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1.साहित्य के बारे में आप क्या विचार रखते हैं?
उत्तर:- साहित्य समाज का दर्पण है, ये तो हम सभी जानते हैं। मेरे विचार से साहित्य, चाहे वो लेख हों, कहानियां हों, उपन्यास हों, कवितायें हों, धार्मिक ग्रंथ हों, का मतलब है आप मैं जानने समझने के प्रति रूचि जागृत करना, आपको आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति व शांति प्रदान करना, सौन्दर्य व प्रेम के भाव जगाना, जीवन की कठनाइयों पर विजय पाने के लिये प्रेरित करना है। मेरे विचार में साहित्य की भाषा किताबी व कलिष्ठ नहीं होनी चाहिये भाषा ऐसी हो जो आमजन भी आसानी से समझ सकें आपको शब्दकोष ले कर न बैठना पड़े।
2. स्त्री परिवार और प्रोफेशन..
उत्तर:- भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। लेकिन उसको घर की दहलीज तक सीमित भी रखा गया। आज नारी जीवन के हर क्षेत्र में कदम बढ़ा रही है। आज की नारी अपने कर्तव्यों को गृहकार्यों की इतिश्री ही नहीं समझती है, अपितु अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सजग है। वह अब स्वयं के प्रति सचेत होते हुए अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाने की हिम्मत रखती है। शिक्षा के चलते नारी जागरूक हुई और इस जागरूकता ने नारी के कार्यक्षेत्र की सीमा को घर की चहरदीवारी से बाहर की दुनिया तक फैला दिया।
लेकिन आज भी पुरूष समाज नारी का साथ पूरी इमानदारी से देने के प्रति सजग नहीं है। अगर नारी प्रोफेशन के साथ साथ घर और अपने बच्चों तथा परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभा सकती है तो पुरूष क्यूँ नहीं । जहाँ तक मेरा प्रश्न है मुझे प्रोफेशन के साथ साथ घर का काम करने में कोई शर्म नहीं।
3.स्त्री सर्जक और पुरूष सर्जक के सर्जन में क्या तफावत महसूस होता हैं ?
उत्तर:- नारी और पुरूष दोनों ही शानदार और सशक्त लिखते हैं। पर स्त्री सर्जित अधिकतर रचनाओं में केन्द्र बिन्दू नारी ही रही है या रहती है चाहे वो प्रेम, दर्द, विरह, या कोई समाजिक समस्या हो। परंतु पुरूष लगभग हर विषय पर सर्जन कर लेते हैं। आजकल एक चलन स्त्री सर्जनकर्ता की रचनायों में देखा जा रहा है कि जब भी कोई घटना घटती है तो वो पुरूष को जी भर कोसती है यहाँ तक कि अपशब्द कह दिये जाते हैं ऐसा करते समय शायद जोश में वो ये भूल जाती है कि पुरूष कहीं उसका पिता, भाई, प्रेमी व पति भी है। अच्छ बुरा दोनों जगह है। सर्जन करते समय अति से बचना चाहिये क्यूँकि अति घृणा को जन्म देती है।
4. एक कवि या लेखक के लिये पढ़ना कितना जरूरी है?
उत्तर:- पढ़ना सबके लिये जरूरी है हाँ कौन कितना पढ़ता है, क्या पढ़ता है ये उसकी रूची पर निर्भर करता है। साहित्य को गर पाठक ही नहीं मिलेंगे तो फिर उसकी सार्थकता ही नहीं। हाँ एक लेखक व एक आम आदमी के एक ही रचना को पढ़ने का नज़रिया अलग अलग हो सकता है।
5. सोशल मीडिया के बारे में आपकी क्या राय है?
उत्तर:- सोशल मीडिया गर उसका सही व पूरी तरह इस्तेमाल किया जाये तो समाज को जागरूक बनाने, अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति उनमें चेतना जगाने का सशक्त माध्यम है। और लोग इस दिशा में अग्रसर भी हैं। सोशल मीडिया बहुत सी छूपी प्रतिभाओं को सामने लाया है ला रहा है।
6. आपका साहित्यिक सफ़र ... किस व्यक्ति या चीज़ ने आपको लिखने के प्रेरित किया?
उत्तर:- मैं अधिकतर श्रृंगार रस में लिखता हूँ । मेरा मानना है कि घर समाज में अगर प्रेम मोहब्बत है तो समाज को आसानी सुधारा जा सकता है। और आज की भागदौड़ भरी दुनिया में इंसान सबसे पहले सुक़ूँ चाहता है और पढ़ने को कुछ ऐसा जो उसके दिल की छूले। भारीभरकम शब्दों से भरी रचना आम आदमी के सर से गुजर जाती हैं ये रचनायें किताबों या इनामों तक सिमट के रह जाती हैं । अब श्रृंगार है तो प्ररेणा भी नारी ही होगी। बहुत सी रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं । कुछ साझा काव्यसंग्रह जैसे गुलमोहर, गूंज, आकाश अपना अपना, काव्य सुंगन्ध-2, भाषा सहोदरी-1, कलाम को सलाम, भावों की हाला, शब्दों के रंग, सत्यम प्रभात आ चुके हैं तथा पुष्पगन्धा, सौ कदम व एक अन्य जल्द आने वाले हैं
7. ऐसी किताब जो आप बार बार पढ़ना चाहें?
उत्तर:- यूँ तो बहुत कुछ पढ़ा, धार्मिक ग्रंथों से ले उपन्यास, कहानी लेख..कविताओं तक लेखक बहुत हैं किस किस के नाम लूँ । परंतू गीता एक ऐसी रचना है जिसको बचपन से पढ़ रहा हूँ और बार बार पढूँगा क्यूँकि हर बार एक नये प्रश्न को जन्म देती है गीता आपकी जिज्ञासा का अंत नहीं होने देती।
Comment
बेहतरीन साक्षत्कार...सही कहा 'गीता' एक मात्र ऐसा ग्रंथ है जो जीवन के यथार्थ से आमना-सामना कराता है।
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:19pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on March 10, 2024 at 5:18pm 0 Comments 0 Likes
Posted by Hemshila maheshwari on September 12, 2023 at 10:31am 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 31, 2021 at 10:01am 0 Comments 1 Like
Posted by Jasmine Singh on July 15, 2021 at 6:25pm 0 Comments 1 Like
Posted by Pooja Yadav shawak on July 6, 2021 at 12:15pm 1 Comment 2 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on June 25, 2021 at 10:04pm 0 Comments 3 Likes
Posted by Pooja Yadav shawak on March 24, 2021 at 1:54pm 1 Comment 1 Like
वो जो हँसते हुए दिखते है न लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
पराये अहसासों को लफ़्ज देतें है
खुद के दर्द पर खामोश रहते है
जो पोछतें दूसरे के आँसू अक्सर
खुद अँधेरे में तकिये को भिगोते है
वो जो हँसते हुए दिखते है लोग
अक्सर वो कुछ तन्हा से होते है
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