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1.फेमीनिज़म के बारे में आपकी क्या राय है ?
उत्तर:- फेमिनीज़म यानि नारीवाद पर बात करना मेरे लिए बिल्कुल वैसा है जैसे जातिवाद पर बात करना। मैं शुरू से ही स्त्री पुरुष को पूरक मानती हूं और मानव विमर्श की पक्षधर हूं ।
2. साहित्य के बारे में आप क्या विचार रखते है?
उत्तर:- साहित्य को मैं उस आदित्य की तरह मानती हूँ जो सवेरा होते ही प्रकृति की संपूर्ण कृत्यों को प्रकाशित और अभिव्यक्त कर देता है साहित्य के प्रकाश में मार्गदर्शन और जीवन की संभावनाएं बढ़ जाती है। साहित्य अनुभव, वर्तमान और भविष्य के सपनों से जुड़ी हर बात को पूरी तरह प्रकट करने की क्षमता रखता है।
3. स्त्री परिवार और प्रोफ़ेशन..
उत्तर:- स्त्री के लिए परिवार खुद एक आजीवन अवैतनिक प्रोफेशन है । उसके अतिरिक्त अगर अपनी क्षमताओं का सही दिशा में प्रयोग कर संतुलन बनाते हुए स्त्री अन्य प्रोफेशन में शामिल होती है और खुद को प्रमाणित करने का हुनर रखती है तो ये खुद स्त्री ही नहीं परिवार और समाज के लिए भी लाभदायक सिद्ध होता है।
4. स्त्री सर्जक और पुरुष सर्जक के सर्जन में क्या तफावत महसूस होता है ?
उत्तर:- स्त्री के सृजन में अक्सर उन बातों का समावेश ज्यादा देखा है मैंने जो उसने जीया या जिन चाहती है, समाज में अक्सर उन परिवर्तनों की बात करती है जो उसके अनुभवों के अनुसार होने चाहिए जबकि पुरुष के सृजन में ओज और राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों के प्रति आक्रोश झलकता है। पुरुष जा प्रेम श्रीनगर या भावनाएं लिखता है तो उसका सृजन स्त्री की कोमल भावनाओं से भी अधिक गहराई महसूस होती है ।
5. एक कवि या लेखक के लिए पढ़ना कितना ज़रूरी होता है?
उत्तर :- पढ़ना उतना ही जरुरी है जितना सीखना चाहता है। एक राखनाकार जितना पढ़ता है उतना ही शब्दकोष बढ़ता है , विषय और शिल्प में निखार आता है सिर्फ मन की बात या परिवेश ही लेखन को दिशा नहीं देता बल्कि अलग अलग लोगों की लेखनी की भिन्नता भी नवीनता के साथ साथ परिपक्वता भी लाती है लेखन में।
6. सोशियल मीडिया को अगर थोड़े शब्दो में समझना हो तो क्या कहेगी?
उत्तर:- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है बचपन में पढ़ा था। तब संचार साधन सीमित थे तो दायरा छोटा था, आज का मनुष्य कुएं से निकल कर नदियों की मुख्य धारा में पहुच गया है । सोशल नेटवर्क के जरिए हर व्यक्ति पूरी दुनिया से ज्यादा है। विकास, संबंधों और अभिव्यक्ति का शाशक साधन और प्रतिभाओं के लिए समुचित धरातल प्रदान करता है। सोशल नेटवर्क बस ये सभी को याद रहे की 'विज्ञान वरदान भी है अभिशाप भी' , निर्भर हमपर करता है कि सोशल नेटवर्क के किस पहलू को अपनाएं।
7. आपके अनुसार स्त्री मतलब क्या?
उत्तर :- मेरे अनुसार स्त्री प्रकृति की अनुपम कृति जो पुरुष की पूरक है। दोनों में तुलना व्यर्थ है क्योंकि दोनों ही एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।
मैं एक स्त्री हूं,..
जो स्त्रीत्व की सीमाओं मे
रहते हुए जीती हूं
एक कल्पनाओं की जिंदगी,
दिन की शुरूआत से
रात के सन्नाटे तक,.
पृथ्वी की तरह
दिन रात के कालचक्र में,
रोज अपने ध्रुव पर,
चलता है मेरा भी जीवन
और दिन यूं ही गुजर जाता है,..
पृथ्वी की वार्षिक परिक्रमा की तरह
मैं भी अपनी ही धूरी पर,
बढ़ती जाती हूं एक एक कदम,
पृथ्वी की धूरी के हर मोड़ की तरह
मेरे भी जीवन में बदलते है मौसम,..
पृथ्वी की सूरज और चंद्रमा से
दूरी और सामिप्य से
बदलती प्राकृतिक परिस्थितियों की तरह,.
मुझे भी फर्क पड़ता है
मेरे अपने और परायो की निकटता और दूरी से,..
पृथ्वी की तरह
बाढ़,सूखा,पतझर,ज्वार-भाटा,
भूकंप और ज्वालामुखी,
मैने भी भोगे हैं,
आंसुओं की आर्द्रता,
प्रेम में उद्दिग्नता,
अहसासों की तपिश,
भावनाओं के ज्वार,
निराशा के भाटा,
क्रोध के ज्वालामुखी,
अपने वजूद की
डगमगाहट का भूकंप,
अपनी धूरी से हट जाने से
होने वाले हादसे का डर,
और हर पल प्रलय का आतंक,
और गुरूत्वाकर्षण बल की तरह
अपने परिवार का मोह,
जो हर विपदा के बाद भी
न दिन-रात की गति की व्यवस्था बदलने देता,
न रोकता मेरे जीवन की गति को,...
और मैं जी लेती हूं
परिवार नामक ध्रुव
और प्रतिबंधित धूरी पर,..
घूर्णन और परिक्रमा करते हुए,..
पृथ्वी की एक वार्षिक परिक्रमा की तरह,..
अपना पूरा जीवन,.......
प्रीति सुराना
Email :- pritisamkit@gmail.com
Blog :- priti-deshlhara@blogspot.in
Fb page :- मेरा मन
Comment
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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