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Latest Activity: Aug 24, 2020
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
- गुलजार
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
Started by Noopur Shah. Last reply by jayantshah1938@gmail.com Jan 3, 2015. 1 Reply 5 Likes
For me it's yaaraam !!!Second best is thode bheege bheege se thode nam hai hum !!What's urs ?Continue
Comment
mera kuch saman tumhar epas pada hai.
very good song..from Izzazat
yeh eklata hai,jab jindgika saath denewale hamsathi ab rahi nahi
,tab eklata ka ehsas hota hai.Jindgi ka modsahana bahut muskil hai .
Guljar sahib ko 100 salam !!! doorse gunjte hai sannate...... WAH !!
~ जगह नहीं है और डायरी में ~
ये ऐशट्रे पूरी भर गयी है.
भरी हुई है जले-बुझे अधकहे ख़यालों की की राखो-बू से
ख़याल पूरी तरह से जो के जले नहीं थे
मसल दिया या दबा दिया था, बुझे नहीं वो
कुछ उनके टुर्रे पड़े हुए हैं
बस एक-दो कश ही ले के कुछ मिसरे रह गए थे!
कुछ ऐसी नज़्में जो तोड़ कर फेंक दी थीं उसमें
धुआँ न निकले
कुछ ऐसे अश’आर जो मिरे ‘ब्रांड’ के नहीं थे
वो एक ही कश में खांसकर, ऐश ट्रे में
घिस के बुझा दिए थे..
इस ऐशट्रे में,
ब्लेड से काटी रात की नब्ज़ से टपकते
सियाह क़तरे बुझे हुए हैं..
छिले हुए चाँद की त्राशें,
जो रात भर छील-छील कर फेंकता रहा हूँ
गढ़ी हुई पेंसिलों के छिलके
ख़यालों की शिद्दतों से जो टूटती रही हैं..
इस ऐशट्रे में,
हैं तीलियाँ कुछ कटे हुए नामों, नंबरों के
जलाई थें चाँद नज़्में जिन से,
धुआँ अभी तक दियासलाई से झड रहा है…
उलट-पुलट के तमाम सफ़्हों में झाँकता हूँ
कहीं कोई तुर्रा नज़्म का बच गया हो तो उसका कश लगा लूं,
तलब लगी है !
ये ऐशट्रे पूरी भर गयी है..!!
- गुलज़ार -
रात -- गुलज़ार
_____________________________
मेरी दहलीज़ पर बैठी हुयी जानो पे सर रखे
ये शब अफ़सोस करने आई है कि मेरे घर पे
आज ही जो मर गया है दिन
वह दिन हमजाद था उसका!
वह आई है कि मेरे घर में उसको दफ्न कर के,
इक दीया दहलीज़ पे रख कर,
निशानी छोड़ दे कि मह्व है ये कब्र,
इसमें दूसरा आकर नहीं लेटे!
मैं शब को कैसे बतलाऊँ,
बहुत से दिन मेरे आँगन में यूँ आधे अधूरे से
कफ़न ओढ़े पड़े हैं कितने सालों से,
जिन्हें मैं आज तक दफना नही पाया!!
किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती है
महीनों अब मुलाक़ातें नही होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थी
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के परदे पर
बड़ी बैचेन रहती है किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
जो ग़ज़लें वो सुनाती थी कि जिनके शल कभी गिरते नही थे
जो रिश्तें वो सुनाती थी वो सारे उधड़े-उधड़े है
कोई सफ़्हा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मानी गिर पड़े है
बिना पत्तों के सूखे टूँड लगते है वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मानी उगते नही है
जबाँ पर ज़ायका आता था सफ़्हे पलटने का
अब उँगली क्लिक करने से बस एक झपकी गुज़रती है
बहोत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
क़िताबों से जो ज़ाती राब्ता था वो कट-सा गया है
कभी सीनें पर रखकर लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बनाकर
नीम सज़दे में पढ़ा करते थे
छूते थे जंबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी
मगर वो जो उन क़िताबों में मिला करते थे
सूखे फूल और महके हुए रूक्के
क़िताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा...
- Gulzar
thanks
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 0 Comments 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
Posted by Sakshi garg on February 16, 2021 at 11:18pm 0 Comments 2 Likes
जब मुझे पता चला कि तुम पानी हो
तो मै भीग गया सिर से पांव तक ।
जब मुझे पता चला कि तुम हवा की सुगंध हो
तो मैंने एक श्वास में समेट लिया तुम्हे अपने भीतर।
जब मुझे पता चला कि तुम मिट्टी हो
तो मै जड़ें बनकर समा गया तुम्हारी आर्द्र गहराइयों में।
जब मुझे मालूम हुआ कि तुम आकाश हो
तो मै फैल गया शून्य बनकर।
अब मुझे बताया जा रहा है कि तुम आग भी हो•••
तो मैंने खूद को बचा कर रख है तुम्हारे लिए।
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