही कायम रखने के लिए मैं खुद को कभी साहित्यकार ना कहतीऔर ना ही मानती  हूँ और न ही कहलवाना पसंद करती हूँ  |साहित्य लिखना और उसे पढना,दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण दिशा-निर्माण है...पर आज कल इस पर राजनीति ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है ,जिसके चलते अच्छे लेख़क दब कर,लेखन का क्षेत्र छोड़ कर जा चुके हैं |

बस मैं सिर्फ लिखना चाहती हूँ ये सोचे बिना कि मैंने साहित्य के मुताबिक लिखा भी या नहीं ...पर जब तक लेखन से जुडी हूँ तब तक,यूँ ही लिखते रहने का ईरादा रखती हूँ|

3. नारीवाद के बारे में आप क्या कहेंगे

नारी को और उसकी पहचान को  ''नारीवाद का नाम देना क्या उचित है? क्या नारी शब्द अपने आप में पूर्ण परिभाषा नहीं है ?क्या सच में नारीवाद का झंडा उठाने वाली संस्थाएँ या संगठन इस पर सही मायनों में काम करते हैं या जो नारीवाद की कायल है,वो सही में अपने घर से इसकी शुरुआत करती हैं?लोग..समाज...संस्थाएँ या संगठन नारीवाद का नाम देकर बेशक लोगों को अँधेरे में रखे... पर सही मायनों में नारी और नारीवाद का सीधा सा अर्थ उसे अपने ही घर से, उसकी पुरानी  हो चुकी सड़ी-गली मान्यताओं से छुटकारा दिलाना है |

मैं नारीवाद के विरुद्ध नहीं हूँ अपितु मेरे मुताबिक...नारीवाद एक बेबुनियादी बात और आधार है...बदलाव की जरुरत तो अपने समाज /संगठन के आदमियों से नहीं है अपितु अपने इर्द-गिर्द की नारियों से है जो नारी का ही शोषण करती हुई नज़र आ जाएँगी |घर घर में कन्या-भूर्ण हत्या जिस दिन रुक जाएगी मैं तो उस दिन को नारी-आज़ादी का दिन मानूंगी...घर की माँ/सास सबसे ज्यादा भूर्ण-हत्या करवाने पर जोर देती है ...क्या ये है नारीवाद? आप इसे नारी का कौन सा रूप कहेंगे??

घर ही सास /ननद/जेठानी/बुआ/चाची....सब औरते ही होती है ना...फिर ये ही क्यों घर पर आई नई बहु को प्रताड़ित करती हुई नज़र आती है...

बहु भी एक औरत ही होती है ना तो फिर क्यों वो अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में छोड़ने को मजबूर कर देती है?एक तरफ  हम औरत पर हो रहे अत्याचार की बात करते हैं...उन्हें उबारने की बात करते हैं ...और दूसरी तरफ औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन बन कर उभरती नज़र आती है |तो फिर ये नारी का कौन सा रूप है जो आज कल हमारे समाज में है ,जिसका चलन अपनी चरम पर है |

सास बहु का रिश्ता आज भी रिश्तों के पायदान में सबसे नीचे आता है ...क्यों?जबकि दोनों ने सामान रूप से एक ही छत के नीचे रहना होता है...यहाँ बदलाव की जरुरत है...सोच बदलने/नज़रिए बदलने की जरुरत है ...जब अपने घर के अपनी छत के नीचे के रिश्ते अपना सही आकर लेना शुरू कर देंगे तो नारीवाद के नारे अपने आप ही कम हो जायेंगे|

आज की नारी/लड़की/या समाज से जुडी हर वो औरत जो नारीवाद का नारा लगा कर,अपनी शालीनता से किनारा कर, एक दम से उन्मुक्त होकर विचरण करती है,अपने नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर बराबरी की दौड़ में खुद को शामिल करती है,वही इसका सबसे बड़ा मूल्य चुकाती है|

आज अपने यहाँ हर बाज़ार, सड़क रेस्टोरेंट और मॉल इसका जीता जागता उदाहरण है..आज सडको पर चलते हुए नारीवाद को मानने वाली लड़की/औरत आपको सड़कों पर खुलेपन की आंधी में सिगरेट पीती,किसी भी पार्टी में हाथ में जाम लिए हुए टकरा जाती है....क्या आज की पढ़ी लिखी नारी ने अपनी आज़ादी का यूँ ही ज़श्न मनाना पसंद किया है |

आज़ाद नारी, औरत का फ्री होगर जीने की सोच अगर माँ अपने स्वार्थ से हटा कर अपनी बेटी को अच्छे संस्कारों  से बड़ा करे तो आधी से अधिक नारीवाद की बातें तो यहीं पर खत्म  ही जाएगी |

भारत के जिन जिन क्षेत्र में नारीवाद की बुनियादी जरुरत है वहां  तो इसकी बुलंद आवाज़ उठती नहीं है ...वो अपने ही हाल में खुश है. नारीवाद के सारे नारे सिर्फ महानगरों तक ही क्यों सिमट कर रह गए हैं ???

मेरा बस इतन ही कहना है कि बात सिर्फ़ इतनी है कि घर में/समाज में,किसी पर भी कुछ आकरण ही कुछ थोपा  न जायें. नारीवाद औरतों की निर्णय लेने और चयन की स्वतन्त्रता की बात करता है, न कि सभी औरतों को अपने स्वाभाविक गुण छोड़ देने की, चाहे वे नारीसुलभ गुण हों या कोई और. जबकि मुझे ये भी ज्ञात है कि नारीवाद का मुख्य उद्देश्य है नारी की समस्याओं को दूर करना. आज हमारे समाज में भ्रूण-हत्या, लड़का-लड़की में भेद, दहेज, यौन शोषण, बलात्कार आदि ऐसी कई समस्याएँ हैं, जिनके लिये एक संगठित विचारधारा की ज़रूरत है. जिसके लिये आज लगभग हर शोध-संस्था में वूमेन-स्टडीज़ की शाखा खोली गयी है. नारी-सशक्तीकरण, वूमेन स्टडीज़, स्त्रीविमर्श इन सब के मूल में नारीवाद ही है . भारतीय नारीवाद, जो कि भारत में नारी की विशेष परिस्थितियों के मद्देनज़र एक सही और संतुलित सोच तैयार करे ताकि नारी-सशक्तीकरण के कार्य में सहायता मिले ना कि इसके मूल मन्त्र को भूल कर हम,उसकी दिशा को  गलत रुख प्रदान करें,पर बहुत अफ़सोस से मुझे ये कहना पड़ रहा है कि आज की नारी अपनी गलत सोच और गलत व्यवहार की वजह से बदनाम हो चुकी है ...और वो अपने साथ साथ बाकी बची हुई नारियों को भी उसी बदनामी के साये में जीने को विवश कर रही है क्योकि आज की नारी हर कोई शक की नज़र से देखता है, ये सब देख/सुन कर बहुत दुःख होता है |

 
4. एक कवि या लेखक के लिए पढ़ना कितना ज़रूरी होता है

पढ़ना बहुत जरुरी है,तभी आप अपनी मुख्यधारा से जुड़े रहेंगे..नहीं तो इस दुनिया में कब क्या होता है इस से आज अनजान बने रहे तो लिखने के लिए कोई विषय नहीं मिलेगा|
पर मुझे लगता है पढने से भी ज्यादा लोगों से बातचीत करते हुए उन्हें जानना,ये एक लिखने वाले के लिए पढने से भी ज्यादा जरुरी खुराक है |

पर मैं एक बात जरुर कहूँगी कि पढने से ज्यादा लोगों से लाइव बात करने के बाद उस सोच पर लिखना आज के वक़्त की मांग है..जितना हम प्रेटिकल लिखते है उतना ही हम लोगों की नज़रों/दिल में अपनी जगह को पक्का करते हैं...किसी भी बड़े साहित्यकार को पढने के बाद अपनी लेखनी तब अपनी नहीं रह जाती जब हम जाने/अनजाने उसके लिखे की नक़ल कर खुद उसी धारा में लिखने लगते है...और जब तक खुद को संभालने की बात आती है तब तक अपने हाथों में कुछ नहीं बचता|

आपको अजीब लगेगा...पर मैं आज भी किसी को नहीं पढ़ती,कभी पढने का बहुत मन करे तो आज भी  इंडिया टुडे उठा कर पढ़ती हूँ बस.| वैसे मेरे पास मेरे घर की छोटी से लाईब्रेरी में २०० से ऊपर कविता/कहानी/आत्मकथा/लघु कथा की पुस्तके पड़ी हैं ...जिस में चंद्रकांत देवताले जी से लेकर अनामिका जी/बेनेज़ीर भुट्टो/कमला दास/मोहन जोशी/रविन्द्र नाथ टैगोर तक की पुस्तके शामिल है ...फिर भी मैं इनको खोल कर पन्ने-दर-पन्ने पढ़ती जरुर हूँ पर अपनी सोच पर हावी नहीं होने देती| बाकि अगर कभी पढने का बहुत मन करता है तो मैं ओशो की लिखी पुस्तकें ही पढ़ती हूँ...उस में साहित्य के साथ साथ आत्मा-चिंतन के ज्ञान का भण्डार है और लेखन एक ऐसा विषय है जिसमें आप आत्म-चिंतन के बिना लिख नहीं सकते |
 
5. सोशियल मीडिया के बारे में आपकी क्या राय है ?
 
हम आज के लेखकों ने उस वक़्त लिखना शुरू किया है जब फेसबुक और ट्विटर का बहुत चलन है और ये दो ही ऐसे मंच है जो आपकी जगह लोगों के दिलों और दिमाग में पक्की करते हैं...पर पुराने साहित्यकार आज के युवा को या हमारी  उम्र के लेखक जिनको फेसबुक ने एक अलग पहचान दी है, वो इसे स्वीकार नहीं करते और ना ही किसी भी तरह से आगे आने का मौका देते हैं...हर तरफ राजनीती का बोलबोला है ...ऐसा मैंने देखा और महसूस किया है | और कुछ लोग तो यहाँ,इस मीडिया के मंच पर भी साहित्य को लेकर दलाली करते हुए नज़र आ जाएगे |खेर मेरे लिए तो मीडिया/फेसबुक से जुड़े हुए दोस्तों और न्यूज़ पेपर्स ने अपनी बहुत ही सकारत्मक भूमिका निभाई है  इसी लिए मैं इनकी आभारी हूँ |
 
6. एक ऐसी किताब जो आप बार बार पढ़ना चाहे...  

जब भी मौका मिले या मिलता है तो मैं बार बार ओशो को ही पढ़ती हूँ और उन्हें ही पढना चाहूंगी|

7. युवा लेखको को आप क्या कहना चाहेंगे ?  

बस इतना ही कहूँगी कि आप निरंतर लिखते रहे...आपकी मंजिल आपसे दूर नहीं है और अच्छा लिखने वालों को कोई भी आगे आने से नहीं रोक सकता...हज़ार विरोधों के बाद सूर्य का प्रकाश ज़रूर फैलता है | 

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Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

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