Preeti 'Agyaat'


1.फेमीनिज़म के बारे में आपकी क्या राय है ?

अपने कर्त्तव्यों के पूर्ण निर्वहन के साथ, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक एवं सचेत रहकर सत्य के पक्ष में खड़े हो, अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना ही 'feminism' है। नारी आंदोलन, नारी अधिकारवाद, स्त्री सशक्तिकरण, स्त्रीत्व ज़िंदाबाद के नाम पर हो रही तमाम रैलियों, भाषणों और टिमटिमाती मोमबत्तियों को मैं खारिज़ करती हूँ। यदि हम 'स्त्री' अपने-अपने घरों में बच्चों को सबका समान रूप से सम्मान करना सिखायें, हर धर्म का आदर करने का पाठ दें और स्वयं भी यही करें तो एक परिवार तो स्वस्थ मानसिकता वाला बन ही जायेगा और सभी यही करें तो सकारात्मक समाज की स्थापना उतनी मुश्किल नहीं, जितनी प्रक्षेपित की जाती रही है।

'फेमिनिज्म' शब्द का प्रयोग हर युग में, हर तबके में, हर ओहदे पर बैठे लोगों द्वारा अलग-अलग विधियों से अलग-अलग प्रयोजनों के लिए किया जाता रहा है। पर 'स्त्रीत्व' के नाम पर खुद की महानता के गुणगान और हर बात में पुरुषों को दोषी ठहरा देना निहायत ही गलत है। पहले और अब की परम्पराओं तथा सोच में अंतर आ चुका है। हाँ, नारी के मूलभूत गुण अब भी सुरक्षित है। परिवर्तन गर हुआ है तो यही, कि अब उसे अपनी समस्याओं पर बोलना आ गया है, झिझक खुलती जा रही है,वो multitasking करना भी जान गई है। लेकिन हर बात में झंडा फहराते हुए मोर्चा निकाल देना और व्यर्थ की नारेबाज़ी उचित नहीं लगती ! अबला,असहाय, निरीह अब पुराने गीत हैं। आंसू, होते तो असल हैं पर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल न किया जाए तो बेहतर! 'स्त्रीत्व' यही है कि हम अपने मूलभूत गुणों को संरक्षित रखते हुए, हर वर्ग को उसके हिस्से का मान दें और जरुरत पड़ने पर अपनी बात भी अन्य प्रजाति (पुरुष) पर दोषारोपण किये बिना कह सकें। क्योंकि हमारी और आपकी दुनिया में बहुत अच्छे और सुलझी सोच वाले पुरुषों की उपस्थिति को भी नकारा नहीं जा सकता। एक कटु सत्य यह भी है कि अत्याचार पुरुषों पर भी होते हैं, परन्तु सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा है कि वे इस विषय पर बात करने में असहज महसूस करते हैं। 

 फेमिनिज्म को बवाल समझने वालों के लिए यह जानना आवश्यक है कि हमारी लड़ाई पुरुष वर्ग के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवस्थाओं के ख़िलाफ़ है, जिसमें समाज का हर वर्ग सम्मिलित है। विज्ञानं का नियम है , किसी वस्तु को दबाने पर वो दुगुनी शक्ति से उछलती है, कुछ ऐसा ही स्त्रियों के साथ भी हुआ है। 

आजकल की युवा पीढ़ी की सकारात्मक सोच, समाज के लिए बहुत उम्मीदें पैदा करती है। हमें आशान्वित रहना होगा कि कुछ वर्षों में स्त्री-पुरुष के बीच यह द्वंद्व ही समाप्त हो जाए और दोनों एक दूसरे की सत्ता को मान देते हुए, आपसी मतभेद के बावजूद मनभेद न रखें। तभी इस सच्चाई को स्नेह से स्वीकार कर सामंजस्य बैठा पाने में सक्षम होंगे! तब तक ऐसी चर्चाओं का जीवंत रहना जरुरी है। 

 

 2. साहित्य के बारे में आप क्या विचार रखती हैं?

साहित्य, यथार्थ की कंटीली भूमि में उगी फसल है, जो हर तरह के  मौसम से प्रभावित होती है। ये सामाजिक उथल-पुथल, परिवर्तित मूल्यों और बदलती संवेदनाओं की शाब्दिक अभिव्यक्ति है। रचनाकार के शब्दों की तल्ख़ी, उसके संवेदनशील ह्रदय की प्रतिकूल परिस्थितियों से उपजी कड़वाहट का जीता-जागता दस्तावेज है और स्नेह सुन्दर अनुभूतियों की जीती-जागती मिसाल बन प्रस्तुत होता रहा है। साहित्य, एक जादुई चुंबक है जिसकी ओर आप आकर्षित हो गए वो उम्र भर के लिए इसके ही होकर रह जायेंगे। यह सच्चे साथी की भूमिका भी निभाता है। यह एक अनुभव है, उम्र है, जीवन है और जीवन की ही तरह इसमें सुख-दुःख दोनों ही हैं। दर्शन, ज्ञान, शिक्षा की बातें हैं।अब ये हम पर है कि हम क्या पढ़ें क्योंकि हर मोटी ज़िल्द के अंदर भरे पन्नों की फड़फड़ाहट 'क़िताब' नहीं होती। 'साहित्य' अत्यंत आदरणीय शब्द है। नए लेखकों में प्रतिभा की कमी नहीं पर जो चार कवितायें लिखते ही स्वयं को साहित्यकार घोषित कर देते हैं, वो इस बात पर ध्यान दें कि यह भी एक तरह की साधना है। जुगाड़ से आगे बढ़ना, आपके आत्मविश्वास की कमी को जाहिर करता है। मेहनत का कोई विकल्प नहीं! हाँ, इसकी क़द्र देर से जरूर होती है। इन दिनों कुछ भी लिख देना आसान है, शायद छपना भी पर साहित्य को पढ़ने और समझने के लिए मीलों दूर की यात्रा अकेले ही तय करनी होती है। 

 

 3. स्त्री परिवार और प्रोफ़ेशन.

हम्म्म, यह प्रश्न जितना सरल दिख रहा, परिस्थितियाँ उससे कहीं अधिक जटिल हैं।  इसका प्रमुख कारण भावनात्मक है। स्त्री चाहे कितनी ही बड़ी साहित्यकार क्यों न बन जाएँ, लेकिन लेखन उसकी प्राथमिकता सूची में तीसरे या चौथे स्थान पर ही आएगा। क्योंकि हमारी सूची परिवार से शुरू होकर वहीँ ख़त्म होती है। आप एक माँ है, पत्नी हैं, बेटी हैं यदि इन सब जिम्मेदारियों को आप बखूबी निभा रही हैं और सामाजिक स्तर पर कार्यशील हैं। तो इन सबके बाद ही आप अपने बारे में सोच सकतीं हैं और वही सार्थक भी है। लेकिन यह बात प्रत्येक प्रोफेशन पर लागू होती है। आप सिंगल हैं या आपकी मासिक आय करोड़ों में है, तो ही परिस्थितियां भिन्न हो सकतीं हैं। जहाँ तक लेखन की बात है तो स्त्रियों के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि सृजनात्मकता और आत्म-संतुष्टि जैसी बातों का कोई मोल नहीं,  आपके कार्य को रुपयों से आँका जाता है। आप लाखों कमा रहीं तो ठीक, वरना लोग इसे व्यर्थ में समय बर्बाद करने जैसी बात कहकर हतोत्साहित करने में भी पीछे नहीं रहते। आपकी उपलब्धियाँ भी गौण हो जातीं हैं। वही 'घर की मुर्गी दाल बराबर' वाली कहावत। 

दूसरी समस्या समय की है, जो कि  पुरुषों के लिए भी उतनी ही परेशानी भरी है। लेकिन होता ये है कि आपके यहाँ कोई अतिथि आ रहे हैं, घर में कोई अस्वस्थ है या कोई काम चल रहा है, स्त्रियाँ चाहते हुए भी बाहर नहीं निकल पातीं जबकि पुरुष निश्चिंतता से चले जाते हैं। एक ही घर में रहते हुए यदि पुरुष को कोई असाइनमेंट समय पर देना है तो वो अपने कमरे के बाहर 'डू नॉट डिस्टर्ब' लगाकर जुट जाता है पर स्त्री सारी जिम्मेदारियों से निवृत्त होकर थकीहारी, अपनी नींद में कटौती करते हुए ही अपना कार्य कर पाती है। हर क़दम पर उसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है। दु:खद ये भी है कि इस लड़ाई की शुरुआत, प्राय: घर से ही होती है। यह वर्षों से चली आ रही एक सामाजिक व्यवस्था है जिस पर कुंठा नहीं, विमर्श की आवश्यकता है।

इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि स्त्रियों के पास समय का अभाव हो सकता है लेकिन उनकी कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता पर किसी को संदेह नहीं, इसीलिए अब महिला रचनाकारों को भी उतनी ही गंभीरता से लिया जा रहा है जितना कि अन्य वर्ग को। सोशल साइट्स का आगमन इनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ है, महिलाओं में बढ़ती ब्लॉगिंग की रूचि इसका जीता-जागता प्रमाण हैं। हाँ, उनकी तुलना में पुरुष लेखकों की संख्या कहीं ज्यादा है।

 

 4. स्त्री सर्जक और पुरुष सर्जक के सर्जन में क्या तफावत महसूस होता है ?

स्त्री और पुरुष के सृजन में बहुत अंतर है, विषय-वस्तु, चिंतन-शैली से लेकर ट्रीटमेंट तक। स्त्रियों की रचना जहाँ भावुकता भरी और कल्पनाओं से ओतप्रोत मिलतीं हैं वहीँ पुरुष यथार्थ को जीता हुआ व्यावहारिक बात करता है। संवेदनशील दोनों ही हैं, बस बात को देखने-समझने का उनका नजरिया भिन्न है। 

हम जिस समाज का हिस्सा हैं, वहां नारी ने शोषित, उपेक्षित होना अपनी नियति मान लिया है। हृदय से वह उन्मुक्त, स्वतन्त्र रहना चाहती है, खुली हवा में विचरण करते हुए साँस लेना उसे भी खूब सुहाता है। पर वो अंदर से भयभीत है, इसे अपने संस्कारों का दुरुपयोग समझती है। आसमाँ को छूकर लौट आने के बावज़ूद भी वो अपने पैर अपने मूल्यों की ज़मीन पर ही जमाए हुए है। अपनी शक्ति, अपनी सत्ता का भी बखूबी अहसास है उसे। उसका उद्वेलित ह्रदय घरेलू विषयों, प्रकृति, के इर्दगिर्द विचरण करते हुए समाज की कुरीतियों, नारी शोषण, अपराध के विरुद्ध क्रांतिकारी उद्घोष करता है। पुरुष की रचनाओं में जीविका, संघर्ष, सामजिक एवं राजनीतिक रचनाओं की प्रधानता देखी जा सकती है।

हाँ, 'प्रेम' एक ऐसा विषय है जिस पर दोनों ही पक्ष खूब लिखते हैं। स्त्री की प्रेम कविताओं में जहाँ नारीसुलभ लज्जा, सकुचाहट है वहाँ पुरुष निस्संकोच अपनी बात कहता है। लेकिन इन सभी बातों के अपवाद भी उपस्थित हैं। बीते दिनों स्त्री रचनाकारों द्वारा रचित कुछ बोल्ड रचनाएँ खासी चर्चित रहीं। तो एक तरह से सृजन, स्त्री-पुरुष से इतर आपके सामाजिक परिवेश, पारिवारिक मूल्यों, संस्कार और सहजता पर भी निर्भर करता है। 

ख़ैर ... सृजक के लिए इतना ही आवश्यक है कि वो पूरी ईमानदारी से लिखता रहे, चाहे वो अपने बारे में हो या समाज के। भय की खाल के भीतर बैठकर लिखने वाले, स्वयं के लिए भी निष्पक्ष नहीं हो पाते। धर्म, जाति, राजनीति, दल, स्वार्थ से परे रहकर सत्य का समर्थन और असत्य का विरोध करना और 'प्रेम' से इतर महत्वपूर्ण मुद्दों पर लिखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

इन दिनों जो कवितायेँ लिखी जा रहीं हैं वो आपके मस्तिष्क में एक प्रश्न बन मथतीं हैं, उसमें महानगरों, वहां की स्त्रियों से जुडी समस्याएँ हैं, एक जुझारूपन है, संघर्ष है और विचलित ह्रदय भी। यहाँ यदि कोई बात खटकती है तो यही कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडी रचनाएं अब भूले-भटके ही देखने को मिलती हैं। यदि हम परिवर्तन की ठंडी छाया में सांस ले तनिक विश्राम चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें अपनी जड़ों को सींचना होगा।

 

5. एक कवि या लेखक के लिए पढ़ना कितना ज़रूरी होता है?

बेहद जरुरी ताकि वो कुँए के मेढक बनकर न रह जाएँ। सर्वविदित सत्य है कि ज्ञान कभी नुकसान नहीं करता। हम जितना पढ़ते हैं, हमारा शब्दकोष भी उतना ही समृद्ध होता जाता है। साथ ही उत्कृष्ट पठन से अपने स्तर का अनुमान हो जाता है तथा सुधार-बिंदु पर चिंतन, मनन करने का अवसर मिलता है। ये क़लम की ताक़त ही है, जो समाज में बदलाव और सुधार की लौ जागृत करती है। 

 

 6. सोशियल मीडिया को अगर थोड़े शब्दो में समझना हो तो क्या कहेगी?

सोशल मीडिया मतलब एक क्लिक में बसी दुनिया। आज से दो दशक पूर्व तक जो कल्पनायें और जादुई बातें भर लगतीं थीं, इस माध्यम ने उसे आहिस्ता से यथार्थ के धरातल पर हूबहू उतार दिया है। ये भी एक तरह का विज्ञान है, जिसके अभिशाप और वरदान दोनों ही प्रकार के रूप संभावित हैं। सोशल मीडिया जितना जोड़ती है, उससे कहीं अधिक तोड़ भी देती है। अच्छी-बुरी, सच्ची-झूठी, सकारात्मक-नकारात्मक हर तरह की सामग्री उपलब्ध है यहाँ। इससे आवश्यकता के अतिरिक्त जुड़ाव भीतर ही भीतर खोखला कर देता है। यहाँ भावनाओं एवं रिश्तों के लिए कोई स्थान नहीं होता। बस अपने कार्य से सम्बंधित जानकारी लें या दें, इससे अधिक रूचि दिखाने पर मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। स्त्रियों के लिए विशेष तौर पर कहना चाहूंगी कि आभासी चेहरों के पीछे किसके मुखौटे किस स्वार्थ के लिए हैं, यह ठीक से परखकर ही कोई क़दम उठायें। इसकी भ्रामकता से यदि आप शीघ्र ही सचेत हो जाएँ, स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखें तो 'सोशल मीडिया' आपके लिए वरदान साबित हो सकता है।

 

 7. आपके अनुसार स्त्री मतलब क्या?

 "वो फूलों को देख प्रसन्न हो जाती है,

हवाओं में मचलकर आँचल लहराती है,

तूफां से न हारी, देखो बिजली-सा टकराती है

बारिश में किसी फसल की तरह लहलहाती है,

खुशी में दीपक बन जगमगाती है

हल्की आहट से बुद्धू बन चौंक जाती है

अकेले में पगली बेवजह गुनगुनाती है 

हँसती है बहुत तो कभी

औंधे मुंह पड़ जाती है 

जाते ही इसके न जाने क्यूँ 

घर की नींव हिल जाती है 

मैं सोचती रही, क्या कहूँ उसे..... 

तभी सामने से एक 'स्त्री' गुजर जाती है"

'स्त्री' ईश्वर की गढ़ी वह खूबसूरत कृति है, जिसके बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये वो धुरी है जिसके गर्भ में जीवन पनपता है। नारी, नर की महिमा है, गरिमा है, ममता की मूरत, अन्नपूर्णा, कोमल भाषा, निर्मल मन, स्वच्छ हृदय, समर्पिता है। इन सबसे भी अहम बात कि वो सिर्फ़ एक ज़िस्म ही नहीं, उसमें जाँ भी बसती है। अपने हिस्से के सम्मान की हक़दार है वो। स्त्री को कोई अपेक्षा नहीं सिवाय इसके कि उसे 'इंसान' समझा जाए, उसके साथ निर्ममता और क्रूरतापूर्ण व्यवहार न हो। वो देवी बनने की इच्छुक बिलकुल भी नहीं। 

स्त्रियों को समझ पाना इतना आसान नहीं है। स्त्री मन की थाह का अंदाजा शायद स्त्री को भी नहीं होता - आज जिस इंसान पर कोई स्त्री आग-बबूला हो रही है, कल उसी के लिए नम आँखों से दुआ मांगती दिखेगी। क्योंकि उसे परवाह है अपनों की, क्रोध उस खिसियाहट का परिणाम है कि अपनों को उसकी परवाह क्यों नहीं? ये प्रेम है उसका।  "जाओ, अब तुमसे कभी बात नहीं करुँगी" कहकर दस सेकंड बाद ही सन्देश भेजेगी, "सॉरी यार कॉल करूँ क्या?" क्योंकि वो आपके बिना रह ही नहीं सकती, उसे क़द्र है आपकी उपस्थिति की। ये रिश्तों को निभाने की ज़िद है उसकी। रात भर सिरहाने बैठ बीमार बच्चे का माथा सहलाती है, कभी अपनी नींदों का हिसाब नहीं लगाती। ये ममता है उसकी।हिसाब से घर चलाते हुए, भविष्य के लिए पैसे बचाती है और एक दिन वो सारा धन बेहिचक किसी जरूरतमंद को दे आती है। ये दयालुता है उसकी। कोई उसकी मदद करे न करे, लेकिन वो सबकी मदद को हमेशा तैयार रहती है। ये संवेदनशीलता है उसकी। अपने आँसू भीतर ही समेटकर, दूसरों की आँखें पोंछ उन्हें दिलासा देती है। ये दर्द को समझने की शक्ति है उसकी।अपनों के लिए ढाल बनकर दुश्मन के सामने चट्टान की तरह खड़ी हो जाती है। ये हिम्मत, शक्ति है उसकी। बार-बार जाती है, जाकर लौट आती है। इश्क़ है, दीवानगी है उसकी।एक हद तक सफाई देती है, फिर मौन हो जाती है। गरिमा है उसकी। मम्मी, बेटी, गुड़िया, सुनो, दीदी, बुआ, चाची और ऐसे ही अनगिनत रिश्तों के बीच खोई हुई कभी फ़ुरसत के कुछ पलों में अति औपचारिक ढंग से तैयार किये गए प्रमाण-पत्रों में अपना नाम पढ़कर खुद को पुकार लेती है। स्वयं की तलाश में, खोयी रही अब तक....कुछ ऐसी ही ज़िन्दगी है उसकी। मेरे लिए स्त्री का यही पर्याय है। 

प्रीति 'अज्ञात'

Facebook : https://www.facebook.com/pjahd

Blogs:

ख़्वाहिशों के बादलों की..कुछ अनकही, कुछ अनसुनी

http://agyaatpreeti.blogspot.in/

यूँ होता...तो क्या होता !

http://preetiagyaat.blogspot.in/

Comment

You need to be a member of Facestorys.com to add comments!

Join Facestorys.com

Comment by Preeti Agyaat on August 12, 2016 at 11:14pm

Shukriya, Paritosh 

Comment by PARITOSH KUMAR PIYUSH on August 7, 2016 at 11:14pm
सटीक
Comment by Preeti Agyaat on July 25, 2016 at 11:22pm

Shukriya, Syahee.com :)

Blog Posts

परिक्षा

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments

होती है आज के युग मे भी परिक्षा !



अग्नि ना सही

अंदेशे कर देते है आज की सीता को भस्मीभूत !



रिश्तों की प्रत्यंचा पर सदा संधान लिए रहेता है वह तीर जो स्त्री को उसकी मुस्कुराहट, चूलबलेपन ओर सबसे हिलमिल रहेने की काबिलियत पर गडा जाता है सीने मे !



परीक्षा महज एक निमित थी

सीता की घर वापसी की !



धरती की गोद सदैव तत्पर थी सीताके दुलार करने को!

अब की कुछ सीता तरसती है माँ की गोद !

मायके की अपनी ख्वाहिशो पर खरी उतरते भूल जाती है, देर-सवेर उस… Continue

ग़ज़ल

Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments

इसी बहाने मेरे आसपास रहने लगे मैं चाहता हूं कि तू भी उदास रहने लगे

कभी कभी की उदासी भली लगी ऐसी कि हम दीवाने मुसलसल उदास रहने लगे

अज़ीम लोग थे टूटे तो इक वक़ार के साथ किसी से कुछ न कहा बस उदास रहने लगे

तुझे हमारा तबस्सुम उदास करता था तेरी ख़ुशी के लिए हम उदास रहने लगे

उदासी एक इबादत है इश्क़ मज़हब की वो कामयाब हुए जो उदास रहने लगे

Evergreen love

Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments

*પ્રેમમય આકાંક્ષા*



અધૂરા રહી ગયેલા અરમાન

આજે પણ

આંટાફેરા મારતા હોય છે ,

જાડા ચશ્મા ને પાકેલા મોતિયાના

ભેજ વચ્ચે....



યથાવત હોય છે

જીવનનો લલચામણો સ્વાદ ,

બોખા દાંત ને લપલપતી

જીભ વચ્ચે



વીતી ગયો જે સમય

આવશે જરુર પાછો.

આશ્વાસનના વળાંકે

મીટ માંડી રાખે છે,

ઉંમરલાયક નાદાન મન



વળેલી કેડ ને કપાળે સળ

છતાંય

વધે ઘટે છે હૈયાની ધડક

એના આવવાના અણસારે.....



આંગણે અવસરનો માહોલ રચી

મૌન… Continue

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो

यूँ तो जलती है माचिस कि तीलियाँ भी

बात तो तब है जब धहकती मशाल बनो



रोक लो तूफानों को यूँ बांहो में भींचकर

जला दो गम का लम्हा दिलों से खींचकर

कदम दर कदम और भी ऊँची उड़ान भरो

जिन्दा हों तो जिंदगी कि मिसाल बनो

झूठ का साथी नहीं सच का सवाल बनो



यूँ तो अक्सर बातें तुझ पर बनती रहेंगी

तोहमते तो फूल बनकर बरसा ही करेंगी

एक एक तंज पिरोकर जीत का हार करो

जिन्दा हों तो जिंदगी… Continue

No more pink

Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment

नो मोर पिंक

क्या रंग किसी का व्यक्तित्व परिभाषित कर सकता है नीला है तो लड़का गुलाबी है तो लड़की का रंग सुनने में कुछ अलग सा लगता है हमारे कानो को लड़कियों के सम्बोधन में अक्सर सुनने की आदत है.लम्बे बालों वाली लड़की साड़ी वाली लड़की तीख़े नयन वाली लड़की कोमल सी लड़की गोरी इत्यादि इत्यादि

कियों जन्म के बाद जब जीवन एक कोरे कागज़ की तरह होता हो चाहे बालक हो बालिका हो उनको खिलौनो तक में श्रेणी में बाँट दिया जता है लड़का है तो कार से गन से खेलेगा लड़की है तो गुड़िया ला दो बड़ी हुई तो डांस सिखा दो जैसे… Continue

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी

Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments

यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
न रुलाती तू मुझे अगर दर्द मे डुबो डुबो कर
फिर खुशियों की मेरे आगे क्या औकात थी
तूने थपकियों से नहीं थपेड़ो से सहलाया है
खींचकर आसमान मुझे ज़मीन से मिलाया है
मेरी चादर से लम्बे तूने मुझे पैर तो दें डाले
चादर को पैरों तक पहुंचाया ये बड़ी बात की
यूँ ही मिल जाती जिंदगी तो क्या बात थी
मुश्किलों ने तुझे पाने के काबिल बना दिया
Pooja yadav shawak

Let me kiss you !

Posted by Jasmine Singh on April 17, 2021 at 2:07am 0 Comments

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है खुद के दर्द पर खामोश रहते है जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है वो जो हँसते…

Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment

वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है

© 2024   Created by Facestorys.com Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Privacy Policy  |  Terms of Service